निमंत्रण / अमित कुमार पाण्डेय
ऑफिस से थोड़ा लेट निकला। बाहर आया तो देखा शाम हो चुकी थी। घर आया और चाय पीकर आराम करने के लिए बिस्तर पर लेट गया। आँख मूँदा तो ऑफिस के सारी दिन का क्रिया कलाप दिमाग में घूमने लगा। इसी सोच में कब आँख लग गई पता ही नहीं चला। अचानक मेरी नींद मोबाइल की घंटी से टूटी. मोबाइल उठाने से पहले मेरी नज़र सामने की दीवाल घड़ी पर गई. महसूस हुआ की मैं दो घंटे से सो रहा था। मोबाइल पर नज़र डाली तो देखा कि मेरे दोस्त रमेश का फोन था गोरखपुर से। मोबाइल का बटन दबाकर मैंने कहा, -"हैलो, रमेश कैसे हो"।
रमेश ने कहा ठीक हूँ। मैंने पूछा, -"कैसे फोन किया"।
रमेश ने कहा, -" कल मेरे बेटे रिंकू का पहला जन्मदिन है। कल शाम को मेरे घर में एक पार्टी का आयोजन है। तुम्हें दावत है। मैं तुम्हें पहले ही बताने वाला था पर काम की व्यस्तता में भूल गया।
मैंने कहा, -"कोई बात नहीं। मैं कल शाम गोरखपुर आने की पूरी कोशिश करूंगा"।
रमेश ने कहा, -"मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगा"।
इसके बाद उसने फोन काट दिया। मैं बिस्तर से उठा और चाय लेकर बाहर बरामदे में टहलने लगा। मैं कल के जाने के बारें में सोचने लगा। एक तो ऑफिस की व्यस्तता, उपर से अमेठी से गोरखपुर तक का लंबा सफर। मैं बड़े ही असमंजस में था। अतः मैंने अपनी पत्नी सुनीता को फोन लगाया और कल के निमंत्रण और अपनी दुविधा के बारे में बताया। सुनीता ने कहा कि यदि आपको किसी ने निमंत्रण दिया है तो आपको ज़रूर जाना चाहिए. और फिर वह आपके कॉलेज के मित्र हैं। आप कल आधे दिन का ऑफिस कर के गोरखपुर चले जाना और देर रात तक लौट आना। मुझे सुनीता का सुझाव पसंद आया। फिर मैंने अपने ड्राईवर पप्पू को फोन किया और कहा, -"पप्पू, कल लंच के बाद तुमको मुझे अमेठी से गोरखपुर मेरी कार से ले चलना है। देर रात तक हम लोग वापस आ जाएँगे"।
पप्पू ने कहा, -"ठीक है सर। कल लंच के बाद मैं ऑफिस के गेट पर आपका इंतज़ार कारूंगा"।
दूसरे दिन मौसम का मिजाज ठीक नहीं था। सुबह से ही बारिश हो रही थी। दूसरे दिन लंच में ऑफिस से निकल कर मैं घर पर आया। खाना खाने के बाद मैं अपनी गाड़ी से ऑफिस के गेट पर पहुचा। पप्पू मेरा पहले से ही इंतज़ार कर रहा था। आगे के सफर के लिए मैंने गाड़ी पप्पू को चलाने के लिए दे दी और आराम से कार के आगे वाली सीट पर बैठ गया।
पप्पू ने मुझसे पूछा, -"सर, गोरखपुर सुल्तानपुर से चलना है या कादूनाला वाले रास्ते से"।
मैंने कहा, -"कादूनाला वाला रास्ता ठीक नहीं है। तुम सुल्तानपुर से गोरखपुर चलो। बारिश में वही रास्ता ठीक होगा"।
