नितेश तिवारी की 'विनय पत्रिका' है 'छिछोरे' / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 12 अगस्त 2019
नितेश तिवारी ने मुंबई की एक इमारत में रहने वाले परिवारों और परिसर में आए कुत्ते को पात्र बनाकर 'चिल्लर पार्टी' नामक फिल्म बनाई। इस फिल्म की कमाई चिल्लर से कहीं अधिक हुईं। इसके बाद आमिर खान के साथ 'दंगल' बनाई, जिसने अपनी लागत पर सौ गुना मुनाफा कमाया। 'दंगल' ने चीन में भारी सफलता अर्जित की। 'दंगल' के बाद लोगों को उम्मीद थी कि वे एक भव्य सिताराजड़ित फिल्म बनाएंगे, परंतु उन्होंने सुशांत सिंह राजपूत और श्रद्धा कपूर के साथ 'छिछोरे' नामक फिल्म बनाई है, जो सितंबर के पहले सप्ताह में प्रदर्शित की जाएगी। नितेश तिवारी का कहना है कि 'छिछोरे' निर्मल आनंद देने वाली फिल्म है। दर्शक को जीवन के दबाव और तनाव से कुछ समय तक फिल्म मुक्त कर दे ऐसा प्रयास किया गया है। नितेश तिवारी लंबे समय से 'रामायण' प्रेरित फिल्म बनाने पर विचार कर रहे हैं। उनकी बनाई फिल्मों में एक क्रम नज़र आता है। 'चिल्लर पार्टी' के बाद भव्य 'दंगल' तथा 'छिछोरे' के बाद भव्य 'रामायण' गोयाकि वे लंबी दौड़ के बाद विश्राम के समय सिताराविहीन अल्प बजट की फिल्म बनाते हैं। सृजनशील लोग आराम के क्षण भी कुछ न कुछ रचने में लगे होते हैं। वह दिन भर के काम के बाद सोता है तो उसकी नींद में स्वप्न संसार का निर्माण हो जाता है। इसी मनोदशा को शैलेन्द्र की एक गैर फिल्मी रचना में यूं बयान किया गया है- 'चलते चलते थक गया मैं और सांझ भी ढलने लगी, तब राह खुद मुझे अपनी बाहों में लेकर चलने लगी' गुलजार लिखते हैं- 'राहों के दिए आंखों में लिए तू बढ़ता चल'।
कुछ लोग गंभीर स्वभाव के होते हैं और कुछ गंभीरता को लबादा बनाकर ओढ़ लेते हैं, ताकि उनकी मूर्खता जगजाहिर न हो जाए। वर्तमान समय में मूर्खता सद्गुण है। बकौल कुमार अंबुज अब मूर्खता एक मौलिक अधिकार है। कुछ लोग हमेशा निर्मल आनंद में आकंठ लीन होते हैं। कुछ लोगों को अन्य लोगों का सुखी होना कष्ट देता है। कुछ लोग कष्ट देना पसंद करते हैं। कुछ कष्ट में आनंद और आनंद में कष्ट का अनुभव करते हैं। दरअसल, कोई व्यक्ति हमेशा प्रसन्न या हमेशा अवसाद से घिरा नहीं होता। कुछ लोग धूप के समय बदली छा जाने की प्रार्थना करते हैं। मनुष्य स्वभाव एक अबूझ पहेली है। ज्ञातव्य है कि नितेश तिवारी की पत्नी अश्विनी अय्यर ने 'बरेली की बर्फी' नामक मजेदार फिल्म रची थी। आर. बाल्की और उनकी पत्नी गौरी शिंदे दोनों ही फिल्मकार हैं। इस तरह सृजन की म्यान में दो तलवारें रह सकती हैं, परंतु राजनीति में अधिकांश नेताओं के हाथ में फकत टूटी तलवारों की मूठ ही है। शीर्ष नेताओं को यही जमात पसंद है। नितेश तिवारी को अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म 'रामायण' के लिए कलाकार मिलना आसान नहीं होगा। अब वे 'बजरंगी भाईजान' को हनुमान की भूमिका के लिए नहीं ले सकते। इसी तरह अवैध शराब बेचने वाले 'रईस' को रावण की भूमिका के लिए नहीं ले सकते। उनके 'दंगल' के सितारे आमिर खान की रुचि महाभारत में है और वे कर्ण की भूमिका करना चाहते हैं, परंतु यह महत्वाकांक्षी फिल्म कुछ समय के लिए ठंडे बस्ते में डाल दी गई है।
वर्तमान समय में 'रामायण' और 'महाभारत' बनाने के लिए बजट और उपकरण उपलब्ध है परंतु कलाकार खोज पाना कठिन है। जर्मनी से कलाकारों का आयात किया जा सकता है। वर्तमान समय में धार्मिक आख्यान टेलीविजन पर कार्यक्रम बनाने के काम आ रहे हैं। वे फूहड़ता रचने का बहाना बन गए हैं। छिछोरे, मसखरे, फब्तीबाज और खिलंदड़ अलग-अलग हैं। बीरबल, जोकर या तेनाली राम मसखरे नहीं हैं। वे गंभीर बातों को हास्य की चासनी में तर करके परोसते हैं। 'छिछोरे', 'थ्री इडियट्स' भी नहीं हैं। यह संभव है कि नितेश तिवारी इन पात्रों के माध्यम से निर्मल आनंद की रचना कर रहे हों। तुलसीदास ने 'मानस' के बाद विनय पत्रिका रची है। क्या हम यह सोचने का दुस्साहस करें कि नितेश तिवारी की 'छिछोरे' उनकी विनय पत्रिका है, परंतु अधिक संभावना तो यही है कि वह उनकी 'राग दरबारी' हो।