निठारी वाले अंकल / राजकिशोर
बच्चे का नाम सुदीप था। उम्र यही कोई चौदह साल। गोल-मटोल चेहरा, भोली-भाली आँखें। घंटी की आवाज आने पर दरवाजा उसी ने खोला था और इस नए अंकल को देखा था - भरा-पूरा शरीर, रोबदार चेहरा, बड़ी-बड़ी नुकीली मूँछें, आँखों पर सुनहरी कमानियों का महँगा चश्मा, चुस्त-दुरुस्त पोशाक और पैरों में चमचमाते स्टाइलिश जूते। इसके पहले कि नए अंकल झुक कर उससे हैंडशेक करते, सुदीप ड्राइंग रूम से भाग कर अंदर गया और अपने पापा से बोला - 'पापा-पापा, वह वाले अंकल आए हैं।' उसके मासूम चेहरे पर डर की परछाइयाँ तैर रही थीं। 'कौन वाले अंकल?' पूछे जाने पर सुदीप ने कहा - 'वही, निठारी वाले अंकल।'
सुदीप के पापा मनोहर लाल टेलीफोन विभाग में नौकरी करते थे। यारबाश थे, इसलिए शाम अक्सर दोस्तों से मिलने-जुलने में ही खर्च हो जाती थी। वे जितने लोगों को जानते थे, उससे अधिक लोग उन्हें जानते थे। 'निठारी वाले अंकल' सुन कर उनकी समझ में कुछ नहीं आया। निठारी नाम की जगह से उनका दूर-दूर तक कोई ताल्लुक नहीं था। जिज्ञासा भरी मुस्कान लिए मनोहर लाल ड्राइंग रूम में पहुँचे तो उनकी मुस्कान ठहाके में बदल गई। वहाँ टेलीफोन विभाग के चीफ इंजीनियार इस पसोपेश में खड़े थे कि अपने-आप सोफे पर बैठ जाऊँ या नहीं। मनोहर ने इंजीनियर साहब को प्रेम भरा नमस्ते कहा और आदर के साथ बैठाया। प्रारंभिक शिष्टाचार के बाद इंजीनियर साहब ने बहुत ही संक्षेप में अपने आने का प्रयोजन बताया और मनोहर लाल ने उन्हें आश्वस्त किया कि वह काम अगले दिन ही हो जाएगा। इंजीनियर साहब ने धन्यवाद दिया और चलने को हुए कि मनोहर लाल ने कहा - आप मेरे घर पहली बार आए हैं। कम से कम एक प्याला चाय तो पीकर ही जाइए।
चीफ इंजीनियर बहुत ही भला आदमी था और दफ्तर के सभी लोग उसका सम्मान करते थे। चाय-पान के बाद किंचित संकोच के साथ इंजीनियर ने पूछा - अच्छा, यह तो बताइए कि आपने मुझे देखते ही ठहाका क्यों मारा? मैं जोकर जैसा तो नहीं दिख रहा हूँ? इस पर मनोहर लाल थोड़ा झेंप गए। उन्होंने कहा - नहीं, सर, उसका आपसे कोई ताल्लुक नहीं था। दरअसल, बेटे ने...। इंजीनियर साहब की उत्सुकता और बढ़ गई - बेटे ने क्या बताया अंदर जाकर?
मनोहर लाल तय नहीं कर पा रहे थे कि सुदीप की बात बताई जाए या नहीं। उन्होंने विनम्रता से पूछा - सर, अगर आप अदरवाइज न लें, तो...
