नाहरसिंह, सूरमा भोपाली और खैराबादी / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :05 दिसम्बर 2016
जावेद अख्तर और सलीम खान की लिखी 'शोले' में सूरमा भोपाली नामक हंसोड़ पात्र की कल्पना जावेद अख्तर को अपने भोपाल में रहने वाले मित्र से मिली, जिसका असली नाम नाहर सिंह था। वह बमुश्किल 80 पाउंड वजन का छोटे कद का भद्दा-सा दिखने वाला उनका मित्र था और उसकी मूर्खता पर सारे साथी खूब हंसी उड़ाते थे परंतु उन्होंने उसे यकीन दिला दिया था कि वह विद्वान और आकर्षक व्यक्तित्व का धनी है। वह उनके मखौल का केंद्र और पंचिंग बैग था। ज्ञातव्य है कि बॉक्सर रेत से भरे थैले पर घूंसेबाजी का अभ्यास करते हैं और उसे ही पंचिंग बैग कहा जाता है प्राय: मित्र मंडलियों में इस तरह का व्यक्ति चित्रण रचा जाता है और जैसे आज अवाम सरकार के लिए पंचिंग बैग की तरह है और उसे रेत का बोरा समझकर खूब पीटा जा रहा है परंतु इस बैग से जो रक्त बह रहा है, वह मदांध सरकार को नज़र नहीं आ रहा है।
बहरहाल, भोपाल के इस व्यक्ति ने जब शोले फिल्म देखी तो वह वकील से मिलने गया, जिसने उन्हें कहा कि कोई मुकदमा कायम ही नहीं हो सकता, क्योंकि उन्होंने पात्र का नाम कुछ और रखा है। ज्ञातव्य है कि हर फिल्म के प्रारंभ में यह लिखा होता है कि सारे पात्र काल्पनिक हैं और कहीं से कोई साम्य होना महज इत्तेफाक है। यह एक कानूनी कवच है परंतु लेखक यथार्थ लोगों और घटनाओं से प्रेरणा लेते हैं। सृजन क्षेत्र में यथार्थ और कल्पना के बीच एक शीशे की दीवार होती है।
कुछ समय बाद सलीम-जावेद की श्रेष्ठतम रचना 'दीवार' में भी नायक का संवाद है कि आज उसके पास बंगला है, कारें हैं और अपार जायदाद है परंतु साथ ही यात्रा शुरू करने वाले सगे भाई के पास उसकी ईमानदारी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। इसका उत्तर था कि उसके पास मां है और यह संवाद गब्बर के संवादों की तरह ही लोकप्रिय हुआ है। दरअसल, हमारी हर बस्ती में अनेक रहवासी भवनों के नाम 'मातृ छाया' इत्यादि इसी भाव को अभिव्यक्त करने वाले होते हैं परंतु यथार्थ यह है कि कई जगह इन्हीं भवनों के मालिकों ने अपनी मां को वृद्धाश्रम भेजा है। हमारी सारी ईश्वर भक्ति और मानवीय रिश्तों की सच्चाई लगभग इसी तरह है। सफल भाई दीवाली पूजन पर अपने गरीब भाई को अपने घर आमंत्रित करता है केवल यह दिखाने के लिए देखो कैसे वह चांदी की थाली में भोजन परोसता है परंतु यह सच्चाई छिपा लेता है कि कैसे उसने किसी नेता का 'चमचा' बनकर यह एेश्वर्य खड़ा किया है। नाहर सिंह को इस संवाद पर यह नागवार गुजरा कि अपनी दौलत का सहारा लेकर जावेद अख्तर उसका ही मखौल उड़ा रहे हैं। बहरहाल, शताब्दियों पूर्व जब लियोनार्दो दा विंची अपनी अमर कृति 'लास्ट सपर' चित्रित करने के लिए शैतान का चित्र बनाने के लिए मॉडल खोज रहे थे, जो उन्हें लंबी चयन प्रक्रिया के बाद मिला था। कुछ वर्षों बाद उन्हें भले व्यक्ति के चित्र के लिए मॉडल की तलाश थी और पुन: लंबी प्रक्रिया के बाद उन्हें एक व्यक्ति मिला परंतु वे इस तथ्य से अनभिज्ञ थे कि यही व्यक्ति है, जो कुछ वर्षों पूर्व शैतान की छवि का मॉडल था और इस अंतराल में वह व्यक्ति कत्ल करके अपनी सजा पूरी करके जेल से छूट आया है। सारांश यह कि एक ही व्यक्ति साधू और शैतान की छवियों का मॉडल बना।
उपरोक्त तथ्य का सार यह है कि एक ही व्यक्ति के अनेक रूप होते हैं। एक ही में साधु और डाकू छिपे होते हैं। हमारे सर्वकालिक महाकवि वाल्मीकि के बारे में भी ऐसी किंवदंती है। एक दौर में तो कालीदास को वज्रमूर्ख ही माना जाता था। हर व्यक्ति एक असीम संभावना है। जावेद अख्तर के एक पुरखे मुज्तर खैराबादी ने भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया और अंग्रेजों ने उन्हें कालेपानी की सजा दी। आगरा के सजा देने वाले जज ने 'अपराधी' के साथ कालापानी के अधीक्षक को खत लिखा कि खैराबादी फारसी और उर्दू का महान जानकार है और उसके साथ नरमी बरती जाए। कालापानी के अंग्रेज अफसर ने खैराबादी से फारसी सीखी और उन्हें बाइज्जत रखा। मुज्तर खैराबादी की कालापानी की सजा काटते हुए मृत्यु हुई और उन्हें वहीं दफ्न भी किया गया। आज कुछ ऐसे हालात जबरन बनाए गए हैं कि कई लोगों को अपना भारतवासी होना सिद्ध करने के लिए कहा जा रहा है। क्या ये लोग खैराबादी की कब्र पर जाकर पूछेंगे कि क्या तुम भारत केनागरिक थे?
दरअसल, तमाम देशों में अन्य देशों के लोग जा बसते हैं अौर कालांतर में वही उनका देश भी हो जाता है। ज्ञातव्य है कि मुगल शहंशाह बाबर ने युद्ध में विजय के बाद अपनी सेना से कहा था कि कोई लूटपाट नहीं की जाए, क्योंकि वे भारत ही में बसना चाहते हैं। इस महान देश में नदियां हैं, पहाड़ हैं और बेहद उपजाऊ जमीन है। अब कैसे बाबर तक यह बात पहुंचाई की हमने अपनी पावन नदियों को प्रदूषित कर दिया है और जमीन में नफरत के बीज बो दिए हैं और अब हैवानियत की फसल को काटने और भोगने के लिए मजबूर भी हैं।