निर्माता बोनी कपूर के तेवर / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 12 नवम्बर 2014
दस नवंबर की शाम यशराज स्टूडियो में एक ग्रामीण मेले का सेट लगा था जिसमें झूले भी लगाए गए थे और बीच में कबड्डी का पाला भी रचा गया था। यह सब बोनी कपूर की अर्जुन कपूर एवं सोनाक्षी अभिनीत 'तेवर' के प्रचार का प्रारंभ था और फिल्म का ट्रेलर भी दिखाया गया। कार्यक्रम के प्रारंभ में कबड्डी मैच हुआ, आगरा और मथुरा की टीमों के बीच और आगरा के लिए खेलते अर्जुन कपूर ने मैच जीता। मंच पर बचपन में साथ पढ़े सोनाक्षी सिन्हा और अर्जुन कपूर के बीच मजेदार नोक-झोंक चलती रही। बोनी कपूर के मित्र निर्माता और साथी सभा में मौजूद थे। विगत कुछ समय से फिल्मों का घटनाक्रम महानगरों और विदेश से निकाल कर छोटे शहरों में कर दिया गया है। हाल ही में प्रदर्शित 'दावत-ए-इश्क' की पृष्ठभूमि लखनऊ थी। 'दबंग' की पृष्ठभूमि बिहार थी। 'तनु वेड्स मनु' भी उत्तरप्रदेश की कथा थी। 'बुलेट राजा' भी उत्तरप्रदेश की पृष्ठभूमि पर बनी थी। 'रिवॉल्वर रानी' और 'पान सिंह तोमर' मध्यप्रदेश में चंबल के बीहड़ की कथाएं थी।
फिल्मकारों का महानगर मोह इसलिए समाप्त नहीं हुआ है कि वे सीमेंट के बीहड़ बन चुके हैं वरन् अनेक मध्यम शहरों के लोगों के पास पैसा है और उनके फिल्म के लिए जुनून महानगरों से अधिक है। आर्थिक उदारवाद के बाद आए परिवर्तन मध्यम शहरों में मुखर हो रहे हैं और उनकी महानगर बनने की इच्छा प्रबल है। टेक्नोलॉजी ने सारे शहरों के चेहरे बदल दिए हैं। फिल्में बाजार का हिस्सा है और उसकी महत्वाकांक्षा को अभिव्यक्त करती है। कॉरपोरेट धन से संचालित फिल्म उद्योग उसी का प्रचारक भी है। किसी दौर में अफवाह थी कि फिल्म उद्योग संगठित अपराध द्वारा संचालित है। दोनों ही आर्थिक शक्तियों द्वारा संचालित फिल्में अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता से दूर चली जाती है। उसका आर्थिक आधार कुछ भी हो, हर दौर में कुछ फिल्मकार उसी दायरे से बाहर जाकर सार्थक सिनेमा रचते रहे हैं।
बहरहाल 'तेवर' की झलकियां संकेत देती है कि सलमान खान नुमा फिल्म है। अर्जुन कपूर, सोनाक्षी सिन्हा और संगीतकार साजिद वाजिद इस विचार की पुष्टि करते हैं परंतु समारोह में मौजूद किसी पत्रकार ने जाने क्यों 'तेवर' के सलमान नुमा फिल्म होने की बात नहीं उठाई। फिल्म का नाम 'तेवर' भी दबंगनुमा नाम है। आज कल पत्रकारों की रुचि प्रेम प्रसंग और स्कैंडल में है। ज्ञातव्य है कि 'तेवर' भी दक्षिण भारत की सफल तेलुगू फिल्म का हिंदी संस्करण है। बोनी कपूर ने सबसे अधिक फिल्में दक्षिण से उठाई हैं। उनके घर का दक्षिण-मुखी होना भी आश्चर्य की बात नहीं है। बहरहाल आज कल दक्षिण भारत और कोरिया में बनी फिल्मों से कथाएं उठाई जा रही हैं। साजिद खान कोरिया की 'माय गर्लफ्रेंड इज़ एन एजेंट' का भारतीयकरण कर रहे हैं। बहरहाल सलमान नुमा फिल्मों की लोकप्रियता का यह आलम है कि रितेश देशमुख की मराठी फिल्म 'लय भारी' तो एक दशक पूर्व साजिद नाडियाडवाला ने सलमान के लिए लिखी थी। इसके बाद मराठी भाषा में सार्थक सिनेमा का प्रवाह रुक गया है।
गौरतलब यह है कि 'तेवर' के ट्रेलर लॉन्च का यह कार्यक्रम कम से कम बीस लाख रुपए में संभव हुआ होगा। 9 जनवरी 2015 को लगने वाली फिल्म के संगीत जारी करने पर इससे बड़ा आयोजन होगा। एक जमाने में फिल्म बजट का पच्चीस प्रतिशत सितारों का मेहनताना होता था और शेष धन फिल्म निर्माण पर लगाया जाता था। आज सितारों का मेहनताना बजट के पैंतालीस प्रतिशत तक पहुंचा है और प्रचार व्यय पच्चीस प्रतिशत तक जा पहुंचा है। कुछ बड़े सितारे फिल्म प्रचार पर तीस करोड़ तक खर्च करते हैं जिस राशि से श्याम बेनेगल तीन सार्थक फिल्में बना सकते हैं। दरअसल फिल्म का आर्थिक समीकरण ही नहीं बदला है वरन् अन्य क्षेत्रों में भी आधारभूत चीजों से अधिक व्यय दिखावे पर हो रहा है। बाजार में चीजें इसलिए महंगी है कि उनके प्रचार व्यय का लागत में जोड़ा जाता है। बोनी कपूर हमेशा ही साहसी फिल्मकार रहे हैं और फिल्म पर तथा प्रचार पर खूब धन खर्च करते हैं। वे फिल्म बनाते समय बजट नहीं बनाते। उनके पिता सुरेंदर कपूर, राजकपूर के मित्र और पड़ोसी थे, अत: उनके लालन-पालन और विचार प्रक्रिया पर भी राजकपूर की भव्यता का गहरा प्रभाव है। बोनी कपूर ने घाटे भी सहे हैं परंतु अपनी शैली नहीं बदली और शोमैनशिप उनकी रग-रग में समाया है। यह आयोजन उनकी शैली का ही हिस्सा है। 'तेवर' क शूटिंग आगरा और मथुरा के साथ अन्य शहरों में भी हुई है। बोनी का प्रयास इस फिल्म में छोटे शहरों के वातावरण का यथार्थ परक चित्रण रहा है। याद आता है दिलीप कुमार की 'गंगा जमुना' का कबड्डी दृश्य जिसमें उन्होंने बला की ऊर्जा प्रस्तुत की थी। आज के सिनेमा के व्यवसायिक तेवर से लबरेज होगी फिल्म।