निर्माणाधीन 'पद्मावती' पर विवाद / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :03 नवम्बर 2017
आजकल राजनीतिक दलों के पास इतनी फुर्सत है कि एक निर्माणाधीन फिल्म को प्रतिबंधित करने की मांग कर सकें। कुपोषण से मौतें हो रही हैं, बाजार सूने पड़े हैं, किसान आत्महत्या कर रहे हैं, कीमतें आसमान छू रही हैं, बेरोजगार युवा नैराश्य से घिरे हैं। गंभीर समस्याएं हैं परंतु निर्माणाधीन फिल्म को प्रतिबंधित करते ही समस्याएं सुलझ जाएंगी? पहले राजस्थान में संजय लीला भंसाली की 'पद्मावती' की शूटिंग रोकी गई, फिर महाराष्ट्र में फिल्मकार को काम नहीं करने दिया गया। दूसरी तरफ दीपिका पादुकोण की रानी पद्मावती के गेटअप में सजी तस्वीर प्रकाशित हुुई तो उसी तर्ज की चीजों की बिक्री होने लगी। कौन लोग पद्मावती की तस्वीर लगी वस्तुएं खरीद रहे हैं और कौन लोग उसके प्रदर्शन को प्रतिबंधित करने की मांग कर रहे हैं? इनमें से किसी ने भी न फिल्म देखी है और न ही उसकी पटकथा पढ़ी है। किवदंती यह है कि अलाउद्दीन खिलजी को रानी पद्मावती की एक झलक आईने में दिखाई गई थी और वे स्वयं उसके सामने नहीं आई थीं। इतने मात्र से अलाउद्दीन को उससे प्रेम हो गया और उसने आक्रमण कर दिया परंतु हार सुनिश्चित होते ही रानी पद्मावती ने जौहर कर लिया।
फिल्म में रणवीर सिंह अलाउद्दीन खिलजी, दीपिका पादुकोण रानी पद्मावती और शाहिद कपूर उनके पति की भूमिका अभिनीत कर रहे हैं। अत: रणवीर सिंह और दीपिका अभिनीत पात्रों की कोई प्रेम-कथा नहीं है। कम ऊंचाई वाले शाहिद कद्दावर राजपूत राजा कैसे दिखेंगे तथा लोकप्रिय अभिनेता रणवीर सिंह को खलनायक खिलजी के रूप में अवाम कैसे पचाएगा। क्या पूरी फिल्म का भार दीपिका पादुकोण के सुंदर एवं सुडौल कंधों पर रहेगा? इस फिल्म का एक घूमर गीत जारी हुआ है, जो भंसाली की पुरानी फिल्म बाजीराव मस्तानी के नृत्य-गीत की तरह लग रहा है, जिसका अर्थ है कि भंसाली थके-मांदे से लग रहे हैं। फिल्मकार की थकान हर फ्रेम को ऊब से भर देती है और दर्शक उबासी लेने लगता है। प्राय: फिल्मकार स्वयं को दोहराने लगते हैं, क्योंकि नए विचार आना बंद हो जाते हैं। इस प्रक्रिया में परिमार्जन की गुंजाइश होती है।
हमारी सफलतम इतिहास प्रेरित फिल्म 'मुगल-ए-आजम' 5 अगस्त 1960 को प्रदर्शित हुई थी अौर मुंबई के मराठा मंदिर में टिकटों की अग्रिम बुकिंग के लिए एक खिड़की उन दर्शकों के लिए बनाई गई थी, जो पाकिस्तान से फिल्म देखने के लिए आए थे। उन्हें टिकट खरीदने के लिए अपना पासपोर्ट दिखाना होता था। फिल्मों के लिए जुनून सरहद के दोनों ओर एक-सा है। वे एक ही मांस के दो लोथड़े हैं और समान सांस्कृतिक मूल्यों में विश्वास रखते हैं। सुलगती सरहदें नेताओं ने इज़ाद की हैं। राजनीति की मंडी में नफरत आसानी से बेची जा सकती है। चीन मेंढकों को तोलने के प्रयास देखकर मौके का इंतजार कर रहा है। दो महायुद्धों के संहार को भोगने के बाद पश्चिम की इच्छा है कि अगर युद्ध आवश्यक ही हो तो तीसरा मुकाबला एशिया में रचा जाए। भारत में ही कुरुक्षेत्र का इरादा है। 'तमाम बारुदखानों पर पहरेदार है माचिस।'
के.आसिफ की 'मुगल-ए-आजम' की पात्र अनारकली का कोई जिक्र इतिहास में नहीं मिलता परंतु लाहौर में अनारकली नामक एक बाजार है। इस फिल्म के अंतिम दृश्य में बादशाह अकबर अनारकली को सुरंग के मार्ग से भारत के बाहर जाने की सुविधाएं प्रदान करते हैं। अत: अनारकली या उसकी संतान की वापसी की संभावना को बनाए रखा है। आशुतोष गोवारीकर की 'जोधा अकबर' को पहले देखें और फिर 'मुगल-ए-आजम' देखें तो एक कहानी अपने संपूर्ण रूप में उभरती है। 'जोधा अकबर' बेहतर फिल्म थी परंतु 'मुगल-ए-आजम' को वह मकाम हासिल है कि आप कोई समालोचना नहीं कर सकते। 'मुगल-ए-आजम' तो एक नाटक के रूप में भी मुंबई में फिरोज खान नामक व्यक्ति कर चुके हैं। वे शशि कपूर के सहयोगी रहे हैं। गौरतलब है कि 'मुगल-ए-आजम' में पूंजी लगाने वाले शापुरजी पालनजी की कंपनी ने ही नाटक में भी पूंजी निवेश किया था। इस पारसी कंपनी ने केवल दो फिल्मों में पूंजी निवेश किया है- 'मुगल-ए-आजम' और दिलीप कुमार की 'गंगा जमना।' वे रंगमंच के शौकीन थे और उन्होंने पृथ्वीराज कपूर की सिफारिश पर उसके नाट्य संस्करण में धन लगाया था।
आज पद्मावती विवाद में नेता भी कूद गए हैं और जातिवाद उनकी प्रेरणा है। भारत में जातिवाद कभी समाप्त नहीं हो सकता। यह हर क्षेत्र में फैला है। एक फिल्म में पुलिस अपराधियों को जीप मैं बैठाकर जेल की ओर ले जा रही है। एक निर्जन स्थान पर जीप रुकती है और पुलिस अफसर उन अपराधियों में अपनी जाति के एक अादमी को छोड़ देता है कि 'तुम हमारी बिरादरी के हो अत: भाग जाओ।' एक जेल से कुछ अपराधियों को भाग जाने की सहूलियत दी जाती है और उनके भागते समय उन्हें गोली मार दी जाती है, क्योंकि वे धर्मविशेष के अनुयायी थे। अपनी जाति के वोट बैंक को मजबूत करने के लिए यह सारा खेल रचा जाता है। इस प्रसंग में यह याद रखना होगा कि पद्मावती पर महाकाव्य मलिक मोहम्मद जायसी ने रचा था। मौजूदा विवाद निर्माता से धन ऐंठने के लिए रचा तमाशा है। यह वैसा है जैसे कई तरह के टैक्स लग रहे हैं।