निदान / कविता वर्मा
उ उ उ उ .....मोनू के रोने की आवाज़ सुन कर सुनीति चौंक गयी. "क्या हुआ बेटा?"
मम्मी दादी ने सोनू को ज्यादा जामुन दी मुझे कम दी. दादी हमेशा ऐसा ही करती हैं। सोनू को हर चीज़ ज्यादा देती हैं। मोनू की आवाज़ में दिल को छलनी कर देने वाली कातरता थी।
नहीं बेटा ऐसा नहीं है दादी सबको बराबर देती हैं तुम्हे ऐसा लगा होगा. दादी तो मोनू को भी बहुत प्यार करती हैं. कहते हुए सुनीति खुद ही सकपका गयी। अब पाँच साल के बच्चे को क्या समझाए, वो भी जानती है मोनू झूठ नहीं बोल रहा है।
अगले महिने राखी है दोनों ननद आने वाली हैं, मांजी की इच्छा है इस बार उन्हें कपड़ों के साथ सोने की अँगूठी भी दी जाएँ। जेठजी अच्छी कम्पनी में ऊँचे पद पर हैं उनके लिए कुछ हजारों का खर्चा निकालना कुछ ज्यादा मुश्किल नहीं हैं पर पति की नौकरी में इस समय कुछ ठीक नहीं चल रहा है ऐसे में ये खर्च। परसों ही सुबोध ने मांजी से पैसे का इंतजाम ना होने की बात कही थी. तभी से उनका मूड उखड़ा हुआ है।
मोनू रोते रोते सो गया उसे चादर उढ़ाते हुए सुनीति ने अपनी आँखों की कोरें पोंछी और काम में लग गयी.
शाम को सुबोध ऑफिस से आये तो सोनू को सोते देख कर पूछा ये अभी क्यों सो रहा है?
खेलते खेलते थक गया था। वह पति की परेशानी बढ़ाना नहीं चाहती थी।
मोनू के गालों पर सूखे आँसुओं के निशान सुबोध की नज़रों से छुप ना सके। मैं अभी आता हूँ कह कर वो घर से निकल गए।
रात में सुबोध ने उसके हाथ में दस हज़ार रुपये रखे तो वह चौंक पड़ी। मैंने दिनेश से उधार ले लिए हैं कल मांजी को दे दूँगा, कहते हुए उन्होंने मोनू के सिर पर हाथ फेर कर उसका माथा चूम लिया।