निर्द्वंद्व मूषक / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल
एक शाम एक कवि एक मजदूर से मिला। कवि रूखा था और मजदूर संकोची। फिर भी उनमें बातचीत हुई।
मजदूर ने कहा, "बहुत दिन पहले सुनी एक कहानी आपको सुनाता हूँ। एक चूहा चूहेदानी में फँस गया। उसमें बन्द वह जब आराम से पनीर खा रहा था, एक बिल्ली वहाँ आ गई। चूहा एक क्षण को डर गया; लेकिन जल्द ही उसकी समझ में आ गया कि वह यहाँ सुरक्षित है।
बिल्ली ने उससे कहा, "तुम आखिरी बार कुछ खा रहे हो दोस्त।"
"जी हाँ।" चूहे ने कहा, "मुझे एक ज़िन्दगी मिली है इसलिए मौत भी एक ही मिलेगी। लेकिन तुम्हारा क्या होगा? मुझे पता चला है कि तुम्हें नौ जीवन मिले हैं। इसका मतलब क्या यह नहीं है कि तुम्हें नौ बार मरना पड़ेगा?"
यों कहकर मज़दूर ने कवि की ओर देखा और बोला, "क्या यह अजीब कहानी नहीं हैं?"
कवि ने उसे कोई जवाब नहीं दिया। वह अपने मन में यों सोचता हुआ चल दिया, "वाकई, हम नौ जिन्दगियाँ जीते हैं, बेशक नौ। तब मरना भी हमें नौ बार ही होगा। क्या ही अच्छा होता कि हमें एक ही जीवन मिलता। पिंजरे में बन्द चूहे-सा - अन्तिम खाद्य के तौर पर पनीर के एक छोटे टुकड़े के साथ। क्या हम रेगिस्तान और जंगल के शेरों के कुनबे-वाले नहीं हैं?"