निर्माणाधीन फिल्म '83' और तमाशा क्रिकेट / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
निर्माणाधीन फिल्म '83' और तमाशा क्रिकेट
प्रकाशन तिथि : 11 मई 2019


फिल्में बनाने वाली एक कॉर्पोरेट संस्था लंबे समय से '83' नामक फिल्म बनाने की तैयारी कर रही है। रणवीर सिंह भारतीय कप्तान कपिल देव की भूमिका अभिनीत करने जा रहे हैं। 30 मई से इंग्लैंड में विश्वकप के लिए प्रतिस्पर्धा प्रारंभ होने जा रही है। इसकी कुछ शूटिंग फिल्म में विश्वसनीय वातावरण बनाने में सहायक होगी। इसी तरह क्रिकेट केंद्रित 'जोया फैक्टर' भी बनाई जा रही है। कभी कृषि प्रधान कहलाने वाला भारत फिल्ममय होता हुआ क्रिकेटमय हो चुका है।

एक क्रिकेट तमाशा ग्रीष्म ऋतु में खेला जा रहा है और 12 मई को अंतिम मैच खेला जाएगा। इसका आयोजन ग्रीष्म ऋतु में दो कारणों से किया जाता है। एक तो यह कि शीतल पेय बनाने वाली कंपनियां प्रायोजक हैं, दूसरा यह कि विश्व क्रिकेट कैलेंडर में ग्रीष्म ऋतु ही खाली रही है। अब क्रिकेट बारहमासी हो चुका है।

वर्ष 1983 में भारतीय टीम कमजोर मानी जाती थी। उस दौर में कप्तान क्लाइव लॉयड की वेस्टइंडीज टीम का बड़ा दबदबा था। वेस्टइंडीज ने सभी देशों की टीमों को पराजित किया था और कहा जाता था कि सभी टीमों के श्रेष्ठ खिलाड़ी एकजुट होकर भी वेस्टइंडीज टीम को हरा नहीं सकते। भारत की टीम तो लीग स्तर पर ही बाहर होने वाली थी परंतु कपिल देव की तूफानी बल्लेबाजी ने भारत को बचा लिया। इस तरह फाइनल को बकरी और शेर की लड़ाई माना जा रहा था। पहले बल्लेबाजी करके भारत अधिक रन नहीं बना पाया था और यह माना जा रहा था कि वेस्टइंडीज टीम इस लक्ष्य को अत्यंत कम ओवर में प्राप्त कर लेगी। कई अप्रवासी भारतीय स्टेडियम से बाहर जाने लगे थे। वे ट्रैफिक जाम से बचना चाहते थे।

वेस्टइंडीज टीम विश्वास की अधिकता से लबरेज थी। यह अति आत्मविश्वास अच्छे-अच्छों को ले डूबा है। भारतीय टीम के पास खोने को कुछ नहीं था, अत: उन्होंने पूरे दमखम से खेलना प्रारंभ किया। मोहिंदर अमरनाथ इनस्विंग और आउटस्विंग दोनों कर लेते थे। गति नहीं वरन दिशा और सही जगह गेंद करने में वे माहिर थे। अति आत्मविश्वास से भरे विवियन रिचर्ड्स ने हिकारत के साथ एक कमजोर गेंद को अंतरिक्ष में भेजने के लिए मारा और कपिल देव ने कई गज दौड़कर गेंद को लपक लिया। इसी से खेल का रुख बदल गया। बकरी दहाड़ने लगी और शेर के पैर उसकी ही दुम में उलझ गए। क्रिकेट सटोरियों का दीवाला पिट गया। उस रात मुंबई के शिवाजी पार्क में रातभर जश्न मनाया गया।

तमाशा क्रिकेट कई शहरों में खेला जाता है। उन खेल मैदानों को हरा रखने के लिए करोड़ों लीटर पानी का अपव्यय होता है। ग्रीष्म ऋतु में पानी के लिए ग्रामीण लोग मीलों पैदल चलते हैं। सूखते हुए तालाबों से मेंढक भाग जाते हैं और कुओं से भांयभांय की आवाज आती है। साधनहीन के पेट से भी ऐसी ही आवाज आती है। पानी की कमी के दौर में पानी का ही नहीं बिजली का भी अपव्यय होता है। करोड़ों वॉट बिजली नष्ट हो जाती है, जबकि हजारों गांवों में आज तक बिजली नहीं पहुंची। इस विषय पर छत्तीसगढ़ के संजीव बख्शी ने बड़ी मार्मिक कथा लिखी है।

तमाशा क्रिकेट खेल के ग्रामर से संचालित नहीं है। महत्व केवल ताबड़तोड़ रन बटोरने का है। इस तरह के खेल के कारण बल्लेबाज अपने प्रशिक्षण को भूल जाते हैं। इस खेल का आंखोंदेखा हाल सुनाने वाले अजीबोगरीब आंकड़े देते हैं कि फलां बल्लेबाज पहले पांच ओवर में इतने रन बटोरता है और अंतिम ओवर में गेंदबाज कितने रन देता है। वर्तमान में चार लोग बारी-बारी से आंखोंदेखा हाल सुनाते हैं। वे खेल के मौजूदा क्षण से अधिक विवरण विगत का देते हैं या भविष्य की आशंका की बात करते हैं। हमारे एएफएस तल्यारखान पांच दिवसीय मैच का विवरण अकेले ही सुनाते थे। उनका विवरण इतना सटीक होता था कि कॉमेन्ट्री सुनने वालों को महसूस होता मानो वे स्वयं मैच देख रहे हैं।

तमाशा क्रिकेट में सटोरियों की मौज हो जाती है। सबसे अधिक धन सटोरिये कमाते हैं और पुलिस को उनका हक भी मिल जाता है। दुनिया में भारत एकमात्र देश है, जहां क्रिकेट सट्‌टा अवैध है। इसे वैधता देते ही लाइसेंस फीस के रूप में करोड़ों रुपए सरकार को मिल सकते हैं। वर्तमान में क्रिकेट सट्‌टा कालेधन में इजाफा कर रहा है।

तमाशा क्रिकेट ने कुछ खिलाड़ियों को करोड़पति बना दिया है। इस नवधनाढ्य वर्ग ने गैर-जरूरी सामान की खरीदी को बढ़ावा दिया है। दुनिया को विराट कबाड़खाना बनाया जा रहा है। हर घर गैर-जरूरी अटाले से भरा पड़ा है. तमाशा क्रिकेट खिलाड़ी रंगीन कपड़े पहनते हैं और सफेद बॉल से यह खेला जाता है। कभी किसी दमदार शॉट से गेंद स्टेडियम से बाहर जाकर किसी राहगीर के सिर पर लगे तो वह मर भी सकता है। अगर बल्लेबाज बामन और राहगीर दलित या इसका उलटा हुआ तो नेता लोग इस दुर्घटना को भुनाना चाहेंगे। दशकों पूर्व रोमेश शर्मा की फिल्म 'सितम' में फुटबॉल के गोलकीपर की छाती पर फुटबॉल लगता है और उसकी मृत्यु हो जाती है। खिलाड़ी मिथ्या अपराध बोध से दब जाता है। खेल की पृष्ठभूमि पर बनी 'लगान', 'चकदे इंडिया', व 'भाग मिल्खा भाग' महान फिल्में हैं।