निशानेबाज भूमि पेडनेकर और तापसी पन्नू / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 01 मई 2019
'सांड की आंख' नामक फिल्म में भूमि पेडनेकर 87 वर्षीय निशानेबाज की भूमिका अभिनीत कर रही हैं और तापसी पन्नू 82 वर्षीय पात्र अभिनीत कर रही हैं। अनुराग कश्यप फिल्म के निर्माता हैं, जो असफलता की गिजा पर भी दशकों से टिके हैं। यह करिश्मा उनकी मार्केटिंग का है। अनुराग कश्यप की फिल्म 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' में एक ऐसा कस्बा उन्होंने रचा, जहां सभी लोग इस्लाम के अनुयायी हैं और संगठित अपराध जगत का हिस्सा हैं।
मानवता के शिकार युग में महिला अपने अचूक निशाने के कारण पुरुष से अधिक सफल रही परंतु कृषि युग के आते ही मंडी का उदय हुआ और बिचौलिया वर्ग का उदय हुआ जो कुछ उपजाता नहीं, कुछ खरीदता नहीं परंतु मुनाफा कमाता है। दलित कवि धूमिल याद आते हैं। उनका आशय कुछ ऐसा था, 'एक आदमी रोटी बेलता है/ एक आदमी रोटी खाता है/ एक तीसरा आदमी भी है/ जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है/वह सिर्फ रोटी से खेलता है/मैं पूछता हूं- 'यह तीसरा आदमी कौन है? इस पर सब मौन है।' जेपी दत्ता की बंटवारा नामक फिल्म में भी इसी आशय की बात कही गई थी कि बिचौलिए हर कालखंड में रहे हैं। राज कपूर की फिल्म 'जिस देश में गंगा बहती है', में एक सेवानिवृत्त खटिया तोड़ते रहने वाले डाकू से युवा डाकू पूछता है कि मुगलों का राज रहा, अंग्रेजों का राज रहा, परंतु डाकुओं का राज कभी नहीं रहा। सेवानिवृत्त ठरकी डाकू कहता है कि मूरख, हमारा राज हमेशा रहा है। युवा वय के कलाकारों को उम्रदराज पात्रों के अभिनय के लिए प्रोस्थेटिक्स मेकअप कराना होता है, जिसमें समय लगता है और मेकअप हो जाने के बाद कलाकार केवल स्ट्रॉ से फलों का रस पी सकता है। उसे ठोस भोजन चबाने की आज्ञा नहीं है, क्योंकि रोजी-रोटी कमाते हुए रोटी नहीं खा सकते। सदियों पूर्व कबीर ने उलटबासियां लिखी हैं, जिन्हें हम आज चरितार्थ होते देख रहे हैं। भूमि पेंडनेकर अपनी पहली फिल्म जोर लगाकर हईशा से आज तक सफल सार्थक फिल्मों में अभिनय करती रही हैं। तापसी पन्नू ने दो फिल्मों में रॉ एजेंट की भूमिका अभिनीत की। दुश्मन एजेंट को बिना किसी शस्त्र केे मार गिराने के दृश्यों में वह इतनी विश्वसनीय लगती हैं कि विज्ञापन जगत ने महिलाओं की शक्ति बढ़ाने वाले पेय की विज्ञापन फिल्म उसके साथ बनाई। विज्ञापन संसार इस तरह की बात करता है मानो प्रोटीन में भी लिंग भेद होता है। तापसी पन्नू ने ऋषि कपूर के बचाव वकील की भूमिका 'मुल्क' नामक सार्थक फिल्म में अभिनीत की। इसके एक संवाद का यह आशय है कि संकीर्णता की शक्तियों ने समाज को 'हम' और 'वो' दो भागों में बांट दिया है। इस फिल्म में ऋषि कपूर ने उस इस्लाम अनुयायी पुलिस अफसर की भूमिका अभिनीत की है, जो निरपराध इस्लाम मानने वालों को केवल इसलिए पकड़ता रहता है कि कोई उस पर शक नहीं करे। कैसा समाज रचा है, क्या हमारी अवतार अवधारणा में यह शामिल है कि रावण, कंस भी बार-बार जन्म लेते हैं। हमने हिटलर को भुगता है और उसकी वापसी के भी हम चश्मदीद हैं। मुल्क फिल्म में हिंदू-मुस्लिम प्रेम विवाह करते हैं। शिशु के जन्म के पहले पति की जिद है कि वह किस धर्म का अनुयायी होगा, यह पहले तय होना चाहिए। पत्नी कहती है कि प्रेम होते समय तो इस तरह की बात नहीं की गई थी? अनुराग कश्यप की इस फिल्म में यह मुद्दा भी उठाया गया है कि गर्भ में कन्या के होने पर गर्भपात करा दिया जाता है। राजकुमार संतोषी की फिल्म 'लज्जा' में कन्या के जन्म होेते ही उसे दूध से भरे बर्तन में डुबाेकर मारने का दृश्य है। पानी की जगह दूध में डुबाना बहुत कुछ कहता है। जिस बच्ची को मां के दूध से वंचित किया जा रहा है, उसे दूध में ही डुबाेना हमारी आदिम प्रवृत्तियों को आज भी अपनी पूरी बर्बरता के साथ बने रहने को अभिव्यक्त करता है। फिल्म का नाम 'सांड की आंख' भी अंग्रेजी मुहावरे 'बुल्स आई' का शाब्दिक अनुवाद है, परंतु इसमें महाभारत के एक प्रकरण का संकेत भी है, जब अर्जुन जल में छवि देखकर मछली की आंख पर निशाना साधते हैं। सफल होने पर द्रौपदी से विवाह करते हैं, परंतु मां को कहते हैं कि एक वस्तु लाए हैं। मां भी बिना देखे कहती है कि आपस में बांट लो। इस तरह द्रौपदी को पांच पति अनचाहे मिल जाते हैं।
सतयुग में रावण ने छाया सीता का हरण किया और रावण के वध के बाद अग्नि में छाया सीता जली तथा असली सीता सामने आई। राम ने छाया सीता को वचन दिया कि द्वापर युग में वह द्रौपदी के रूप में जन्म लेगी और वे उसकी रक्षा करेंगे। पवन करण के स्त्री शतक का खंड दो भी प्रकाशित हो चुका है। उन्होंने पौराणिक काल की महिलाओं की देह की स्वतंत्रता के बाद अब आर्थिक और राजनीतिक स्वतंत्रता को मुद्दा बनाया है।