निराकार कॉलेज / फतूरानंद / दिनेश कुमार माली

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फतुरानंद (1915-1995),

जन्म-स्थान:- कटक

प्रकाशित-गल्पग्रंथ-“साहित्य चाष”,1959, “मंगलवारिआ साहित्य संसद”,1963, “हसकुरा”, 1972, “विदूषक”, 1972, “भोट”,1980, “गमत”,1982, “नवजिआ”,1983, “मस्करा “,*1985, “हेरेसा”,1988, “टापुरिआ”,1988, इत्यादि –समुदाय 20 किताब।


मैट्रिक परीक्षा फल का पुरानी कब्जियत से छुटकारा पाने की तरह तुरंत खुलासा हो गया। बोर्ड वालों ने शांति की सांस ली। कीड़े- मकोड़े की तरह मैट्रिक का फाटक पार अनेकों बच्चे इधर-उधर भटकने लगे। अचानक अदिन बे-मौसम बारिश होने से जिस तरह राहगीर पास स्थित दुकानों के भीतर शरण लेते हैं, ठीक उसी प्रकार उच्च प्रथम श्रेणी से पास हुए विद्यार्थी आस-पास के अच्छे कॉलेजों में घुस गए। स्थानाभाव होने पर जैसे बहुत सारे अधभीगे राहगीर छटपटाकर सिर छुपाने की एक जगह पाने के लिए इधर-उधर दौड़ जाते हैं, ठीक उसी तरह निम्न श्रेणी वाले अपनी शरण लेने के लिए विभिन्न कॉलेजों के आगे-पीछे दौड़ना शुरु कर देते हैं। कॉलेज के भीतर प्रवेश पाना उनके लिए एक दुसाध्य कार्य था। माल कम, खरीददार ज्यादा होने पर माल की कीमत आसमान छूने लगती है। ऐसी अवस्था में घटिया माल सभी बाजारों में दिखाई देता है। लोग बाध्य होकर उसको खरीदने लगते हैं। कॉलेज के क्षेत्र में भी यही नियम लागू होता है। बड़े और अव्वल नंबर के कालेज उतने के उतने। लड़कों की संख्या बेशुमार। यही अवस्था कई सालों तक लगी रही। फलतः शिक्षा बाजार में साधारण कॉलेज सारे राज्य में वर्षा ऋतु में पैदा हुए कुकरमुत्ते की तरह छा गए। खरीददारों की संख्या की अपेक्षा दुकानों की संख्या ज्यादा होने से दुकानदार खरीददारों को अपने पास लाने के लिए दलाल लोगों को नियुक्त करते हैं, खरीददारों की चमचागिरी करते हैं। खरीददार किस तरह से उनकी दुकानों की तरफ आकृष्ट हो, उसका उपाय खोजते हैं। चमकते प्रकाश में दुकान सजाते हैं। कुछ दर बढ़ाकर तो कुछ लाभांश कम कर मुफ्त पुरस्कार बांटते हैं। केशमेमों के ऊपर लॉटरी निकालते हैं।

सुंदर लड़के और लड़कियों को बतौर सेल्समेन नियुक्त करते हैं. यह हुआ उनका आकर्षक नियम। यह नियम हर जगह लागू होता है। कुछ गिनी चुनी कॉलेजों को छोड़कर बाकी सभी कॉलेजों में यह नियम लागू होता है। उच्च द्वितीय श्रेणी लड़को के द्वारा ये सभी अल्प संख्यक छत्तू कॉलेज कुछ ही समय में पूरी तरह से भर जाते हैं। बाकी सभी छत्तू कालेजों में यह नियम पूरी तरह से लागू होता है।

इस आकर्षक तरीकों के विषय में छत्तू कॉलेज के कर्तपक्षगण दलालों को अच्छी तरह सिखा देते हैं। उस वर्ष मैट्रिक परीक्षा फल निकलते ही ये सारे दलाल सही जगहों पर चौकसी लगाकर तैयार बैठ गए हैं।

एक नंबर कॉलेज के दलाल सीधे सरपट छात्र के घर जाकर उसे तथा उसके अभिभावक के सामने फेरी वाले की तरह अपना रटा- रटाया भाषण शुरु कर देता है, “श्रीमान, हमारे कॉलेज के अध्यापक छात्र को कठोर लगने वाले विषयों पर कड़ी नजर रखते हैं। जब तक उस विषय में बच्चे की पकड़ मजबूत नहीं होगी, तब तक उसका पीछा नहीं छोड़ते हैं। इसलिए हमारे कॉलेज में तोखडमार अध्यापकों की नियुक्ति की गई है। फिर भी परीक्षा के समय किसी कारणवश छात्र की कलम रूक जाती है, तब हमारे निगरानी रखने वाले अध्यापक उसको पीछे से याद दिला देते हैं। कलम रुक जाने के स्थान पर रास्ता-ठिकाना बता देते हैं। इस कारण परीक्षार्थी की कलम ठीक रास्ते पर जाती है और वह ठीक नंबरों से पास हो जाता है। परीक्षार्थियों की क्लास में तथा परीक्षा हॉल में सहायता करना नितांत जरुरी है। और देर करना बेकार है। आज ही आइए, साथ ही साथ नाम लिखा दीजिए। अत्यधिक आतुर अभिभावक और छात्र इस दलाल की खोल में फंस जाते हैं।”

