निमाई ढाकी / अपूर्व भूयाँ
मां दुर्गा कि कृपा लगता है आज निमाई ढाकी पर नहीं बरसेगी। कमर तो जैसे शक्तिहीन हो चुकी है। हाथों में पीतल के कड़े पहने मांसपेशी बहुल बाजू जैसे दुर्बल हो गए हैं। ढाक के थाप की लहरों को सुनने में व्यर्थ दोनों कान भी जैसे गुमगुमा उठे हैं। चमकी मोती लगा हुआ चमकीला शाही पोशाक के अंदर निमाई का शरीर पसीने से तर-बतर हो चुका है। कंधे तक फैले लंबे बालों को झटकते गर्दन को घुमाकर विशेष भाव-भंगिमा नहीं बना पा रहा है। ढाक पर थाप लगा घूमकर एक लहर देते जैसे उसकी कमर ढिली लग रही है। उसका मन एक पापबोध से ग्रसित हो गया है। देवी के सामने खड़ा होते उसने कभी कोई खराब वस्तु मुंह से नहीं लगाई है। परंतु आज लगाई है। मन की बेचैनी की वज़ह से उसने आज थोड़ी देसी दारू पी ली है। इसी कारण उसका शरीर इस तरह लड़खड़ा रहा था। देवी माँ के सामने नियम भंग करने की वज़ह से उसका ये हाल हो रहा है। उसने सोचा।
वैसे चार-पांच गिलास एक ही बार में गटक जाने पर भी निमाई ढाकी की देह नहीं हिलती। साथी कहते हैं, " वाह! उस्ताद वाह! बाजू जैसे स्ट्रॉंग, दिल भी वैसा ही स्ट्रॉंग। ' पर क्या हुआ, उसके हृदय में ही एक शूल चूभ गया। लगता है जैसे किसी ने उसके कलेजे में एकाएक तीर घोंप दिया हो। कौन है वह घातक! तरुलता, बलेन या कोई और?
तरु यानी तरुलता, उसके हृदय में कभी रचने-बसने वाला एक नाम। पश्चिम बंगाल के मेदनीपुर का बाशिंदा है निमाई। बारह वर्ष पहले मकर संक्रांति के दिन निमाई के आत्मीय-कुटुम्ब, बंधु-बाँधव सहित लोगों का एक हुजूम दीघा घाट गया था। मकर संक्रांति के दिन सागर में स्नान कर पुण्य अर्जित करने के लिए हजारों वहाँ जुटे थे। मेले में रंग-बिरंगी, मनोहारी दुकानों के सामने लोगों की भीड़। पांव रखने तक की कहीं कोई जगह नहीं। शाम होते लोगों की भीड़ कुछ कमने लगी थी। निमाई के साथ आए लोग दुकान और होटलों में जाकर व्यस्त हो गए। निमाई को भूख लग गई थी। वह अपने एक साथी के साथ एक होटल से पुड़ी-भाजी लेकर सागर के बालुई तट पर बैठकर खाने में व्यस्त हो गया। सागर से उठते शीतल हवा के झोंके तट को तेजी से छूकर जा रहे थे। लहरें भी उफनने लगी थीं। तभी वह घटना घटी थी। निमाई से थोड़ी दूर सागर में जलक्रीड़ा कर रहे किसी परिवार का कोई एक लहरों में बह गया। वह परिवार दीघा के करीब के ही एक गाँव का था। दूर-दूर से आए लोगों का हुजूम कम होने के बाद ही वे स्नान करने आए थे। अफरा-तफरी मच गई। लहरों का रौद्र रूप देख किसी की भी आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हुई। आसमान बादलों से घिरा था, तूफान आने की भी संभावना थी। अत: लहरें भी तेज हो गई थीं। थोड़ी देर बाद देखा गया कि मांसपेशी बहुल भुजाओं वाला कोई एक लहरों के साथ संघर्ष कर तैरते हुए लहरों में बह गए व्यक्ति को बचाने निकल पड़ा। वह निमाई था। एक तेईस वर्षीय जवान। चाचा के साथ ढाक बजाना सीखने वाले निमाई की भुजाओं की मांसपेशी बड़ी बलिष्ठ थी। वह कुछ समय पहले तक लहरों के साथ बह गई किशोरी को निहार रहा था। चौदह-पंद्रह वर्षीय सुगढ़ शरीर, उससे भी आकर्षक थी उसकी निश्च्छल हंसी। संभवत: वह मोहित हो गया था। लगा लड़की ने भी उसकी ओर दो-एक बार देखा था। अचानक जब वह लहरों में बह गई तो वह बेचैन हो उठा। वह दौड़ पड़ा और उन्मादित