जैसे ही हम थोड़ी दूर चले होंगे बारिश ने उग्र रूप धारण कर लिया। मैंने पप्पू से गाड़ी धीरे चलाने के लिए हिदायत दी। पर मुझे पता था कि अमेठी से गोरखपुर का रास्ता काफी लंबा है और हमे तुरंत निमंत्रण देकर वापस लौटना भी है। जैसे-जैसे गाड़ी सड़क पर बढ़ रही थी बारिश भी तेज होने लगी थी। तभी मैंने देखा अचानक गाड़ी के सामने एक साइकिल वाला आ गया। पप्पू के ब्रेक मारते-मारते उसे ठोकर लग गई और वह सड़क के किनारे जा गिरा। हमने गाड़ी रोकी और तुरंत उसके पास गए. तबतक वह खड़ा चुका था। वो तो ठीक दिखाई दे रहा था पर उसकी साइकिल टूट गई थी। मैंने उसके बिना कहे उसे साइकिल की मरम्म्त का हरजाना दिया और जल्दी से कार में बैठकर आगे की तरफ चल दिये। पप्पू ने कहा, -"सर, बारिश की वजह से वह आदमी मुझे दिखाई नहीं दिया"।
मैंने कहा, -"ठीक है। पर भगवान की कृपा है कि उसे कोई चोट नहीं आए. पर तुम अब गाड़ी ज़रा और सम्हाल के चलाओ"।
अभी हम थोड़ी दूर ही चले होंगे कि मैंने देखा सड़क पर भारी जाम लगा हुआ है। कुछ देरी तो हमने जाम खुलने का इंतज़ार किया पर जब जाम नहीं खुला तो पप्पू गाड़ी से उतरकर पता लगाने के लिए आगे गया। लौट कर उसने मुझे बताया कि भारी बारिश की वजह से रास्ते में पेड़ टूट कर गिर गया है। प्रशासन पेड़ हटाने के लिए लगा हुआ है पर बारिश की वजह से उसे काफी दिक्कत पेश हो रही है। कितना समय और लगेगा ये कहा नहीं जा सकता।
पप्पू ने कहा कि सर हमें और इंतज़ार नहीं करना चाहिए. हमे वापस लौट कर कादूनाला वाले रास्ते से चलना चाहिए. पप्पू ने गाड़ी मोड ली और हमलोग कादूनाला की तरफ चलने लगे। पप्पू ने कहा, -"लगता है सर आज का दिन अच्छा नहीं है। एक तो सफर लंबा है और ऊपर से ये भारी बारिश"। मैंने कहा, -"तुम ठीक कह रहो हो। हमे सुबह में ही निकल देना चाहिए था"। हम अबाध गति से आगे बढ़ते चले जा रहे थे। थोड़ी ही देरी में हम लोग मुशाफ़िरखाना पहुच आए और वहाँ से जैसे ही कादूनाला की तरफ बढ़े तो मैंने पाया की रेल्वे क्रॉसिंग बंद थी। मैंने महसूस किया की अगर आपको कहीं जाने की जल्दी है तो आपके सामने समस्या आती रहेगी। मैंने देखा कि लोग भारी बारिश में भी रेल्वे फाटक के नीचे से क्रॉस कर रहें हैं। मैंने सोचा कि इन लोगों को अपनी जान की भी परवाह नहीं है। पर मुझे याद आया की मैंने भी कई बार ऐसा किया है। शायद आज मैं कार से हूँ इसलिए ऐसा सोच रहा हूँ। थोड़ी ही देर में मुझे ट्रेन का हॉर्न सुनाई दिया। मैंने चैन की सांस ली। मैं क्या देखता हूँ की ट्रेन आ के फाटक के बीचों बीच खड़ी हो गई. थोड़ी देर तक हमलोगों ने ट्रेन जाने का इंतज़ार किया। पर जब ट्रेन नहीं चली तो मैं कार से उतरकर फाटक के पास गया और ट्रेन न जाने का कारण पूछा। रेल्वे के आदमी ने बताया की बाबूजी शायद इंजिन में कुछ खराबी आ आई है।
मैंने उस आदमी से पूछा, -"कब तक इंजिन सही होगा"। उसने कहा, -"बाबूजी, कुछ पता नहीं"। अब मैं देरी की वजह से थोड़ा-सा बेचैन हो उठा। एक तो सुबह से बारिश, फिर साइकिल वाले आदमी का एक्सिडेंट, रास्ते में पेड़ का गिरना और अब ये रेल्वे इंजिन की खराबी. मैंने ऐसे ही पप्पू से कहा, -"पप्पू, आज सुबह से ही प्रकृति हमे गोरखपुर जाने से रोक रही है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि हमलोग गोरखपुर जा के भरी मुसीबत को दावत दे रहें हैं"।