दो नंबर कॉलेज के दलाल कुछ छात्रों के सामने जीवन बीमा एंजेटों की तरह अपना व्यक्तव्य देने लगते हैं, “श्रीमान, प्रत्येक कॉलेज मे कम उपस्थिति और लेक्चरों की कमी होना एक बहुत ही विरक्ति जनक विषय है। यह बात हर कॉलेज में परीक्षा के समय पता चलती है। नवयौवन प्राप्त किए छात्र कॉलेज में आकर जीवन के स्वाद को पाने के लिए इधर-उधर भटकने लगते हैं। हाईस्कूल में उसी स्वाद को छोड़कर दूसरा कोई स्वाद उन्हें नहीं मिलता है। कॉलेज में इन सारे स्वादों का प्राचुर्य उन्हें इधर-उधर खींच ले जाता है। फलस्वरूप कॉलेज में उपस्थिति की कमी हो जाती है। इस कमी के कारण छात्र विश्वविद्यालय की परीक्षाएं नहीं दे पाते हैं। ब्रिटिश जमाने का सड़ा गला कानून आज तक चला आ रहा है। कोमलमति विद्यार्थी कहीं इस कानून के शिकार होकर अपनी जिन्दगी बर्बाद न कर दे। झूठे सर्टिफिकेट लाने के लिए डॉक्टर के पास में सिर झुकाकर विनती करनी न पड़े, अध्यापकों के पांव के तलवे न चाटे ! हमारी कॉलेज में यह सब नहीं होता है। नाम लिखवाकर मासिक शुल्क भर देने से काम खत्म। तुम्हें इसके बाद क्लास में नहीं आकर विलायती दारू की दुकान खोलकर बैठने से भी चलता है। किसी भी तरह की कोई असुविधा नहीं है।”

तीसरे नंबर के कॉलेज का दलाल कहने लगा, “हमारा कॉलेज पास कराने की गारंटी लेता है। क्योंकि हम परीक्षार्थियों को कॉपी करने की पूरी सुविधा देते है। बच्चें कापी-किताब लेकर मनमानी नकल करते है। निगरानी रखने वाले हाल के बाहर विश्विद्यालय के औचक परिदर्शकों की टीम का ध्यान रखते हैं। दूर से किसी को आता देखकर ईशारों से संकेत दे देते हैं। भीतर सहायता करने वाले तुरंत ही कापी-किताब छुपा देते हैं। बाहर फाटक में ताला लगे रहने के कारण से औचक परिदर्शक हाल में अचानक नहीं घुस पाते हैं। कापी किताबें छुपाने का पर्याप्त समय मिल जाता है।”

चौथे नंबर के कॉलेज का दलाल कहने लगा, “परीक्षा हाल में अच्छी तरह से कॉपी करना सहज नहीं है। प्रश्न देखकर उसका उत्तर किताब में खोजेंगे, व्यर्थ समय नष्ट होगा। इधर किताब को देखना उधर पुस्तिका में लिखना। मन से लिखने में जितना समय लगता है, उससे दुगुना समय लगता है कॉपी करने में. इसी समस्या का निदान करने के लिए हमने एक बढ़िया रास्ता निकाला है। प्रत्येक परीक्षार्थी के साथ एक पुस्तकाचार्य को साथ ले जाने की सुविधा हमने कर दी है। पुस्तकाचार्य किताब खोलकर पढ़ेगा और विद्यार्थी कापी में लिखेगा। अगर विद्यार्थी की इच्छा होगी तो दो पुस्तकाचार्य भी साथ ले जा सकता है। एक प्रश्न पढ़कर उत्तर खोजेगा और उसे बोलने का काम दूसरा कर लेगा। दूसरा बोलते समय वह दूसरे प्रश्न का उत्तर खोजने लगेगा। इस कारण से उत्तर लिखना जल्दी हो जाएगा। प्रश्नकर्ता आजकल जानबूझकर लंबे- लंबे प्रश्न देते हैं ताकि कॉपी रत्नों को कॉपी करने का समय नहीं मिलेगा। उसी का यह इलाज हमारे कॉलेज में है।”