चीफ इंजीनियर के लिए रहस्य और गहरा गया था। उसने कहा - बच्चे की बात है। अदरवाइज लेने का सवाल ही नहीं उठता। आप मुझे अच्छी तरह जानते हैं। बताने जैसी बात नहीं है, तो छोड़िए इसे। मैं तो यों ही पूछ रहा था। अब मनोहर लाल के पास कोई चारा नहीं बचा था। उन्होंने मुसकराते हुए कहा - सर, आप निठारी कांड को तो जानते ही हैं। वहाँ दर्जनों बच्चों के कंकाल मिले हैं। पता नहीं कैसे बेटे को यह भ्रम हो गया कि आप ही मोनिंदर सिंह पंढेर हैं। उसने मुझसे कहा, पापा, निठारी वाले अंकल आए हैं।
यह सुनते ही इंजीनियर साहब ने जबरदस्त ठहाका लगाया। इसका मनोहर लाल पर संक्रामक असर पड़ा। उन्होंने भी उतना ही जबरदस्त ठहाका लगाया। दोनों समझदार आदमी थे। इसलिए आपस में कोई मलिनता नहीं आई। हँसी रुकने के बाद इंजीनियर ने अपने आप पर एक भरपूर नजर डाली और कहा - तब तो मुझे जूनियर लाल से मिलना ही होगा।
जूनियर मनोहर लाल उर्फ सुदीप दोनों तरफ के पर्दों के बीच अपना चेहरा छिपाए हुए चीफ इंजीनियर को घूर रहा था। पापा ने उसे अंदर बुलाया, तो वह आने को बिलकुल तैयार नहीं था। दूसरी-तीसरी बार कहने पर वह पर्दों को आपस में ठीक से जोड़ कर पीछे भाग गया। अब मेजबान की मजबूरी हो गई कि वह जाकर बच्चे को ले आए और मेहमान के सामने पेश करे। मनोहर ने यही किया। सुदीप उनकी पकड़ में, उनके साथ ड्राइंग रूम में आ तो गया, पर चीफ इंजीनियर पर एक तीन-चौथाई नजर डाल कर अपनी आँखें मूँद लीं।
इंजीनियर ने बड़े प्यार से कहा - बेटे, मुझसे मिलोगे ही नहीं, तो समझोगे कैसे कि हम कौन वाले अंकल हैं! सुदीप चुप तो चुप। पापा ने उसे सहज बनाना चाहा और मेहमान ने दो-तीन बार विनती की, तो वह बोला - मैं आपको जानता हूँ। आप निठारी वाले अंकल हैं।
अब माहौल में तनाव के तत्त्व घुलने लगे थे। इंजीनियर साहब ने पूछा - बेटे, तुम्हारे घर पर तो पहली बार आया हूँ। फिर तुमने मुझे कैसे पहचान लिया?
सुदीप - मैं आपको पहले से जानता हूँ। टीवी पर कई बार आपको देखा है। पुलिस आपको पकड़ कर जेल ले जा रही थी।
मनोहर लाल - चुप। यह क्या बदतमीजी है।
इंजीनियर - न, न, इसे डाँटिए मत। (सुदीप से) बेटे, इस हिसाब से तो मुझे जेल में होना चाहिए। फिर मैं यहाँ कैसे बैठा हुआ हूँ?
सुदीप - आप जेल से भाग कर आए हैं।
इंजीनियर - अरे, मेरा बेटा तो बहुत होशियार है। वह सब कुछ जानता है। अच्छा, लड़ाई छोड़ो। यह देखो, तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ। चीफ इंजीनियर ने अपने कोट की जेब से एक बड़ी-सी चॉकलेट निकाल कर उसकी ओर बढ़ाई।
सुदीप - मैं यह चॉकलेट नहीं खाऊँगा। इसे खाते ही मैं बेहोश हो जाऊँगा और आप मुझे पकड़ कर अपनी कोठी में ले जाएँगे। फिर मेरे साथ बुरा काम करने के बाद मुझे मार डालेंगे और मेरी हड्डियाँ नाले में बहा देंगे। इस पर उसके पापा ने उसे कस कर एक तमाचा लगाया। ड्राइंग रूम का वातावरण अचानक बहुत भारी हो आया था।
बाहर तक छोड़ने गए मनोहर लाल ने अपने वरिष्ठ सहकर्मी का दाहिना हाथ अपनी हथेलियों में थाम कर कहा - 'आइ'म एक्स्ट्रीमली सॉरी। माफ कीजिएगा। मुझे इसकी कतई उम्मीद नहीं थी। बट आई होप, यू कैन अंडरस्टैंड। इंजीनियर साहब की आँखें पसीज रही थीं। उन्होंने कहा - सुदीप को कुछ कहिएगा नहीं। बच्चे का कोई कसूर नहीं है। कसूरवार तो हम बड़े लोग हैं, जिन्होंने पता नहीं कितने बच्चों को डरा दिया है। एक अंकल ने सभी अंकलों को संदिग्ध बना दिया है।'