पप्पू ने कहा, -"नहीं सर ऐसी कोई बात नहीं है। ये सब एक इत्तफाक है। और आपको चिंता करने की ज़रूरत नहीं है जब तक मैं आपके साथ हूँ"। बारिश अब हल्की हो रही थी पर मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। पूरा देढ़ घंटे बाद इंजिन चला। रेल्वे फाटक खुला और हम आगे की तरफ बढ़े। पिछले तीन घंटे में हमने मात्र 25 किमी का सफर तय किया था। कादूनाला पार करते ही हमे पक्की सड़क मिल गई और हमारी गाड़ी ने रफ्तार पकड़ ली। थोड़ी ही देर में हम फ़ैज़ाबाद-गोरखपुर हाइवे पर आ गए. हाइवे पर थोड़ी दूर चलने के बाद पप्पू ने गाड़ी एक ढाबे पर रोक दी। चाय पानी पीने के बाद हम वापस अपनी कार पर आ गए. तभी पप्पू ने देखा कि कार का अगला टायर पंचर हो गया है। मैंने कहा कि लो अब इसी की कसर बाकी थी। अब मेरा धैर्य जवाब दे रहा था। पप्पू ने कहा कि भगवान की कृपा है कि टायर ढाबे पर पंचर हुआ है। कहीं रास्ते में होता तो हम और मुसीबत में पड जाते। पप्पू बगल की दुकान से पंचर ठीक करने वाले को ले आया। पंचर ठीक करने के बाद हमलोग दोबारा हाइवे पर चल पड़े। अब मैंने मन ही मन सोचा कि हे! भगवान अब कोई और मुसीबत न आ जाए. पप्पू गाड़ी को अब तेजी से दौड़ा रहा था। मैंने कार के आगे के दोनों शीशे खोल दिये। ठंडी हवा मेरे बालों को सहलाने लगी। मैं आँखें मूँद कर सीट पर लेट गया और सफर का आनंद लेने लगा। रात 8 बजे तक हम लोग रमेश के घर पहुच गए. मैंने देरी से आने के लिए रमेश से क्षमा मांगी। हमलोग पार्टी में शामिल हो गए. करीब रात 11 बजे मैंने रमेश से वापस जाने की अनुमति ली और वापसी का सफर शुरू किया। मौसम में अब भी नमी थी और रह-रह कर बूँदा बाँदी हो रही थी। हाइवे पर इक्का दुक्का गाड़ी नज़र आ रही थी। पप्पू लगातार गाड़ी चला रहा था और मैं खिड़की खोलकर मौसम का आनंद ले रहा था।
थोड़ी देर बाद मैंने महसूस किया की एक तो रात का समय, ऊपर से पार्टी का गरिष्ठ खाना, पप्पू को कार चलाने में कुछ दिक्कत-सी महसूस हो रही थी। वो थोड़ा शिथिल दिखाई दे रहा था।
मैंने कहा, -"पप्पू, ऐसा करते हैं किसी ढाबे पर रोको। वहाँ हाथ मुह धोकर चाय पी लेते हैं। फिर तुम आगे गाड़ी चलाना"।
पप्पू ने कहा, -"सच पूछिये तो सर मेरा भी यही मन कर रहा था पर संकोच की वजह से कह नहीं पा रहा था"।
मैंने कहा, -"नहीं प्यारे गाड़ी तुम चला रहे हो। यदि तुम्हें कोई दिक्कत महसूस हो रही है तो तुम्हें कहना चाहिए"।
