निर्वासन / जेठो लालवाणी / देवी नांगरानी

Gadya Kosh से
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उसके हाथ तेज़ रफ़्तार से काँप रहे थे, चेहरा ज़र्द हो गया था। दिल की धड़कन रक्तवाहिनी धमनी की तरह चल रही थी। हाथ में टेलीग्राम थामे वह दरवाज़े की चौखट पर खड़ा था।

‘आप वहाँ क्यों खड़े हैं, अन्दर चलो, बाबा को ले आने की तैयारी भी तो करनी है।’ उसकी पत्नी आसूदी ने कहा।

पर वह ख़ामोश खड़ा रहा, उसकी आँखें टेलीग्राम में गड़ी रहीं।

‘आप सुन नही रहे, भीतर अम्मी भी आपको आवाज़ दे रही है।’ आसूदी ने एक बार फिर दोहराया।

मगर वह इस बार भी ख़ामोश रहा। आसूदी कुछ नाराज़ होती हुई आगे बढ़ी और उसके हाथ से टेलीग्राम छीन लिया। रमेश को जैसे झटका लगा और उसने सवाली निगाहों से आसूदी की ओर देखा।

‘आपको क्या हो गया है ? सब ख़ैरियत तो है ?’ आसूदी ने गंभीर होते हुए पूछा।

‘आसूदी.... बाबा....’ रमेश के मुँह से सिर्फ़ इतना ही निकला।

‘बाबा को क्या हुआ है ?’ आसूदी ने उतावलेपन में पूछ लिया।

सच से वाक़िफ़ होते ही आसूदी सिर्फ़ इतना कहकर - ‘ऐसा हो नहीं सकता... ऐसा...’ ज़ोर से चीखी और शोकायुक्त हालत में चक्कर खाकर वहीं गिर पड़ी।

‘आसूदी... आसूदी...’ कहते हुए उसने आसूदी को सँभालने की कोशिश की, पर उससे पहले ही वह बेहोश होकर फ़र्श पर गिर चुकी थी।

आसूदी की सास ने उसे होश में लाने की कोशिश की। ननंद ने चेहरे पर पानी के छींटे फेंके, पर न आसूदी होश में आई और न उसकी हालत में कोई परिवर्तन आया।

‘हे राम मेरी बहू को यह क्या हो गया ?’ आसूदी की सास ने अपनी व्याकुलता ज़ाहिर करते हुए कहा।

इतने में आसूदी का देवर तुलसी डॉक्टर को ले आया। आसूदी को पलंग पर लिटाया गया। डॉक्टर ने तपास के बाद बेहोशी का कारण ‘गहरा सदमा’ कहकर उसे इन्जेक्शन लगाकर होश में लाने की कोशिश की।

परिवार के सभी सदस्य सवाली निगाहों से रमेश की ओर देख रहे थे, पर वह ख़ामोश खड़ा रहा। कुछ देर में आसूदी होश में आते ही बड़बड़ाई -

‘बाबा... ये सब क्या हो गया ?’

आसूदी की सास ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बेटे की तरफ़ सवाली निगाहों से देखा।

रमेश ने एक नज़र घर के सदस्यों की ओर देखते हुए उन्हें तार दिखाई। ‘बाबा को चार दिन पहले कपास के कारख़ाने से आधी रात के समय अगवा कर ले गए हैं और उनकी जान बख़्शने के एवज़ दस लाख की माँग कर रहे हैं। ऐसी जानकारी बाबा के दोस्त सेठ रामचंद ने मीरपुर से तार के ज़रिये भेजी है और पैसे आज की तारीख़ में पहुँचाने हैं यह बताया है।’

ख़बर सुनते ही घर के सभी सदस्य स्तब्ध हो गए, सभी के चेहरे उदासी के कोहरे में ढक गए और वे ख़ामोशी से एक दूसरे को निगाहों ही निगाहों में कुछ पूछ रहे थे...!

‘अब क्या होगा ?’

आज शाम सेठ टोपणदास की इकलौती बेटी की शादी है। घर में बारात आने का वक़्त हो रहा है। घर में खुशी का माहौल, सभी गीत-संगीत की तैयारियों में लगे हुए हैं। आज शाम की फ़्लाइट से सेठ टोपणदास बेटी के कन्यादान के लिये पहुँचने वाले थे। उनके बेटे-बहू उन्हें हवाई अड्डे से ले आने के लिये सब तैयारियाँ कर चुके थे।

ऐसे ख़ुशी के मौक़े पर अचानक यह मनहूस ख़बर पोस्टमैन ले आया और तार पढ़ते ही सबके हाथों से उत्सुक परिंदे उड़ गए।

‘भाऊ, अब क्या होगा ?’ छोटे भाई तुलसी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा।

‘बेटा, तुम्हें आज ही मीरपुर जाना चाहिए, इनकी जान को ख़तरा है।’ रमेश की माँ मूली ने लरज़ते लहज़े में कहा।

‘अगर मैं गया तो शाम को शादी कैसे होगी ?’

