निर्दलीय होने का सुख / सुशील यादव

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पहली बार उनका सामना माइक से हुआ|

आपको पांचवी बार निर्दलीय चुनाव लड़ते हुए कैसा लग रहा है ?

वे बोले,मै बहुत खुश हूँ|

क्या आपको उम्मीद है ये चुनाव आप निकाल लेंगे ?

देखिये !चुनाव निकालने के लिए पैसे,प्रचार,कार्यकर्ताओं की फौज जरूरी होता है|मेरे पास ये सब न तब थे, न अभी हैं|इस हालत में चुनाव निकाल लूँ .....ऐसी मेरी सोच कभी नहीं रही |

फिर आप क्यूँ बार –बार मैदाने-जंग में कूद जाते हैं ?

देखिये !हम गांधीजी के अनुयायी हैं|उनके साथ पैदल तो नहीं चले,कभी जेल में रहने का भी तजुर्बा नही रहा, मगर हम देश को उतना ही प्यार करते हैं|

महात्मा गांधी ने कहा था ; “आपका कोई भी काम महत्वहींन हो सकता है, लेकिन महत्वपूर्ण ये है कि आप उस काम को करें तो सही|”

हम जानते हैं हमारा निर्दलीय चुनाव लड़ना महत्वहीन है,लेकिन महत्वपूर्ण ये है कि हम मतदाताओ की जागरूकता की परीक्षा ले रहे हैं,आप समझिये कि ये गांधीगिरी का प्रयोग है|

मतदाताओ को बिकने दो,मुफ्त की पीने दो,वादा-खिलाफी के दंश सहने दो, वे एक दिन लौट के अच्छे केन्डीडेट के पीछे आयेंगे जरुर|

-आपको लोग यहाँ जानते भी तो नहीं,आप पिछले पांच इलेक्शन से बेनाम से खड़े हो जाते हैं हजार-दो हजार वोट बटोर पाते हैं बस ?

-आपको मालूम है हमारे देश में वोट बटोरना,भीड़ जुटाना कोई ज्यादा मुश्किल काम नहीं|बहुत सीधे –सादे लोग हैं यहाँ|

बाबाओ के प्रवचन में, जहाँ वे लोग चंद घरेलू नुस्खे,सर्दी-जुकाम की दवा और केंसर से लेकर असंख्य असाध्य रोग को जड-मूल से दूर करने का दावा फेकते हैं पब्लिक टूट के आती है|केवल आती ही नहीं पूजा भक्ति भी शुरू कर देती हैं|बाबाओं का ताबीज –पानी बिकने लगता है|वे घास-फूस को भी पेक कर दें तो लोगो में लेने की होड़ लग जाती है| हमारे यहाँ ‘दावा’ को परखने की “अमेरिका स्टाइल” वैज्ञानिक कसौटी नहीं है|लोग वहम पालते हैं|एक के कहे हुए को अनेक लोग फैलाते हैं|

टीव्ही चेनल में एक कुर्सी पर बिना हिले डुले बैठे हुए का ढ़िंढ़ोरा पिट जाता है, ये वही शख्श है जो शुगर पेशेंट को खीर खाने की सलाह दे के अपने को अवतारी पुरषों में गिनाये जाने का भ्रम पाल लेता है|शक्तियों की कृपा और कृपाओ की शक्ति दोनों इन पर मेहबान हैं|

एक योगी है जो लोगों को दो दिन के अभ्यास के बाद, खड़े कर-कर के पूछता है कि,वजन दो किलो कम हुआ कि चार ?लोग ढीले-ढाले कपडे पहने हुए,या बाबा की डिफेक्टिव मशीन में वजन करा के वहम पाल लेते हैं,समझो धोखा देने का गोरखधन्धा चला रखा है|

अपने देश को वहम की दुनिया से यथार्थ की दुनिया में ले जाने का हम सब को निर्दलीय बन के ही, बीड़ा उठाना पड़ेगा|आज लोगों को अरबों लूटने वाले ढोग-धतूरा बेचने वाले इन बाबाओं से मुक्त कराना होगा|

आप को लगता है,आप अपने मुहीम में किसी दिन सफल होंगे ?

मुझे नही मालुम|मगर मै कहे देता हूँ कि जैसे आपकी नजर मुझमे पिछले पांच इलेक्शन बाद अब पड़ी वैसे ही प्रपंची उमीदवारो से ऊबे हुए लोग मेरी मुहीम में शामिल होंगे|

इलेक्शन जीतने के आसान से नुस्खे हैं,मै अगर एक दिन का अनशन करता हूँ तो दस हजार वोट पक्का|अनुमान लगाइए कितने दिन के अनशन में मुझे लीड मिल सकती है ?

आज आपका मुझ पर लिया हुआ इंटरव्यू हब-हु छप गया तो वोट प्रतिशत में इजाफा जरुर होगा ये मान के चलिए|

लोग न जाने कितने वादे कर लेते हैं?वादा करने वाला मतदाताओं को हिप्नोटाइज्ड कर लेता है|आम-जन बखूबी उनकी बात को अपने फायदे से जोड़ के देखने लग जाते हैं|

यहाँ हर वो माल मिनटों में खत्म हो जाता है, जिसमे लोगो को एकबारगी फायदा सा ‘सहारा’ दिखता है|

-आपने कोई पार्टी ज्वाइन नहीं किया या पार्टी वाले आपको लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाए ?

-चक्कर तो कई लोग लगाए मगर,हम जैसे ‘अंतरात्मा’ रखने वाले लोगों के साथ, राजनीति में दिक्कत है|इसे बेचकर या इससे समझौता करके ही यहाँ कोई टिक सकता है|

मै चाहता हूँ शुद्ध अंत;करण वाले लोग आयें|

अगर लहर लाने का दवा-दिखावा करते हैं तो इतना ख्याल जरुर रखें कि रेत में लिखी पुरखो की इबारत कभी मिटने न पाए|

अपना चेहरा दो-दो आईने में देखने से, चेहरा बदला हुआ दिखेगा ये जरुरी नहीं ?