निरी मक्कारी / कांग्रेस-तब और अब / सहजानन्द सरस्वती
जो समझते हैं कि ये बातें महात्माजी के प्रति इन बाबुओं की भक्ति की सूचक हैं वे भूलते हैं। इन्हें उस भक्ति से क्या ताल्लुक ? इन्हें तो अपना पाप छिपाना और उल्लू सीधा करना ठहरा और इनने देखा कि अगर कंठी-माला और राम नाम के पीछे सारे कुकर्म छिप जाते हैं तो हम भी नए किस्म के राम नाम और नई कंठी-माला तैयार करें। इनकी यह निरी राजनीतिक कलाबाजी है। यह जयजयकार , यह रामधुन और यह चरखा धुन की कोरी आधुनिक कंठी-माला है। इन्हीं सब चीजों के पीछे राजनीतिक महापाप छिपे-धुलेंगे ऐसा इनने मान लिया है। धार्मिक साधु-फकीरों से ही धूर्ततापूर्ण राजनीतिक फकीरी का पाखंड इनने चालाकी से सीखा है। महात्मा ने लाख मना किया कि माउंटबेटन योजना को लात मारो और भारत को छिन्न-भिन्न मत होने दो। तो क्या इन बाबुओं ने उनकी एक भी सुनी ? बापू ने कहा कि कांग्रेस को तोड़कर लोक सेवक संघ बनाओ और इस तरह चुनावों में होनेवाले घोरतम कुकर्मों में उसे मत सानो। परंतु क्या इन राजनीतिक कलाबाजों ने उधर कान भी किया ? 1947 के 15 अगस्त के बहुत पहले क्या इनने गाँधीजी की अहिंसा को ठुकराकर उन्हें मर्मांतिक वेदना नहीं पहुँचाई थी ? तब उनके प्रति भक्ति का क्या सवाल ? जीते पिता के ठुकराने और निरंतर निरादर करने के बाद मरने पर उसका पिंडा-पानी करना इसे ही कहते हैं। यही तो मक्कारी है , और किसानों का भला तब तक न होगा जब तक इस मक्कारी का पर्दाफाश अमली तौर पर नहीं करते।