‘भाऊ, मैं तब तक शादी नहीं करूँगी जब तक बाबा नहीं आते !’ मोहिनी ने भाई को विनती करते हुए कहा।

‘बहन ये तुम क्या कह रही हो ? घर में बारात के आने का समय हो गया है, अगर तुमने शादी से इन्कार किया तो हम लड़के वालों को क्या मुँह दिखाएँगे ? बहन अगर घर की चौखट से बारात लौटी तो समाज में काफ़ी बदनामी होगी।’

‘मुझे किसी की परवाह नहीं है। आप लड़के वालों को तार दिखाकर उन्हें हक़ीक़त से वाक़िफ़ करा दीजिये, मुझे विश्वास है कि वे हमारी मजबूरी को समझ जाएँगे।’

‘पर शुभ मुहूर्त को टालना और दरवाज़े से बारात को लौटाना तो अच्छा शगुन नहीं होता !’

‘मैं कुछ भी नहीं जानती, अगर बाबा न आये तो मैं शादी नही करूँगी।’ मोहिनी ने रोते हुए अपनी भाभी की गोद में मुँह छिपा लिया।

आसूदी ने मोहिनी को प्यार से आगोश में लेते हुए कहा - ‘बेटे ब्याहती लड़की को इस तरह रोना नहीं चाहिये। दिल को मज़बूत करो, सब ठीक हो जाएगा।’

‘पर भाभी... बाबा...’ मोहिनी ने सुबकते हुए कहा और रोने लगी।

‘बेटी तेरे बाबा को कुछ न होगा, तुम शांत हो जाओ।’ मोहिनी को समझाते हुए मूली ने कहा।

‘अम्मा, मुहूर्त किसी भी हालत में टाला नहीं जा सकता। आसूदी, तुम मोहिनी को भीतर ले जाओ, और फिर फ़्लाइट भी तो सुबह की है, मेहमानों के स्वागत की तैयारी कीजिये, तब तक मैं टिकट का बन्दोबस्त करके आता हूँ।’ रमेश ने सभी को अन्दर जाने को कहा।

‘अम्मा, बाबा को कुछ न होगा, आप कोई भी चिन्ता न करें।’ कहते वह पाँव छूकर घर के बाहर निकल गया।

मूली गुरु बाबा की मन्नत मानते हुए, जपसाहब की पौढ़ी पढ़ते-पढ़ते अपने कमरे की ओर चल पड़ी।

देश के बदनसीब विभाजन के वक़्त सेठ टोपणदास ने भी हिन्द में आने का प्रयास किया था। पर उनके अधेड़ माता-पिता अपनी जन्मभूमि सिन्ध को छोड़ने को तैयार ही नहीं हुए। टोपणदास उस वक़्त नौजवान थे, उन्होंने अपने माता-पिता को भारत चलने के लिये काफ़ी समझाया, पर उन्होंने अपने प्राण सिन्ध में ही त्यागने का अटल इरादा कर लिया था। उनके बाक़ी रिश्तेदार, पास-पड़ोस वाले निर्वासित होकर चले गए।

हुकूमत के हालात अनुकूल न होने के बावजूद वे वहीं रह गए। माहौल में क़ौमी तंगदिली फैली हुई थी। ग़ैर सलामती के दौर में उन्होंने अपना जीवन बिताना शुरू किया। अपनों से बिछड़ने के ग़म पर उन्होंने क़ाबू पाना शुरू किया। वक़्त अपनी तेज़ रफ़्तार से चलता रहा। टोपणदास के माता-पिता समय के साथ स्वर्गधाम पधारे। पैसे कमाने की होड़ ने उससे अपनों को याद करने की तौफ़ीक छीन ली। हुकूमत के हालात अनुकूल न होने के बावजूद भी उसे अपने फैले हुए कारोबार और कमाई हुई जमापूँजी में बेसलामती के दौर में भी अपनी सलामती नज़र आने लगी। उस वक़्त उसका एक ही इरादा था, कारोबार बढ़ाना और पैसे इकट्ठे करना। उसने पड़ोसियों, कर्मी-मज़दूरों और हुकूमत के निवासियों के साथ अपना रिश्ता बेहद पुख़्ता कर रखा था।

अचानक शांत माहौल में एक ज़ोरदार तूफ़ान उठा। हुकूमत में चोरियाँ, मार-धाड़, लूटमार और अगवा करने के वारदात सामने आए। सभी बसे हुए धनवानों के दिलों में आतंक का डर छा गया। ग़ैर सलामत का सर्प एक बार फिर फुफकारने लगा। कुछ को तो सांप ने डल लिया था।

