निर्वासन / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
बड़ोॅ होयके कारण लालजी मड़रोॅ रो दुख भी बड़ोॅ छेलै। अपना जीवन काल में हुनी नै सिरिफ बापोॅ के अरजलोॅ संपत्ति केॅ जोगलेॅ छेलै बलुक सब चीजोॅ में वृद्धि भी करनें छेलै मतुर सबसें विपन्न हालत उनके छेलै। चारोॅ बेटा बड़ोॅ होय गेलोॅ रहै। चारोॅ जमीन-जघ्घोॅ लैकेॅ फरक होयकेॅ आपनोॅ बाल-बच्चा लैकेॅ रहेॅ लागलोॅ छेलै। माय-बापोॅ केॅ खाय-पियै, गुजर-बसर लेली २ॉ बीघा जमीन देलोॅ गेलै। चारोॅ बेटा में जेकरा ठियां रहै। बापोॅ-माय केॅ खिलौन-पिलौन, सेवा-वरदास्त जें करतै वें बीस बीघा के उपज खैतेॅ।
मतुर बड़का चकरधरोॅ केॅ छोड़ी केॅ कोय माय-बापोॅ केॅ अपना पास राखे लेॅ तैयार नै छेलै। ज़िन्दगी के अंतिम चौथोॅ वैस में शरीर के सब अंग शिथिल हुअेॅ लागै छै। वैसें लालजी निरोगी काया पैनें छेलै। सत्तर बरस के उमर में भी पनपन करै छेलै। तीरथ में सगरोॅ तीन-चार बार होय गेलोॅ रहै, अमरनाथ के जतरा बाकी बचलोॅ छेलै। बद्रीनाथ, केदारनाथ तीरथ करै के क्रम में पत्नी पंचोॅ केॅ ठंडा के कारण चार बरस पैन्हेॅ लकबा मारी देलेॅ छेलै। आधोॅ बायां अंग ही अधंगी कारनें बेकार होय गेलोॅ रहै। खटियै पर पड़लोॅ पैखाना-पेशाब करै छेलै। ओकरे सेवा सबसें बड़ोॅ समस्या छेलै आरो शायद यहेॅ कारण छेलै कि कोय बेटा अपना तरफें राखै लेली तैयार नै होय छेलै।
सोची समझी केॅ लालजी अमरनाथ यात्रा लेली तैयार होय गेलै। जैवा घरोॅ के झगड़ा फसाद सें उबलोॅ छेलवेॅ करलै। दंगा शांत होय गेलोॅ छेलै। गोपजी के फांसी आरो गांधीजी केॅ अकारण हत्या सें जैवा के मोॅन विरक्त होय गेलोॅ रहै। तितुवैलोॅ आरो विरक्त मनोॅ केॅ शाँति के ज़रूरत छेलै। जैवा भी यै यात्रा में साथें होय गेलै।
चैत-बैशाखोॅ के गेलोॅ पूरे आठ महिना बाद कातिक पूरनिमा में दूनोॅ भाय-बहिन अमरनाथ तीरथ करी केॅ लौटलै। पूरे साधू होयकेॅ। बद्रीनाथोॅ में साधू होयके छाप जैवा जबेॅ चकरधरोॅ केॅ देखैलकै तेॅ चकरधरें कहलकै, "साधु रोॅ बद्रीनाथी छाप लैकेॅ मतलब समझै छैं दीदी?"
