निवेदन / चित्तरंजन गोप 'लुकाठी'
"अरी, मक्खी बहन ! कैसी हो ? आओ, इधर आओ।"
"प्रणाम भैया। ठीक हूँ। आप कैसे हैं ?"
हम इंसानों का मत पूछो बहन। तुमलोग इधर-उधर गंदगी में बैठती हो और हमारे खाने-पीने की चीजों पर आकर बैठ जाती हो। इसी कारण तो हम विभिन्न बीमारियों से ग्रसित रहते हैं।
"एक निवेदन है बहन, सुनोगी ?"
"कहिए न भैया।"
"देखो, तुमलोग हमारे खाने-पीने की चीजों पर बैठना बंद कर दो। बस।"
"भैया यह तो आपके हाथ में है। आप इंसानों को समझाइए न कि वे जहाँ-तहाँ मलमूत्र न त्यागें, खाने-पीने की चीजें ढंककर...।"
तभी भिन-भिन करता मच्छर आ पहुँचा।
"गुड मॉर्निंग भैया।"
"गुड मॉर्निंग मच्छर भाई। मैं तुम्हें ही याद कर रहा था।"
"हा: हा: हा: ! मुझे...? इस नाचीज को ?"
"अरे, मत हंसो भाई। मेरा एक निवेदन सुनो।"
"निवेदन ? कैसा निवेदन ?"
"यही कि तुमलोग हमें यानी हम इंसानों को डंक मारना छोड़ दो। मत काटो, भाई। बड़ी बीमारी फैल रही है।"
"क्या बात करते हैं भैया ? यह तो आप इंसानों को समझना चाहिए ।समझाइए उन्हें कि जहाँ-तहाँ कूड़ा-कचरा न फेंके, नालियों को साफ़ रखें। मच्छरदानी का इस्तेमाल करें।"
"अरे, इंसान समझने वाला नहीं है भाई। इसकी एक बुरी आदत है----यहाँ सब समझाने वाला होता है, समझने वाला कोई नहीं और यदि कोई समझेंगे भी तो करने वाला कोई नहीं। इसलिए तो तुम लोगों से निवेदन कर रहा हूँ। ऐ भाई !यह बहना ! तुम्ही लोग समझ जाओ न !" इस कातर निवेदन को सुनकर दोनों मुस्कुराने लगे। वे विनम्रता के साथ बोले-- भैया ! आख़िर हमें भी तो अपना अस्तित्व बचाए रखना है न !
और वे उड़ गए किसी गंदे स्थल के लिए।