पांचवें कॉलेज का दलाल हांकने लगा, “एक घर के भीतर बैठकर उत्तर लिखने में बहुत समय लगता है, यह एक विरक्ति जनक काम है। मानसिक तनाव बहुत समय तक रहने से स्नायुतंत्र प्रभावित होता है। औचक परिदर्शकों के आने के दिन को छोड़कर हम परीक्षार्थियों को कॉलेज से सटे आम के बगीचे या हॉस्टल में ले जाकर लिखवाने की व्यवस्था करते हैं। समय खत्म होने से पहले उन्हें परीक्षा हॉल में पहुंचा दिया जाता है। औचक परिदर्शक आने के दिन विश्वविद्यालय में नियुक्त हमारे गुप्तचर पहले से ही हमें इस बात की इत्तला कर देते हैं। उनके आने के दिन हम सतर्क हो जाते हैं। परिदर्शकों की चमचागिरी में लग जाते हैं. डाक बंगले में ले जाकर उन्हें अच्छा भोजन करा देते हैं। कार में बैठाकर दर्शनीय स्थानों पर घूमने ले जाते हैं। उनके सब रिपोर्ट ठीक- ठाक लिखकर जाते समय उनके बालबच्चों के लिए मिठाई का एक बड़ा पैकेट पकड़ा देते हैं, भले ही वे शादीशुदा हो या न हो फिर भी वे खुश होकर जाते हैं।इन सब काम के लिए जगन्नाथ के पंडों से विशेष तालीम पाया हुआ एक अध्यापक हमारे कॉलेज में है।”

छटे कॉलेज का दलाल कहने लगा, “कॉपी करने के इस कष्ट साध्य काम से बचने के लिए हमारे कॉलेज ने और एक बढ़ीया रास्ता खोज लिया है। हमारे प्रिंसिपल के पास एक- दो दिन पहले प्रश्न पत्र आ जाते हैं। उन्हें रात को ही परीक्षार्थी टेप लेते हैं। उनके साथ- साथ एक- एक पुस्तिका दे देते हैं। परीक्षा के पहले दिन रात में ही परीक्षा खत्म हो जाती है। उस दिन परीक्षा हॉल में केवल पुस्तिका बदलने का काम ही रह जाता है।”

सातवें कॉलेज का दलाल कहने लगा, “जितनी भी नकल कर लेने से भी पास होने की गारंटी कोई नहीं दे पाता है। लंदन शहर में अति गुप्त तरीके से एक परीक्षा हुई थी। एक नमूना प्रश्नों के उत्तर एक नामी अध्यापक ने लिखे थे। उसे एक आदमी ने ठीक- ठीक तरीके से 20 पुस्तिकाओं में उतार लिया था। उसके बाद ब्रिटेन के छँटे हुए नामी बीस अध्यापकों को उन पुस्तिकाओं की जांच के लिए दे दिया गया था।

बीस प्रकार के नंबर आए। उनमें फेल से लेकर प्रथम श्रेणी तक हर प्रकार के नंबर थे। यह थी परीक्षक की परीक्षा। जितना भी करने से कोई- कोई चालाक परीक्षक परीक्षार्थियों को पानी पिला देता है। इस तरह केवल कॉपी करने से पास होने की कोई गारंटी नहीं है। पुस्तिकाएं जिस परीक्षक के हाथों में पड़ती है, हमारे अध्यापक सीधे उनके पास चले जाते हैं। अच्छी तरह जान- पहचान नहीं होने पर उनके अंतरंग बंधुओं को साथ ले जाते हैं। परीक्षकों को जो जरूरत या अति प्रिय चीज हो, उन्हें साथ में ले जाते हैं। खाते में नंबर बढ़ाकर आ जाते हैं। पास होने की गारंटी इसी तरह से मिलती है। कहीं परीक्षक पीछे से खेल न खेल दे इसलिए टाबूलेटर को भी हाथ में लेना पड़ता है। इसलिए पास होने की शर्तिया गारंटी के लिए जो खर्च आता है, उसे परीक्षार्थियों को वहन करना पड़ता है।”

आठ नंबर के कॉलेज के दलाल संपन्न परिवार के कुछ छात्रों को अकेली जगह पर ले जाकर चुपचाप कहने लगे, “हमारे कॉलेज में नाम लिखवाओ। पढ़ाई करना और परीक्षा देने का झंझट ही खत्म। यह कॉलेज केवल सेठ, साहूकार, बड़े - बड़े रिश्वतखोर ऑफिसरों के सुपुत्रों के लिए बना है। गरीब लोग इस कॉलेज में घुस नहीं सकते हैं। केवल पैसे देने से ही सब सर्टिफिकेट, डिप्लोमा, डिग्री, हम दे देते हैं जो भी हो, दाम सुनते जाओ। एम.ए. प्रथम श्रेणी दस हजार, द्वितीय श्रेणी नौ हजार, बी.ए (ऑनर्स) आठ हजार, बी.ए. पास छह हजार, मैट्रिक चार हजार, एल.एल.एम पांच हजार और एल.एल.बी चार हजार। ये सब डिग्री लेकर दूसरे राज्यों में भी नौकरी पा सकते हैं। सामान्य ज्ञान मान्यता कुछ बढ़ा लेने से अधिक सुविधाजनक।”

एक साथ सभी छात्रों ने पूछा, “इस कॉलेज का नाम क्या है? कहां खुला हुआ है? ”

दलाल कहने लगे, “इसका नाम है निराकार कॉलेज। आकार नहीं होने के कारण इसका कोई ठिकाना नहीं है। मेरे माध्यम से चेष्टा कीजिए, अभीष्ट तुरंत मिलेगा। इस डिग्री के बल पर दूसरे राज्यों में नौकरी करना अधिक सुविधा जनक है।

छात्र अवाक होकर एक दूसरे का मुंह ताकने लगे।