जैवा दी हाँसलै, "सब समझियेॅ केॅ करनें छियै।"
"साधु केॅ घोॅर तेॅ नै आना चाहियो। जंगल, गुफा नैं तेॅ कम सें कम तीरथोॅ के कोनोॅ मंदिर, धर्मशाला में अरदास होना चाहियोॅ।" हँसतें ही चकरधर बोललै।
"घरोॅ में भी रहिकेॅ आदमी साधू हुअेॅ सकै छै। वैराग तेॅ मनोॅ के चीज छेकै। संसारोॅ में रहि केॅ संसारोॅ में राजा जनक नांकी रहोॅ। देह रहतें विदेह होना ही तेॅ साधू होना छेकै। घरोॅ रो बाहर सड़कोॅ के किनारा में घोघरा खेत जे छै, वही में एक ठो मंदिर बनवैवै। वाहीं पूजा-पाठ करबै, भगवान शिव-मैया पार्वती के पूजा आरो वाहीं रहवै। तोरा सें खाली एक्केॅ ठो विनती छै।" जैवा बोली केॅ चकरधरोॅ के मुँह ताकेॅ लागलै।
"की बात छै, बोलोॅ दीदी?"
"बद्रीनाथोॅ के छाप पड़ला के बाद उ$ पूरे साधू होय जाय छै। ओकरा मरला के बाद जरैलोॅ नै जाय छै, ओकरा मिट्टी देलोॅ जाय छै। हमरा मिट्टी दिहोॅ, यहेॅ तोरा सें विनती छौं।"
चकरधर खूब जोरोॅ सें हँसलै, "हमरा सें पैन्हेॅ मरभोॅ दीदी तबेॅ न।"
यही बीचोॅ में खखसलोॅ लालजी मड़र दुआरी पर सें आबी के ऐंगना में खाड़ोॅ होलै। प्रसाद निकाली केॅ सबकेॅ देलकै आरो एक ठो आखरोॅ ताँबा के नया थरिया में प्रसाद, पेड़ा आरो हरिद्वारोॅ के गंगाजल पंचोॅ पत्नी के आगू में दैकेॅ कहलकै, "लेॅ, खा, अमरनाथजी के प्रसाद छेकै। कहै छै, जें खाय छै उ$ अमर होय जाय छै। सीधे शिवधाम के अधिकारी होय जाय छै।"
श्रद्धा सें प्रसाद पावी केॅ पंचो बूढ़ी अधंगी मारलोॅ बांया अंगोॅ केॅ केन्होॅ केॅ झांपी केॅ दांया हाथ झगड़ै के मुद्रा में उपर करीकेॅ सखियारतें हुअें कहना शुरू करलकै, "हम्में झगड़ा नै करै छियौं मालिक, बढ़ियैं सें कहै छियौं, आबेॅ तीरथ-वैरागन छोड़ोॅ, आपनोॅ आरो हमरोॅ रहै के अलग कोनोॅ व्यवस्था करोॅ।"
लालजी मड़र खिसियाय केॅ बोललै, "जैवा, सूनैं, ई छींटखोपड़ी रोॅ। एैतें झगड़ा, बहस-विवाद शुरू।"
"तोंय बूझतैं नै छोॅ मालिक। बीस बीघा रो उपजा देखतैं हुन्नें तीनोॅ भाय रोॅ आँख चढ़ी गेलै। चार-पाँच घंटा इंटोॅ, पत्थर, तलवार आरो भाला चललोॅ छौं गजाधर आरो चकरधरोॅ में। गाँव दू पार्टी में होय गेलै, आधोॅ-आधोॅ दूनूं तरफें। ई तेॅ खर्रो जीतीया करनें छेलां जे चकरधर धरती पर छै। एक बड़का कमासुत बेटा काली माय खाय गेलोॅ। आबेॅ ई बड़का केॅ गजाधरें मारी देतोॅ। रसता पैरा उ$ पाँच-दस बदमास साथी साथें घात लगाय केॅ बैठलोॅ रहै छै। ई तेॅ खेललोॅ-खैलोॅ छेॅ हमरो ई बेटा जे रैनी सें जीती केॅ जिन्दा बचलोॅ छै।" कहतें-कहतें पंचोॅ टिहकोॅ पारी के कानें लागलै।
