निरमोही बालम मेरे / राजकमल चौधरी

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प्रथम पृष्ठ

बसैठा ग्राम। दछिनबारी टोला। तारीख आसिन मास, मंगल दिन। परम प्रिये निरमोही बालम मेरे प्रानपति, प्रानेस्वर के चरण-कमलों में अभागिन माधवी के सादर प्रनाम, आपका कुशल-मंगल नित दैनिक मैं मां भगवती से मनाती रहती हूं। बाद समाचार कि आपके हाथ का लिखा पत्र मिला था। मन में बहुत हर्ष हुआ। परंतु बाद में पत्र पढ़कर उतने ही दुःख हुआ, मगर दुःख किससे कहूंगी। दुःख करके क्या करूंगी, किस पर अभिमान करूंगी, मेरा भाग्य खराब है। ठीक ही बात है, बिपत्ति में किसी का कोई नहीं, दूसरा कोई नहीं होता है। लोग अपना दुःख अपने ही अकेले सहता है। यह स्वाभाविक बात है, सो मैं खुद ही खूब बुझती हूं। परंच मेरे साध में कुछ नहीं है। तब इसमें मेरा क्या दोष है कि आप बसैठा नहीं आएंगे। इसमें मेरा क्या दोष है तब मैं बुझती हूं कि मेरा कोनो दोष नहीं है मगर मैं क्या करूंगी। मुझे तो यह भी आशा नहीं थी कि आप मुझे, अपनी प्रान प्यारी माधवी को पत्र देंगे। कारण, पटना से मेरा पत्र वापस चला आया तभी मैं समझी कि मेरे प्रानपति मुझ पर क्रोधित हैं।

दूसरा पृष्ठ

प्रानेस्वर, आप होली में आए थे। आप से कुछ भी बात नहीं हुई। मन की बात मन ही रह गई। बड़का ओझा भी आए थे। रात में मुझे प्रानेस्वर आपकी सेवा हेतु घर नहीं मिला। दिन में घर मिला सो मैं लाज से मर गई। मुझसे कोई सेवा नहीं हुई। मन की बात प्यासी ही रह गई। पंछी जैसे फल पर आशा लगाए रहता है वैसे ही मैं आप पर आशा लगाई रह गई। आसा पूर्न नहीं हुई। मैं क्या करती।


  • मिथिला की किसी अल्प साक्षर युवती द्वारा अपने बेरोजगार पति को लिखे गए प्रेम-पत्र की शैली में यह कहानी लिखी गई है।

मेरे बाप गरीब हैं, मैं गरीबनी हूं। एक ठो घर है, एक ठो रसोई घर है, दलान भी नहीं है। रसोई घर में मेरी मां, मेरी छोटी बहन मालती, मेरी छोटी बहन शांति सोईं। बड़का ओझा (बड़े जीजा जी) को घर मिला, बड़ी बहन कादंब ने अपने प्रानपती की सेवा की। प्रानेस्वर तब आप रखें चाहे डुबाएं, मैं क्या करूंगी। किससे अपना दुख कहूंगी। मुझसे कुछ नहीं हो सकता है, तब मुझ पर आपका जैसा विचार, जैसी कृपा हो। मैं यह आग्रह करूंगी ही कि आप दसमी में जरूर से आइए, नहीं आएंगे तो मैं क्या करूंगी, मैं कुछ नहीं करूंगी। ठीक ही तो है, जब मेरा जन्म स्त्री-योनि में हुआ तभी मेरे सिर पर बिपत्ति का पहाड़ गिर पड़ा। विधाता सब दुःख दें किसी को स्त्री योनि में जन्म न दें। मुझ जैसी अभागिन दुखी, कर्महीन, पापी लोग और कौन होगा। मैं बहुत पापी हूं। मैंने बहुत पाप किया है। इसीलिए इस योनि में ऐसे गरीब घर में जन्म हुआ। अब यही होता कि भगवती इस दुनिया से उठा लेतीं। मैं नरक चली जाती वही मेरे वास्ते बढ़िया था। तब भगवती जैसा करें। मुझे यह आशा नहीं थी कि आप जैसा सुंदर, बी.ए. पास, हीरा स्वामी होगा, मगर यह आशा पूर्न हुई। और कोई आसा पूर्न नहीं हुई। पिछले जन्म में कोई बहुत बड़ा कर्म किया था कि स्वामी जैसा स्वामी मिला। तब और सारा अपकर्म किया था कि और कोई सुख नहीं मिला।

