निर्गुण फ्यूजन / अन्तरा करवड़े

Gadya Kosh से
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"बहू! राजीव आजकल दिखता ही नहीं। परीक्षाएँ नजदीक है क्या?"


"नहीं माँजी! वो उसके ग्रुप को एक फ्यूजन कंसर्ट का प्रोजेक्ट मिला है। उसी पर काम चल रहा है। आज शाम को ग्रुप का रिहर्सल है वर्माजी के घर पर। आप चलेंगी?"


"हाँ हाँ जरूर! राजीव को भी गाते हुए सुनूंगी।"


शाम को ग्रुप का प्रदर्शन सचमुच शानदार रहा। सारे लड़के लड़कियाँ सुरीले थे और ताल पक्ष भी उम्दा था। लेकिन सब कुछ अच्छा होने के बावजूद सुनने वालों में से अधिकांश को समझ नहीं आया कि वो था क्या। घर आने पर दादी अपने आप को रोक नहीं पाई और राजीव से पूछ ही बैठी।


राजीव ने समझाते हुए कहा¸ "दादी! सुनने में अच्छा लगा ना? एक रिलेक्सेशन फीलींग¸ फेंटेसी¸ सूदिंग इफेक्ट सब कुछ देने का प्रयास किया था हमने । एक्चुअली दादी! ये नय जमाने का फ्यूजन म्यूजिक है जिसमें बंधनमुक्त टाईप का एक्सप्रेशन होता है। किसी राग¸ ताल या समय की बंदिश नहीं होती। बिना किसी भाव के बस संगीत के स्वरों में¸ अपने में उतरकर एक तरीके की उपासना की जाती है। ये है नया इनवेन्शन¸ फ्यूजन म्यूजिक...ता...रा...रा...।"


राजीव ने फ्यूजन की फेंटेसी में गुम होते हुए अपने कमरे की राह ली। दादी इन निर्बन्ध¸ निस्सीम परिभाषाओं¸ नये कहे जाने वाले आविष्कार को कबीर की सदियों पुरानी निर्गुण भक्ति साधना से तौलती रही। आदी शंकराचार्य के अद्‌वैत और विशिष्टाद्‌वैत को तौलती रही।


उनके चेहरे पर संतोष के भाव उभर आए। आज भी हमारी जड़ें मजबूत है। वे निश्चिंत थी।