चकरधर बापोॅ के ऐंगना में एैतें घरोॅ सें बाहर चल्लोॅ गेलोॅ रहै। रहतियेॅ तेॅ ई रंग तुरत्तेॅ माय केॅ शिकवा-शिकायत करेॅ नै देतियै। मतुर माय तेॅ माय होय छै। ओकरोॅ ममता बरसेॅ लागलोॅ छेलै।
लालजी फेरू खिसियाइयेॅ केॅ बोललै, "बात ने बोलोॅ। कानी केॅ सौसे गाँव जुटैभोॅ की? ओकरा सीनी के कहना की छै। वें सीनी की चाहै छै। सबकेॅ जमीन जघ्घोॅ, घोॅर-दुआर बाँटी केॅ दैयेॅ देनें छियै।"
"जेकरा ठियां बाबू रहतै ओकरा मोटाय देतै। धोॅन-संपत बढ़ाय देतै। नै राखबै, नै केकरोॅ ठिंया रहेॅ देवै। घोॅर बनाय केॅ अलगैं रहोॅ। अलग जौं रहतै तेॅ मरला के बाद जे बचतै सभ्भेॅ के होतै। अखनियेॅ मरतै बाबू, चकरधरोॅ ठिंया जौं दसोॅ बरस रही गेलै तेॅ ओकरा उठाय केॅ बैठाय देतै, सबसें बेशी संपतवाला बनाय देतै।" एक्केॅ सांस में आपनोॅ बात कहिकेॅ पंचो आपनोॅ बिन दाँतोॅ रो थोथोॅ मुँह चभलावेॅ लागलोॅ छेलै।
लालजी मड़रोॅ केॅ तीरथ सें एैलोॅ, खिललोॅ खुशी सें भरलोॅ मुँह मुरझाय गेलोॅ छेलै। चिंता से मुँह कारोॅ जमीठ होय गेलै। लंबा सांस लेतें हुनी जैवा सें बोललै, "देखै छैं जैवा। कत्तेॅ हुलासोॅ सें भरलोॅ एैलोॅ छेलियै। की करौं। ई बाल-बच्चा सें तेॅ निसंतानेॅ भलोॅ। ऐकरे सेवा-वरदास आड़े आवै छै। विहैली पत्नी छेकै, सात फेरा, सात वचन दैकेॅ लानलेॅ छियै। बेटा, पुतोहू नै करतै, हम्में केना छोड़ी दियै। उठेॅ-बैठेॅ नै पारै छै, पानी बिना तड़पी केॅ मरी जैतेॅ। हे विधाता! है कौन दुख देल्हेॅ हमरा। ई नै रहतियै तेॅ हम्में जोगी, साधू, फकीर होय जैतियां। मरलोॅ मुँह ने देखेॅ देतियै करमनासी सीनी केॅ। ऐन्होॅ संतान होय छै। एक तेॅ जित्तेॅ-जिनगी मलिकपनोॅ छिनी केॅ जमीन, जघ्घोॅ, संपत बाँटी लेलकोॅ, आबेॅ खाय-पीयै, खटिया-बिछौनोॅ पर भी आफत। कथी लेॅ रात-दिन एक करी केॅ कमाय-कमाय जोगी केॅ राखलौ, यहेॅ दिन देखै लेॅ।" बुढ़ारी में संतान लाठी होय छै, यै सीनी उलटे लाठी मारै छै। " ई रंग लालजी अपना भाय केॅ विलाप करतें देखी केॅ जैवा भी हुनका नगीच आबी केॅ कानेॅ लागलै।