तीसरा पृष्ठ

प्रानेस्वर, हमलोगों को यह नहीं मालूम था कि सास्त्री जी कैसे लोग हैं क्योंकि नुनू भाई उसकी बहुत परसंसा करते थे, कि सास्त्री जी हमारे ससुर हैं, कि सास्त्री जी विदवान लोग हैं। ओझा जी को नौकरी अपने ही प्रेस में जरूर धरा देंगे। इसीलिए मैंने आपको लिखा था कि आप सास्त्री जी से भेंट किजिएगा। सो यदि मैं जानती कि आपका वे कोई मान नहीं करेंगे और आपके और आपके साले के वे ससुर हैं, उसकी भी लाज नहीं रखेंगे तो मैं नहीं लिखती। परंतु अब समझी कि कैसे भले आदमी सास्त्री जी हैं। काका जी को मन में बहुत दुःख हुआ कि हमारे दामाद का सास्त्री जी ने कोई मान नहीं किया। यह बहुत दुःख की बात है। यदि मुझसे सास्त्री जी कभी भेंट करते तो मैं पूछती। मगर अब जो हुआ सो हुआ। अब नुनू भाई खुद पटना जा रहे हैं तभी सब बात ठीक हो जाएगी। नुनू भाई, वकील काका और जज मामा जी से भेंट करेंगे। तब भगवती आपकी नौकरी के विषय में जो करें। मनुष्य के करने से कुछ नहीं होता है। तब वह दिन कब होगा जब आपके साथ मैं भी पटना-नगरी में रहूंगी। आप रुपए-पैसे कमाकर लाएंगे। मैं आपको अपने हाथों मछली-भात, तर-तरकारी बनाकर खिलाऊंगी। मेरी आशा पूर्न हो जाएगी। भगवती वह दिन कब लाएंगी। गरीबी से मैं रह लूंगी मगर अपने प्रानपति के संग रहूंगी। हे काली माता मुझ पर दया कीजिए मेरा जीवन सफल कीजिए।

चौथा पृष्ठ

इस बार बसैठा ग्राम बाढ़ में डूब गया था। ऐसी बाढ़ कभी नहीं देखी कि आंगन में ही नहीं घर सब में भी पानी भर गया। लोग सब त्राहि-त्राहि करने लगे। जान-माल, किसी समान की रक्षा का उपाय नहीं रह गया। इस बार इसी कारण, काका जी को डेढ़ बीघा खेत है, वह रोपा हुआ खेत बरबाद हो गया। जो बटैया किए हुए थे वह भी चौपट्ट हो गया। अब लोग कैसे रहेगा क्या खाएगा क्या करेगा। अब प्राण कैसे बचेगा सो लोगों को सूझता नहीं है। हमलोग गरीब हैं। गरीब लोगों के जीने का कोई उपाय इस दुनिया मे नहीं रह गया है। मैं आपको अपना दुख क्या कहूंगी आप स्वयं ही दुःख में हैं। बी.ए. पास हैं मगर नौकरी नहीं मिल रही है। सब मेरे ही पापों का फल है। मैं बहुत अभागिन हूं। मेरा क्या होगा कहां जाऊंगी कैसे जीऊंगी उसका कोई ठिकाना नहीं। दूसरे लोगों का बिवाह होता है गौना होता है तब वह ससुराल बसती है। मगर मैं कैसी पापिन हूं किस जनम के पाप का फल है कि बाप के सिर पर भार बनकर बैठी हूं। मुझे आप कब अपने साथ ले जाएंगे। कब अपनी प्रान प्यारी माधवी का हाथ अपने हाथ में पकड़ेंगे वह मुझे मालूम नहीं। जो भगवती की कृपा होगी वही होगा। प्रानेस्वर अभी आप बहुत कष्ट में पड़े हैं उसी से मैं भी बिपत्ति में पड़ी हूं सो जानिएगा।

पांचवां पृष्ठ

प्रानेस्वर परमप्रिये बालम जी मेरा यह पूरा प्रेम में आग्रह है कि आप दसमी में जरूर बसैठा ग्राम में आएंगे। नहीं आएंगे तो मेरे मन में बहुत दुख होगा सो जानिएगा। यदि आप नहीं आएंगे तो मैं मर ही जाऊंगी। जब तक मैं जीवित हूं तब तक आपको आना पड़ेगा। बालम जी आपने यह शब्द क्यों लिखा है कि मैं दसमी में नहीं आऊंगा आपको आना पड़ेगा क्योंकि मैं रात-दिन आप ही का ध्यान करती हूं। मेरा यह जीवन बेकार हुआ मेरे लिए दसमी बेकार हुआ मेरा यह अठारहवें वर्ष का वयस बेकार हुआ यदि आप दसमी में छुट्टी में आकर मुझसे भेंट नहीं करेंगे। कारण कि दसमी में ओझा जी (जीजा जी) नहीं आएंगे आपको रहने के लिए घर जरूर मिलेगा। दूसरे लोग किसी दालान पर और स्त्रीगन सब रसोई घर में रहेंगी। आप किसी बात की चिंता नहीं करेंगे मगर पटना में किसी से पैंचा-उधार लेकर मेरे लिए एक खंड साड़ी दस रुपया में और चूड़ी जरूर लेते आइएगा। मैं आपके सामने आऊं उस लायक एक साड़ी मुझे नहीं है। चूड़ियां सारी टूट गईं बड़ी बहन के हाथ से दो चूड़ियां निकालकर अपने हाथ में मैंने पहन ली हैं। इससे बिसेस मैं अपना हाल क्या लिखूं। लिखते समय लाज भी आती है और आंसू भी आंखों से गिरते हैं। मैं क्या लिखंू जब आप ही मेरे प्रानपति मुझसे क्रोधित हैं तब मेरी इस नवयुवती की देह-दसा का उद्धार कैसे होगा। मेरा क्या होगा सो आप ही सोच-विचार करें मैं आपको अपने हिरदय में ईस्वर के समान रखती हूं जैसे हनुमान जी राजा रामचन्द्र को रखे हुए थे। यदि मेरे हिरदय को चीरा जाए तो उसमें आपका ही फोटो मिलेगा।