थोड़ी देर बाद पप्पू ने गाड़ी एक ढाबे पर रोक दी। मैंने और पप्पू ने हाथ मुह धोकर चाय का ऑर्डर दे दिया। पप्पू चारपाई पर लेट गया और मैं उसके बगल में एक कुर्सी पर बैठ गया। मैंने देखा कि ढाबे पर हम दो लोगों के अलावा और दो लोग थे जो लगभग हमारी ही उम्र के थे। एक कार और ढाबे पर खड़ी थी जो शायद उन्ही लोगों की हो ऐसा मैंने अनुमान लगाया। थोड़ी देर बाद हमलोगों ने चाय का बिल चुकता किया और अपनी कार की ओर वापस चले। तुरंत वह दोनों आदमी हम लोगों के पास आए और एक ने बोला-"इक्सक्यूज मी"। मैंने बोला, -"हाँ बोलिए"।
"आप लोग कहाँ जा रहें है"।
मैंने कहा, -"हम फ़ैज़ाबाद होते हुए अमेठी जा रहें हैं"।
उसी आदमी ने बोला, -"हमारी कार खराब हो गई है। हमलोगों को बस्ती जाना है। मेरी माँ की तबीयत बहुत खराब है। हमलोग गोरखपुर से दवाई लेकर लौट रहें हैं। यदि आप हमे बस्ती तक लिफ्ट दे सकें तो आपकी बहुत मेहरबानी होगी। वैसे भी इस रात हमे और कोई साधन मिलने की बहुत कम संभावना है"। हालांकि मेरा मन उन्हे लिफ्ट देने का नहीं था पर शायद उनकी मजबूरी देखकर मेरा मन थोड़ा पसीज आया।
मैंने कहा, -"ठीक है। आपलोग कार में पीछे बैठ जाइए"।
वे दोनों अपना-अपना बैग लेकर पीछे वाली सीट पर बैठ गए. मैं आगे वाली सीट पर बैठ गया और पप्पू ने एक बार फिर कार हाइवे पर दौड़ा दी। थोड़ी देर तक सबकुछ सामान्य चल रहा था। तभी एकाएक मुझे ये एहसास हुआ की जैसे मेरी कमर पर कोई चीज़ आके सट गई हो। मैंने मुड़कर देखा तो वह पिस्टल थी। जो आदमी ठीक मेरे पीछे बैठा था उसके हाथ में एक पिस्टल थी जो उसने मेरी कमर पर सटा राखी थी।
मैं थोड़ा सहम गया लेकिन फिर मैंने ज़ोर से पूछा ये क्या है। तब तक दूसरे आदमी ने बोला, -"ये पिस्टल है। और अपने ड्राईवर से कहो की चुपचाप कार चलाता रहे। तुम दोनों ने ज़रा-सी भी कोई उल्टी सीधी हरकत की तो ये आदमी गोली चलाने से नहीं बाज़ नहीं आयेगा। और वैसे भी ये रास्ता अब एकदम सुनसान हो गया है। तुम लोगों की सहायता के लिए अब कोई नहीं आने वाला। अब जैसा हमलोग कहें वैसा करते रहो"।
तब मुझे ये एहसास हुआ की मैं और पप्पू अब बुरी तरह फंस चुके है। आखिर मैंने हिम्मत करके पूछा की आप लोगों का इरादा क्या है। इस पर वह दोनों बुरी तरह हसने लगे। मैंने महसूस किया की पिस्टल वाला आदमी एकदम शांत था। दूसरा आदमी ही बोल रहा था।
दूसरा आदमी बोला, -"अबभी तुम लोगों को नहीं पता है कि हमारा इरादा क्या है। बस्ती से ठीक पहले हमारे दो और आदमी तुम लोगों का इंतज़ार कर रहें हैं। इसके बाद तुम लोग हमें कार प्यार से सौंप कर उतार जाओगे। और हम चारों तुम्हारी कार लेकर रफूचक्कर हो जाएंगे। और हाँ यदि तुम हमें कार प्यार से सौंप दोगे तो हम तुम लोगों के साथ कुछ नहीं करेंगे। नहीं तो खून खराबा हम लोगों का रोज़ का काम है"। मैंने मन ही मन सोचा आज सुबह से प्रकृति हमें जिस संकट से आगाह कर रही थी वह आखिर हो ही गया। आज तो बुरे फंसे हमलोग। जैसे-जैसे कार बस्ती की तरफ बढ़ रही थी वैसे-वैसे मेरी घबराहट भी बढ़ती जा रही थी। वो घबराहट मैं पप्पू के चेहरे पर भी देख सकता था। पर मैंने एक बात महसूस की कि पप्पू ने गाड़ी कि रफ्तार धीमी कर दी है। तभी उनमे से एक आदमी ने कहा कि तुमने गाड़ी की रफ्तार धीमी क्यों कर दी है।