पंचो तेॅ हरदम्में कानतैं छेलै। चलै, फिरै में अशक्त पंचोॅ केॅ आपनोॅ जिनगी खुद उनका बोझोॅ नांकी लागै। यै लेली अपना लोगोॅ केॅ गारी देतें जबेॅ उनकोॅ मोॅन भरी जाय तेॅ भगवानोॅ के गारी दै। अखनी पंचोॅ शाँत छेलै आरो हतप्रभ-हतोपरास भी। जे पति केॅ आँखी में लोर जिनगी में अबतांय कहियो नै देखनें छेलै उनका कानतें देखी केॅ दया आरो प्रेम भाव से पंचो भरी गेलै। कानतें ही कहलकै, "मालिक! तोरोॅ दुख देखी केॅ हम्में तोरा अपना तरफोॅ सें मुक्त करै छियौं। हमरा जहर दैकेॅ मारी देॅ। बारी खंडोॅ में कोचलोॅ, माहुर ढ़ेरी फरलोॅ होतै, बड़ी किरपा होतौं, लानी केॅ दै देॅ। हम्में ई घिन भरलोॅ जिनगी सें उ$बी गेलोॅ छी।"
"ऐन्होॅ नै बोलियोॅ भौजी." जैवा अपनोॅ आँखी रो लोर पोछतें कहलकै।
"की कहै छोॅ जैवा तोंय। यहेॅ अच्छा होतै। देखै नै छोॅ गू मूतोॅ पर असहाय पड़ली छियै। चारोॅ तरफें माछी मच्छर भिन-भिन करी रैल्होॅ छै। कोय देखै वाला नै, केकरोह आँखी में पानी नै। तोरा सब केॅ गेला के बाद ई आठ महिना आठ युगोॅ नांकी बितलोॅ छै। एक्कोॅ करम पूरै लेली बांकी नै बचलोॅ। जैवा, झूठ नै कहै छियौं, जौं बारियो जाय रो सामरथ हमरा होतियौं तेॅ हम्में जहर खैनें रहतियौं।" पंचो अतना कहिकेॅ हिचकी-हिचकी कानें लागलै।
तनिये देर बाद पंचो के आवाज बंद होय गेलै। गला फंसी गेलोॅ रहैं। घिघियैलोॅ रुद्ध कंठ सें बोललै, "कंठ सूक्खी रहलोॅ छै। पानी देॅ।"
जैवा पानी देलकै। दिन के दोसरोॅ पहर बीती रैल्होॅ छेलै। कैतकारोॅ सुरुजोॅ के मीट्ठोॅ गुनगुना रौद चारोॅ तरफें फैललोॅ छेलै। लालजी केॅ आपनोॅ छोटका भाय अधिकोॅ पर बड़ी गुस्सा आबी रैल्होॅ छेलै। वहीं बेटा सीनी केॅ फोड़ी-फूटाय केॅ अपना तरफें लेनें छेलै, "भाय नांकी आपनोॅ भी संसारोॅ में कोय नै आरो भाय नांकी दुश्मनोॅ भी कोय नै। जखनी भाय-भाय, तखनिये ठाय-ठाय। बेटेॅ सब जबेॅ परबुद्धि होय गेलै तेॅ ओकरोॅ की दोष।"
खैतें-पीतें लालजी पंचो के ही निहारतें रहलै। हुनी पंचो के दुखोॅ सें बेशी दुखी होय गेलोॅ रहै। पंचोॅ के एक-एक बात उनका हिरदय में सौतारोॅ के बिषबुझलोॅ तीरोॅ नांकी गत्थी गेलोॅ रहै। बहुत कुछ सोचतें-विचारतें रहलै लालजी आरो साँझ होतैं उठलै आरो मुसहरी टोला दिस चली देलकै।