छठा पृष्ठ

मुझे आप अपना कमल फूल जैसा मुंह कब दिखा सकेंगे यह मुझको बिस्वास नहीं होता है। प्रानेस्वर हरदम आप ही का गोरा झक-झक चेहरा मेरे सम्मुख रहता है। रात-दिन मैं उदास ही रहती हूं। सखी-बहिनपा सब पूछती है कि क्या हुआ है। मैं क्या बोलूंगी मैं चुप ही रह जाती हूं। जो सुनेगा वही हंसेगा मेरा दुःख कोई नहीं बूझेगा। गरीब का दुःख कौन बूझता है? प्रानेस्वर मैं बिसेस पढ़ी हुई नहीं हूं इसीलिए अक्छर पर ध्यान नहीं दीजिएगा गलतियों को छमा कर दिजिएगा जो बात कह रही हूं सो बुझिएगा। दसमी में जरूर आइएगा मैं आपकी राह देखती हूं। आप ही की आशा में देह में प्रान अटके हैं। आप नहीं आएंगे तो मैं कुएं में कूद कर मर जाऊंगी। पति परमेस्वर जी, आपको छोड़कर मेरी कोई गति नहीं है अब दूसरे मनुष्य से बिवाह नहीं हो सकता है। किसी के साथ भाग जाऊंगी सो मैं मां और काकाजी का नाम नहीं डुबाऊंगी कलंक नहीं लूंगी। आप आए थे होली में तो मुझसे कुछ भी बातचीत नहीं हुई। मन पियासा रह गया। मन की आशा मन में ही रह गई अब मैं दिन-रात बेकल रहती हूं। दिन किसी तरह बीत जाता है। मगर रात में आपकी याद आती है भर रात मैं छटपट करती रहती हूं। आप कब आइएगा आप कब आइएगा तोते की तरह यही रटती रहती हूं।

सातवां पृष्ठ

प्रानेस्वर अभी मेरी उम्र, मेरे यौवन पर कितने ही लोग ललचा रहे हैं इसी सावन में मुझ पर अठारहवां चढ़ा है मगर मैं अपना मन ढककर रखती हूं। जब भगवती ने आपके जैसा स्वामी दिया है तो अपना धर्म खराब नहीं कर सकती हूं। आप पहचानते ही होंगे पछबारी टोले के राजबंसी बाबू दरभंगा में परोफेसर हैं गांव के संबंध से हमारे चाचा होंगे। दो महीने पूर्व मुझे बोखार होता था तो वे अपने ही पैसे से अंग्रेजी दवाई ले आए थे मगर मैं उनको भली-भांति से पहचान गई हूं। उनसे गप्प भी नहीं करती हूं। प्रानेस्वर आप मुझे अपने साथ पटना ले चलिए, मैं एक छन भी इस गांव में नहीं रहूंगी। आप जो दीजिएगा वही पहनूंगी आप जो दीजिएगा वही खाऊंगी मैं आपकी ही होकर रहूंगी प्रानपति मुझे यहां से ले चलिए। मेरी सखियां मुझसे मजाक करती हैं कि गुलाब दाई होली में भी तुम्हारी आशा पूर्न नहीं हो सकी और दसमी आ रही है। भगवती दुर्गामाता सबका कल्यान करती हैं आप दसमी में जरूर आइएगा।

आठवां पृष्ठ

अब मुझसे लिखा नहीं जाता है कागज खतम हो गया है। बचनू की कापी से कागज फाड़कर चिट्ठी लिख रही हूं ज्यादा क्या लिखूं कम लिखती हूं बेसी बुझिएगा। आपकी चिट्ठी से मालूम हुआ कि आप बहुत कष्ट में हैं सो कल मैंने अपना छागर (बकरे का मेमना) बेच दिया है। छागर छोटा था दसमी में बेचती’ तो बीस रुपैया से कम नहीं मिलते अभी बेचने से तेरह रुपैए ही मिले सो तेरह रुपैए एक दसटकिया और तीन एकटकिया इसी चिट्ठी में रखकर भेज रही हूं। पत्र का जबाब जल्दी दीजिएगा। एक बार फिर निहोरा करती हूं। प्रानेस्वर दसमी में अवश्य आइएगा-

आपकी ही प्रान प्यारी

माधवी देवी

मूल मैथिली से प्रतिमा द्वारा अनूदित

  • दशहरे में बलि-प्रदान के समय मेमने की कीमत बढ़ जाती है।