पप्पू ने कहा, -" साहब आप लोग एक तो पिस्टल ताने हुए है और सोच रहे हैं कि हम लोग सामान्य व्यवहार करें। मुझे घबराहट हो रही है। इसलिए मैं गाड़ी धीरे चला रहा हूँ। चाहें तो आप लोग गाड़ी चला सकते हैं। उस आदमी ने जवाब दिया कि हम लोगों को गाड़ी चालानी नहीं आती है। पर हाँ जो आदमी आगे मिलेंगे उन्हे चलानी आती है। इसलिए तुम चुपचाप बस्ती की ओर चलो। थोड़ी देर बाद उस आदमी ने मोबाइल लगाया। मैं उसकी बात बड़े ही ध्यान से सुन रहा था।
उसने बोला, -"काम हो गया है। बस्ती से पहले तुम लोग नाले के पास इंतज़ार करना। पहुचने से थोड़ी देर पहले मैं तुम्हें दोबारा फोन करूंगा"।
मैं लगातार पिस्टल की नाल का स्पर्श अपनी कमर पर कर रहा था। जब से हम लोग अमेठी से चलें हैं किसी न किसी मुसीबत में फंस रहें हैं और निकल भी जा रहें है। पर इस मुसीबत से मुझे कोई छुटकारा मिलता नज़र नहीं आ रहा हथा। गाड़ी चुपचाप सुनसान हाइवे पर चली जा रही थी।
एकाएक पप्पू ने गाड़ी रोक दी। पीछे बैठे आदमी ने पूछा, -"क्या हुआ। गाड़ी क्यों रोक दी तुमने"।
पप्पू ने कहा, -"लगता है गाड़ी का टायर पंचर हो गया है"।
उस आदमी ज़ोर से आह भरी। इसके बाद हम चारो लोग गाड़ी से बाहर आ गए. पिस्टल वाले आदमी ने पिस्टल पैंट में खोस ली और हमें कोई भी ग़लत हरकत करने से आगाह किया। पप्पू ने गाड़ी धीरे से सड़क के नीचे फुटपाथ पर उतार दी और कार की डिक्की से टायर और टायर बदलने का सामान निकाल लाया। उस आदमी ने कहा, -"जल्दी करो। हमलोगों के पास समय बहुत काम है"।
पप्पू ने कहा साहब, -"निमंत्रण का खाना काफी भारी हो गया है। मेरे पेट में काफी गड़बड़ हो रही है। मैं पास के खेत से फ्रेश होकर अभी 5 मिनट में आता हूँ। उसके बाद टायर बदलूगा"।
जिस आदमी के पास पिस्टल थी वह मेरे साथ कार के पास रह गया और दूसरा आदमी पप्पू के साथ चला गया। पूरे 10 मिनट बाद पप्पू उस आदमी के साथ लौटा और टायर बदलने लगा। पप्पू ने मुझसे कहा सर मोबाइल का टॉर्च चालू करके रोशनी को कार की तरफ दिखाओ. मैंने टॉर्च चालू कर दी और पप्पू उस रोशनी में धीरे-धीरे टायर बदलने लगा। मैंने देखा वह दोनों आदमी कार के दूसरी तरफ खड़े थे और हमारी ओर से कुछ लापरवाह हो गए थे। एकाएक पप्पू ने मेरी तरफ देखकर मोबाइल की ओर कुछ इशारा किया। मैंने धीरे से देखा तो पता चला पप्पू का एक एस एम एस आया हुआ था। मैं टॉर्च दिखने के बहाने वह एस एम एस पढ़ने लगा। मैं तुरंत समझ गया कि पप्पू ने खेत में जाने के बहाने के दौरान वह एस एम एस भेजा था।