लालजी मड़रें जे सोची लै छेलै उ$ करी गुजरै छेलै। बेटा सीनी केॅ कहिकेॅ हुनी अलगे रहै केॅ व्यवस्था में जुटी गेलै। मड़र मकानोॅ के अंतिम छोर जै ठियां सें गुअरटोली खतम होय छेलै आरो थोड़ोॅ सूनफांट परती परांट खेतोॅ के बाद धनुकटोली, कुम्हरटोली आरो तेली टोलोॅ शुरू होय छेलै। टोला सें सटलोॅ सड़कोॅ केॅ दूनूं तरफें मड़रें के जमीन छेलै। यही जमीनोॅ में बीघा पाँच एक बारी छेलै जेकरा में लोॅत-पतार आरो आलू होय छेलै। जमीन उँच्चोॅ छेलै। पूरब तरफ मियां पोखरी सें सटलोॅ जमीनोॅ पर लालजी मड़रें अपना रहै वास्तें अलग घोॅर बनवाना शुरू करलकै। दू बड़ोॅ-बड़ोॅ छात समेत कोठरी, एक बैठकी आरोॅ ऐंगना, बड़ोॅ देखै लायक ओसरा, किवाड़-चौखट सब सखुआ-सीसम, खपड़ा के छौनी। दिवाल मांटी केॅ।
"डाड़ा टाका, गोड़ी बरद" वाला कहावत। पैसा होना चाहियोॅ-घोॅर बनतें देरी नै लागै छै। अगहनोॅ के पूरनिमा दिन पूजा-पाठ करी केॅ लालजी घरोॅ में वास लेलकै। पंचोॅ के देखभाल लेली अकलू नाम रो एक ठो नौकर मड़रें अलग सें राखलकै। पंचो अपना मालिकोॅ केॅ ई व्यवस्था सें सबसें बेशी खुश छेलै। आबेॅ उनका नै तेॅ जूठ्ठोॅ बरतनोॅ में मांछी भिनभिनावै छेलै नै तेॅ राखलोॅ-धरलोॅ पानी पीयै लेॅ पड़ै छेलै। गाय-मालोॅ के शौक खानदानी छेलै। दूध जिनगी में कहियो उठौनोॅ नै खैलेॅ छेलै। गाय एक नै दू ठो लानी केॅ गोड़ी में बान्हीं देलकै। सब चीज ठीक-ठाक चलेॅ लागलै।
साल पूरतें-पूरतें चारोॅ बेटा के रहन-सहन सें बाप बीस नै, पच्चीस होय गेलै। सोॅर-सवासिन, बेटी-जमाय, दोस्त-मोहिम सें घोॅर सुहानोॅ लागेॅ लागलै। पोता, पोती सब आबी केॅ खैबोॅ करै आरो दादा बाखरी में ही सूती जाय। कत्तोॅ टोकला पर बच्चा सीनी नै मानै। ऐकरा में सबसे बड़ो दिक्कत रात केॅ सुतलोॅ बच्चा केॅ गोदी करी केॅ एक बहियार लै जैवोॅ माय-बापोॅ पर भारी गूजरै।
चार बरस बीती केॅ पाँचवोॅ बरस के चैतोॅ के दिन छेलै। जैवा सपरिये केॅ बात करै लेॅ एैली छेलै। जैवा केॅ देखतैं लालजी मड़रें हाँसी केॅ कटच्छरी करतें कहलकै, "अधिकबा कन सें बड्डी दिनोॅ के बाद फुरसत होलोॅ छोॅ जैवा।"
"की करभोॅ भैया, जेकरा गोढ़ी खैवोॅ ओकरोॅ आगू पीछू तेॅ करै लेॅ ही लागै। पूजा-पाठोॅ में भी अच्छेॅ समय लागी जाय छै।"
"सब ठीक-ठाक चली रैल्होॅ छै न?"