सागर में कूद पड़ा। कुछ समय बाद अपनी बांहों में भरकर वह लड़की को तट पर ले आया। परिजनों की देखभाल से कुछ पल बीतने के पश्चात लड़की सामान्य हो पाई। पास ही खड़े निमाई को कृतज्ञता भरी नजरों से देखा। उसका चेहरा जैसे खिल उठा। निमाई को पता चला कि उसकी बड़ी भाभी की बहन की बेटी का विवाह जिस गाँव में हुआ है, वहीं का बाशिंदा है यह परिवार और लड़की का नाम है तरु। तरुलता नंदी। यही आरंभ था। उसका मन उसी में रम गया। उस दिन दीघा से लौटते वक़्त ट्रैफिक जाम में फंसते-फंसते बस से घर पहुँचते रात के बारह बज गए थे।
मकर संक्रांति के दिन यह एक आम घटना होती है, बावजूद लोग अधीर हो चुके थे। निमाई बस की पिछली सीट पर सोने की मुद्रा में बैठे उस षोड़शी किशोरी की मूर्ति के ध्यान में खो गया था। पानी में भींगे सुगढ़ देह का तप्त स्पर्श से जैसे उसके पूरे बदन में सनसनी फैल गई। जाने की कोई ज़रूरत नहीं थी, बावजूद तरु के लिए ही निमाई एकदिन उसके भाभी के रिश्तेदार का घर खोजते गया था। बिना किसी कारण कई दिनों तक वहाँ रहा। निमाई के इतने दिनों वहाँ रहने की वज़ह आख़िर घर वालों को पता चली। निमाई ने तरु से ब्याह करने का ऐलान कर दिया, जिसके बाद घर वाले तरु के घर वालों से मिले, बातचीत हुई और अंतत: सामाजिक रीति-रिवाज से दोनों विवाह बंधन में बंध गए और आरंभ हो गया एक प्रेममय संसार।
चाचा के साथ ढाक बजाते-बजाते निमाई एक निपुण ढाकी बन गया था और वह दिन आया, जब एक समय के विख्यात ढाकी उसके चाचा कि शरीर कमज़ोर पर गया। कलकता के बड़े पूजा मंडप में उसे काम नहीं मिलने लगा। इसी कारण में उसे असम के धुबड़ी, गोलकगंज, बंगाईगांव आदि के पूजा मंडप में भी जाना पड़ा। असम के इन पूजा मंडपों में चाचा के साथ जाते-जाते निमाई एक जाना-पहचाना ढाकी बन गया। तीन-चार घंटे लगातार ढाक बजाते भी वह नहीं थकता। तन-मन में एक अद्भुत शक्ति का संचार। रोम-रोम यौवन रस से भरा-भरा। विवाह के पश्चात तरु का सौंदर्य-लावण्य पहले जैसा नहीं रहा। नतीजा तरु के प्रति निमाई का आकर्षण भी कमता गया। विवाह के छह वर्ष बाद भी जब तरु की गोद नहीं भरी तो रिश्ते-नातेदारों ने कहना शुरू कर दिया, "रूप देखकर ब्याह किया था न, बुढ़ापे में दोनों संतान सुख भोगे बिना ही एक-दूसरे के गले लगते मर जाएंगे। ' संतान न होने को लेकर निमाई को कोई फ़िक्र नहीं थी, परंतु तरु के प्रति उसका लगाव धीरे-धीरे कम होने लगा। तरु ने एक दिन उसे कलकता के एक डॉक्टर से परामर्श करने की बात कही। अब तक वे ओझा-तांत्रिक, पूजा-पाठ करते-करते थक चुके थे। निमाई तरु को डॉक्टर के पास ले गया। डॉक्टर को तरु में कोई विशेष कमी नज़र नहीं आई। महिला डॉक्टर ने एक बार निमाई का भी टेस्ट करवाने को कहा। निमाई तो ठहरा मंद बुद्धि का। उसे कोई परवाह नहीं। तरुलता ने एक दिन फिर निमाई को टेस्ट की बात याद दिलाई तो गुस्से में उसने तरु के गाल पर तमाचा जड़ दिया। उसे टेस्ट नहीं कराना। उसने तरु को धमकाया कि ज़रूरत पड़ी तो एक और को घर ले आएगा और अपनी मर्दांनगी प्रमाणित कर दिखाएगा। निमाई का स्वभाव बदलने लगा। वह पहले से अधिक गुस्सैल हो चला। पहले तो तरु को पंसद नहीं, यही सोचकर साथी-संगत में पड़कर दारू-भांग कभी-कभार ही मुंह से लगाता, परंतु अब तो वह इसका नियमित आदी बन गया। तरु के कानों