नाला सोपारा और डिज़्नी : एबीसीडी-2 / जयप्रकाश चौकसे

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नाला सोपारा और डिज़्नी : एबीसीडी-2
प्रकाशन तिथि :17 जून 2015


मुंबई के एक उपनगर में गरीबों की बस्ती है नाला सोपारा जहां के कुछ युवा लोगों ने अपना डांस ग्रुप बनाया और इतने लोकप्रिय हुए कि उन्हें अमेरिका में अवसर मिला। इस सत्य घटना पर आधारित फिल्म है 'एबीसीडी-2' जिसकी पहली कड़ी भी सफल फिल्म सिद्ध हुई थी। उसमें नए कलाकार थे। नेतृत्व कर रहे थे प्रभु देवा जिनकी प्रेरणा माइकल जैकसन रहे हैं।

फिल्म के भाग दो में उभरते सितारे वरुण धवन और श्रद्धा कपूर काम कर रहे है, अत: बजट भी बड़ा मिला है और पारिवारिक मनोरंजन के लिए विश्व प्रसिद्ध डिज़्नी कंपनी ने इसका निर्माण किया है। इस नृत्य आधारित फिल्म को थ्री डी में बनाया गया है, साथ ही नार्मल प्रिंट का भी प्रदर्शन होगा। प्राय: थ्री डी में फार्मेट का इस्तेमाल हॉरर विषय के लिए किया जाता है । नृत्य को थ्री डी में देखना नया अनुभव होगा। ज्ञातव्य है कि भारत में 'छोटा चेतन' नामक केरल में बनी फिल्म ने सफलता अर्जित की थी तो अनेक निर्माताओं ने अमेरिका से वे थ्री डी कैमरा खरीदे जो उनके यहां चलन से बाहर जा चुके थे गोयाकि हमारे विदेशोन्मुखी भेड़चाल वाले लोग अमेरिका का कूड़ा-कचरा उठाकर मेक इन इंडिया उस वक्त भी कर रहे थे। 'छोटा चेतन' के बाद बनी सारी थ्री डी फिल्में असफल रहीं।

एक दौर में टेक्नोलॉजी का चूर्ण बेचने वाले कुछ लोगों ने पुरानी फिल्मोें को थ्री डी में बदलने की बचकानी कोशिश की। यहां तक कि अधकचरे ज्ञान से 'शोले' का थ्री डी संस्करण भी असफल हो गया। दरअसल थ्री डी विधा की फिल्म अलग ढ़ंग से लिखी जाती है, उसके सैट्‌स अलग गणित से बनाए जाते हैं। बासी पूरी चाय के साथ अच्छी लगती है परन्तु टेक्नोलॉजी की बासी कड़ी को नया उबाल नहीं दिया जा सकता। 'एबीसीडी-2' को डिज़्नी ने बनाया है और वे 1922 से टेक्नोलॉजी के पुरोधा रहे हैं, जब फिल्म निर्माण में सितारें वाजिब मेहनताने पर नहीं मिल पाने के कारण उन्होंने एनीमेशन फिल्मों का युग प्रारंभ किया और विधा के पुरोधा सिद्ध हुए। दुनिया के सबसे अधिक ठहाके डिज्नी की एनीमेशन फिल्मों ने लगवाए हैं। इसी तरह थीम पार्क के भी वे पुरोधा रहे हैं। डिज़्नी कंपनी का मूलमंत्र रहा है सितारों की गुलामी नहीं करके उनके उनसे बेहतर विकल्प प्रस्तुत करो और इस प्रयास में उन्होंने एक-दो सितारे नहीं वरन मनोरंजन का पूरा सौरमंडल ही निर्माण किया है।

याद कीजिए राजकुमार हीरानी की 'पीके' का एक दृश्य जिसमें अन्य नक्षत्र से आया प्राणी धरती की उदास नायिका से कहता है कि उनके यहां उदास होने पर वे नाचने लगते हैं तो उदासी भाग जाती है। हमारे अल्प ज्ञानी कहते है कि मन में प्रसन्नता हो तो पैर थिरकने लगते हैं। दरअसल रिदम पर पैर थिरकते हैं। नाचने से उदासी दूर होने का वैज्ञानिक कारण भी मिल सकता है। शारीरिक चपलता से न केवल रक्त संचार हिलोरें लेता है वरन् मेटाबोलिज़्म बढ़ने से रक्त की लहरें मन को भी प्रसन्न करती हैं। दरअसल, हमने दिल को दिमाग के बाहर रखने के कारण बहुत गलती की है। हृदय मात्र एक पंप है और हम जिसे भावना का स्थान बताते हुए दिल कहते हैं, वह मनुष्य मष्तिष्क का ही एक हिस्सा हैं। मनुष्य मष्तिष्क में दो पक्षों के बीच निरंतर विवाद होता है।

जिस हम फिल्मी अंदाज में कहते हैं कि दिल की सुनूं या दिमाग की। दोनोें ही एक संपूर्ण ब्रह्मांड अर्थात मष्तिष्क के हिस्से हैं। मनुष्य स्वयं कमजोरियां व आलस्य चुनता है और उसे दिल की खूंटी पर टांग देता है गोयाकि वह मैले कुचैले कपड़ों के लिए बना है। बहरहाल, अमेरिका में डांस आधारित बहुत फिल्में बनी है - यंग वन्स, सेटरडे नाइट फीवर, डांस इन रेन इत्यादि। क्या हम यह उम्मीद करें कि 'एबीसीडी' के कलाकार नाला सोपारा जाएंगे और वहां के युवा को नमन करेंगे।