"सब ठीक छै भैया। एक समाचार बड़ा खराब छौं।"
"की?" बड़ी अचरज सें लालजी मड़रें पूछलकै। "
"तोरा यहाँ से मेहरपुर भगाय के योजना छौं। अतना बढ़िया घोॅर, मकान तोरा संझला बेटा केशौरी केॅ खटकी गेलोॅ छौं। ऐकरा हड़पै रोॅ पूरे तैयारी चली रैल्होॅ छै।"
कुछ देर तांय हवासेॅ उड़ी गेलै लालजी के, फेरू शांत, रुआंसी आवाज में बोललै, "जे भोग यै धरती पर, यै जनमों में भोगना छै उ$ तेॅ भोगै लेॅ ही पड़तै। तोंय चिन्ता नै करोॅ। जा, अधिकोॅ तरफोॅ सें कोय देखी लैतौं तेॅ बात-बोली सूनै लेॅ पड़ी जैतौं। हमरै दूनोॅ भाय-बहिनी रो तकदीर जरलोॅ छै।"
उदास, भारी मनोॅ सें जैवा चललै। एक-एक कदम जैवा वहेॅ रंग धरी रहलोॅ छेलै जेनां बलि रो बकरा केॅ मलकाठोॅ ठियां लै जैतेॅ रहेॅ। सांझ के समय छेलै। लालजी मड़र माथा पर हाथ धरि केॅ चिंता में डूबी गेलै।
दोसरोॅ दिन एकादशी छेलै। एकादशी लेली पाँच पाथा दूधोॅ रो दही रातियेॅ मड़रें खाय वास्तें पोरवैनें छेलै। भियानिये किशोरी आबी केॅ झगड़ा शुरू करलकै। झूठ्ठोॅ के अकलंक लगाय केॅ सबसें पैन्हेॅ भरलोॅ दही रो कन्तरा फोड़ी देलकै। गारी, मारपीट एक्कोॅ बिद बांकी नैं बचलै। बांकी तीनूं भांय देखतें रहलै, बोललै कुछ्छू नै।
बाँका सें पाँच कोस दक्खिन मेहरपुर ओड़नी नदी किनारा में कोझी पहाड़ोॅ केॅ नीचें एक गाँव छै। सोनमनी मड़रोॅ के बाद खुद लालजी मड़रें चौवालीस बीघा जमीन खरीदनें छेलै। वाहीं २२ बीघा हिनकोॅ हिस्सा छेलै। वाहीं लालजी मड़रोॅ केॅ बेटा सीनी भगाय देलकै।
आयकोॅ खिस्सा यही ठियां छोड़ी केॅ जैवा दी जाय लेली तैयार होय गेली रहै। उनका आँखी में भरी-भरी लोर छेलै। बौकड़ी हाथोॅ में लैके पैन्हेॅ मीरा रोकलकै, "आय तेॅ रातोॅ बेशी नै होलोॅ छौं दीदी। आय सबसें बेशी कैन्हेॅ कानें लागलोॅ दीदी?"
"भैया के कपाड़ोॅ पर मारलोॅ लाठी, ओकरा सें छर-छर बहतें लाल-लाल खून आरो वही हालतोॅ में बैलगाड़ी पर सब सामान लादी केॅ उनकोॅ कानलोॅ मेहरपुर जैवोॅ याद आबी गेल्होॅ कनियान। धरती पर ऐन्होॅ धरमी आदमी कम्में जनम लै छै। सौसे गाँव देखवैया, केकरा आँखी सें लोर नै गिरलोॅ होतै। के नै कानलोॅ होतै गाँव भरी में। गाँव भरी के वियाह, शादी, गौना कराय छेलै। गरीब-गुरुआ के श्राद्ध संस्कार, रोग-बिमारी में पैसा के पैसा नै बूझै छेलै आरो उ$ आदमी केॅ ई दुर्दिन देखै लेॅ पड़लै।" जैवा दी बोलतें-बोलतें कपसेॅ लागलोॅ छेलै।
"बाकी ई तीनोॅ भाय कुछुवे नै बोललै?"
"गजाधर तेॅ मिललेॅ छेलै। ई दूनोॅ भाय झगड़ा डरें नै कुछ बोललै। मतुर कनियान, अत्याचार देखी केॅ चुप रहै वाला की कम दोषी होय छै।"
दीदी आगू कुछ भी कहै के स्थिति में नै छेलै। लोरेलोॅ आँखी दीदी वै रात के अन्हारोॅ में जावेॅ लागलै। हम्में हाव दिन दीदी केॅ मंदिर तांय पहुँचाय देलियै। रास्ता में एक भी शब्द नै बोलेॅ पारलेॅ दीदी।