में भी यह बात पड़ी कि ढाकी पार्टी में असम जाते वहाँ गोलकगंज की किसी लड़की से उसकी जान-पहचान हो गई और उस पर उसका दिल आ गया था। पूजा के मौसम में असम के दूर-दराज के इलाकों में ढाक पार्टी के साथ जाना उसे बड़ा अच्छा लगने लगा। पूजा में तरु के साथ रहने की उसकी इच्छा पूरी तरह से ख़त्म हो गई। तरु अक्सर शिकायत भरे लहजे में कहती," "छोड़ दो ढाकी का काम, कोई दूसरा काम करो। हर बार पूजा-त्योहार में तुम दूर चले जाते और मैं अकेली रह जाती हूँ।" तब वह लापरवाही से कहता, "" तुम क्या समझोगी ढाकी का नशा क्या होता है। तुम्हारी जैसी औरत से क्या यह नशा कम है। बूढ़ा होकर मरा भी तो कांधे पर ये ढाक लेकर मरूंगा। "फिर तरु पर कटाक्ष करता," "और तुम्हारा क्या, बलेन के साथ तुम्हारी क्या खिचड़ी पक रही है, क्या मैं समझता नहीं। उसके साथ ही पूजा देख लेना।"
बलेन, निमाई के एक दूर के चाचा का बेटा है। निमाई के पुराने घर में ही वह पला-बढ़ा। अब वह निमाई की छोटी-सी किराना दुकान संभालता है। निमाई की गैर-हाजिरी में बलेन कई दफे तरु को पूजा दिखा चुका है। भाभी के साथ हंसी-मजाक कर घूमना-फिरना उसे अच्छा लगता है। तरु की पसंद की कोई चीज ला देता है, तरु के साथ कहीं जाने की उसे बड़ी ललक रहती है। तरु के प्रति निमाई की उदासी के बहाने जैसे वह तरु के पास आने की चेष्टा करता है। हाँ, निमाई भी अब इसी तरह सोचने लगा है।
इस बार गुवाहाटी के एक संभ्रांत पूजा मंडप में निमाई का आना हुआ। आने से एक दिन पूर्व तरु चटाई पर उसकी बगल में लेटे-लेटे, उसके कानों में फुसफुसाई कि उसके पास एक अच्छी ख़बर है। निमाई पिछले दो दिनों से तरु को उत्कंठित और प्रफुल्लित देख रहा था। तरु के पास क्या अच्छी ख़बर है, उसे भी जानने उत्सुकता हुई, बावजूद बड़बड़ाते हुए कहा, "" क्या बात है, कहती क्यों नहीं। मुझे नींद आ रही है। "तरु ने उसके कानों से मुंह सटाते हुए कहा," "लगता है कि इतने दिनों की आशा जैसे अब पूरी हो जाएगी। आज बड़ी बुआ ने मुझे उबकाई करते देख जांच-परखकर कहा कि इसबार सबकुछ ठीक है।" यह सुन अचानक निमाई भी आनंद के गोते लगाने लगा। देर रात तक उसकी आंखों से नींद गायब रही। पता नहीं क्या सोचकर वह गुवाहाटी आया और अपने एक परिचित व्यक्ति को लेकर एक डॉक्टर के पास गया। डॉक्टर ने उसे दो टेस्ट कराने के बाद पुन: बुलाया। डॉक्टर की बात सुनकर उसका मन उदास हो गया। डॉक्टर के अनुसार संतान जन्मने के मामले में उसे प्रॉब्लम है, हालांकि दस फीसदी उम्मीद कर सकते हैं। इसका मतलब तरु की अच्छी ख़बर का हिस्सेदार वह निश्चित ही नहीं है। तो फिर कौन, क्या बलेन? उसके मन में संदेह का मतलवाला झोंका उठने लगा। देवी के समक्ष ढाक बजाने की लालसा ख़त्म हो गई। उसके पांव जैसे शक्तिहीन हो गए। मूड बनाने के लिए हाफ बोतल सोमरस का पान कर आया। उसके अंदर के मतवाले झोंके ने उसके पूरे बदन में तांडव मचाना आरंभ कर दिया। निमाई के ढाक की थाप पर दर्शक मंत्रमुग्ध नहीं हैं। निमाई धुँधली आँखों से देख रहा है देवी माँ एक चमकते त्रिशूल से असुर के सीने पर प्रहार कर रही हैं। वह देवी माँ नहीं हैं, वह जैसे तरु हैं और वह असुर। आह! ढाक बजाना छोड़कर वह ज़मीन पर लेट पड़ा और बड़बड़ाने लगा, "" मां...मां...वह संतान मेरी है। तरु भी ये बात ज़रूर कहेगी न मां?