पप्पू ने लिखा था कि सर मैं टायर बदलने के बाद ये बहाना करूंगा की ये गाड़ी स्टार्ट नहीं हो रही है। सबको धक्का लगाना पड़ेगा। जब सब धक्का लगा रहे होंगे तब आप एकाएक पिस्टल वाले आदमी को सड़क पर ज़ोर से धक्का दे देना और उछाल कर कार के ऊपर लगा कैरियर पकड़ लेना और तुरंत हमे इशारा कर देना। जितमे में पिस्टल वाला आदमी संभलेगा उतमे में मैं गाड़ी भगा दूँगा। सर ये हमारे पास बचने का आखिरी मौका है। संदेश मैंने पढ़ लिया और इशारों-इशारों में पप्पू को बता भी दिया। पर मैं जानता था ये काम मेरे लिए काफी मुसकिल है और इसमे पूरा रिस्क है। खैर मैंने मन ही मन भगवान को याद किया। पप्पू ने टायर बदलने के बाद पंचर टायर और टायर बदलने के सामान को कार की डिक्की में वापस रख दिया। हम चारोलोग कार में आकर बैठ गए. जैसे ही पप्पू ने कार स्टार्ट की वह बंद हो आई. मैं समझ गया की पप्पू ने प्लान के तहत काम करना शुरू कर दिया है। फिर पप्पू ने कार को दो बार और स्टार्ट करने का बहाना किया। पीछे वाले आदमी ने पूछा झल्लाकर पूछा-"अब क्या हुआ"। पप्पू ने कहा, -"साहब कार स्टार्ट नहीं हो रही है। अब सबको मिल के धक्का लगाना होगा"।
उस आदमी ने कहा, -"अजीब मुसीबत है। चलो जल्दी करें"।
हम तीनों कार से उतर गए. मैंने देखा जिस आदमी के पास पिस्टल थी वह अबभी पिस्टल पैंट में छुपाये हुए था। मैंने और पिस्टल वाले आदमी ने पीछे से और तीसरे आदमी ने साइड से धक्का लगाना शुरू किया। गाड़ी धीरे-धीरे हाइवे पर बढ्ने लगी। अब मैंने मौका पाकर पिस्टल वाले आदमी को हाथ से ज़ोर का धक्का दिया। धक्का इतनी तेज था कि वह दूर फूटपथ पर जा गिरा। इसे बीच मैंने उछल कर कार का कैरियर पकड़ लिया और पप्पू को चलने का इशारा किया। पप्पू ने गाड़ी स्टार्ट की और तेजी से हाइवे पर दौड़ा दी। साइड वाला आदमी लड्खड़ाकर गिर पड़ा। जितमे में वह दोनों आदमी संभल पाते पप्पू ने गाड़ी तेज कर दी। चूंकि मेरा चेहरा आगे की तरफ था इसलिए मैं उन दोनों आदमी गतिविधि नहीं देख पाया। मुझे डर था कि कहीं वह आदमी मुझ पर गोली न चला दे पर शायद उसे चोट लग गई थी या वह हाइवे पर गोली चलाना नहीं चाहता था। कारण चाहे जो भी हो पर इस वक़्त हमारी गाड़ी बहुत तेजी से चल रही थी। मैं कैरियर पकड़ लटका हुआ था। लगभग आधे घंटे बाद पप्पू ने गाड़ी रोकी और मैं अंदर बैठ गया। जैसे ही बस्ती आया मैं और पप्पू सतर्क हो गए. पर वह दोनों आदमी हमे कहीं मिले नहीं। आगे रास्ते में रुककर हमने पुलिस थाने में रिपोर्ट लिखाई. इसके बाद पुलिस ने हमे फ़ैज़ाबाद तक छोड़ा। इसके बाद हम अमेठी तक सकुसल वापस आ गए. मैंने पप्पू को उसकी सूझ बूझ के लिए धन्यवाद दिया। विपत्ति में भी कैसे पप्पू ने धैर्य के साथ काम किया। हमने जो रिस्क लिया उसमे हम कामयाब हुए. पर हमें किसी को भी लिफ्ट देते समय ध्यान से काम करना चाहिए. क्योंकि इस बार तो टायर पंचर हो गया और हम बच गए. पर ऐसा इत्तफाक हर बार नहीं होता। हम दोने ने आज के पूरे दिन के लिए भगवान को धन्यवाद दिया और आगे की यात्रा में सावधान रहने का संकल्प लिया।