हुकूमत में मार्शल लॉ और फौजी दौरे चालू रहने के बावजूद भी अगवा करने कराने और होने के हादसे होते रहे, कभी किसी मासूम, कभी किसी कारख़ाने के मालिक की लाश उसके कारख़ाने से ही मिली, तो कभी कोई ज़मींदार अपने फार्म में मरा हुआ पाया गया। कुछ पैसे वालों ने तो मुँहमाँगी रक़म देकर अपनी जान बख़्शा ली थी। मतलब तो हुकूमत की दहशत चारों ओर फैली थी। हिफ़ाज़त के लिए सख़्त बंदोबस्त भी किया गया था। कारनामों में दिन दुगुनी रात चौगुनी बढ़ोतरी हासिल हो रही थी।

लाचार होकर एक बार फिर नागरिकों ने ख़ुद को निर्वासित करना शुरू कर दिया। हुकूमत से पासपोर्ट और वीज़ा निकलवाकर भारत की ओर रुख़ किया। अपने व्यापार को समेटकर, करोड़ों की ज़ायदाद मिट्टी के दाम बेचकर, हमेशा के लिये अपनी जन्मभूमि को अलविदा करके, ख़ुद आकर अहमदाबाद, सिकन्दराबाद और अन्य शहरों में ठिकाना पाया।

हालाँकि टोपणदास की सियासती लोगों में एक ख़ास पहचान थी, उसके अपने बॉडीगार्ड थे, पर उन दहशत-अंगेज़ कारवाइयों ने उसके दिल को भी दहला दिया था। वह पल-पल ख़ुद को नामहफूज़ पाने लगा। उन दहशत की वारदातों का वह कभी भी निवाला बन सकता था। कोई अनचाहा हादसा हो उससे पहले वह भी वहाँ से निकलने का इरादा करके, हमेशा के लिये सिकन्दराबाद में ख़ुद को बसाने के लिए मनसूबे बना बैठा। उसने अपने घर के सभी सदस्यों के पासपोर्ट और वीज़ाएँ तैयार करवाईं और सुविधा से बारी-बारी अपने परिवार वालों को भारत भेजता रहा। अपने समस्त परिवार की जवाबदारी रमेश ने संभाल ली और आज उसकी बहन की शादी थी। सेठ टोपणदास इस वक़्त मीरपुर में अकेला रह रहा था। बाक़ी कारोबार समेटकर वह भी बच्चों के साथ निश्चित रूप से रहने और अपनी बेटी का कन्यादान करने के लिये आज की फ़्लाईट से सिकन्दराबाद पहुँचने वाला था।

पर अचानक यह मनहूस तार, सेठ टोपणदास के अगवा होने की ख़बर ले आई !

दो घंटों के उपरान्त रमेश हवाई जहाज़ की टिकट लेकर घर लौटा। बारात घर आ चुकी थी। ग़म को दिल में दबाकर वह भी मेहमानों की आव-भगत में लग गया।

शहनाई के सुरों में, विवाह के गीतों की आवाज़ में, हँसी-मज़ाक भरे ठहाकों के बीच दूल्हे-दुल्हन की विवाह वेदी पर पूजा शुरू हुई। लड़के वालों के चेहरे ख़ुशी से खिल उठे थे। माहौल में अलग-अलग क़िस्म के इत्र, फूल और इम्पोर्टेड सेंट की सुगंध फैली हुई थी। ऐसे ख़ुशनुमा, दिलफ़रेब माहौल में लड़की वालों के चेहरे मुस्करा रहे थे, पर मन ही मन में एक अनजान डर धीरे-धीरे उनपर हावी होता जा रहा था।

अचानक रूम में टेलीफ़ोन की घंटी ज़ोर-ज़ोर से बजनी शुरू हो गई। रमेश ने भीतर जाकर टेलीफ़ोन उठाया, जहाँ उसे सुनाया गया कि मुक़र्रर वक़्त की माँग के अनुसार रक़म न मिलने पर सेठ टोपणदास का क़त्ल करके, उसकी लाश कपास के कारख़ाने पर छोड़ गए हैं। ख़बर सुनते ही रमेश के हाथ से फ़ोन गिर पड़ा। वह लड़खड़ाने लगा। वेदी पर मंत्रों के उच्चारण ने उसे सँभलने का मौक़ा दिया। वह भारी क़दमों से कमरे से बाहर निकलकर पैंडाल में आया। उसकी बहन अग्नि-कुंड के चारों तरफ़ अपने जीवनसाथी के साथ फेरे लगा रही थी। लड़के वाले ख़ुशी से नाच रहे थे, गा रहे थे। उसने एक नज़र भर बहन की ओर देखा। दोनों की आँखों से आँसू झर-झर बह रहे थे।

शहनाई की आवाज़ तेज़ होती गई। रमेश को अपने पैरों तले ज़मीन खिसकती महसूस हुई और वह ख़ुद को अग्निकुंड में से निकलते हुए धुएँ में गुम होते हुए महसूस कर रहा था!