नीम हकीम खतरा-ए-जान / जयप्रकाश चौकसे

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नीम हकीम खतरा-ए-जान
प्रकाशन तिथि : 01 अगस्त 2019


खबर है कि एक नया अधिनियम पारित हो गया है और अब आयुर्वेद तथा होम्योपैथी के डॉक्टर अपने मरीज को एलोपैथी के नुस्खे लिखकर दे सकते हैं। गोयाकि जो शास्त्र आपने सीखा ही नहीं, उसका नुस्खा भी अपने मरीज को लिखकर दे सकते हैं। कुछ वर्ष पूर्व दवा की दुकान पर डॉक्टर के परचे नहीं लाने पर दुकानदार दवाई नहीं बेचता था। उस नियम में अब छेद कर दिए गए हैं। नए नियम के तहत दवा विक्रेता भी प्रिस्क्रिप्शन लिख सकता है। संस्थाओं को तोड़ने के क्रम में यह एक नया अध्याय जुड़ गया है। प्राय: मरीज, डॉक्टर के द्वारा दी गई सलाह से अधिक या कम मात्रा में दवा लेने का निर्णय स्वयं कर लेते हैं। हर मरीज स्वयं अपने आप को भी डॉक्टर ही मानता है। गुलजार की फिल्म 'खामोशी' में वहीदा रहमान अभिनीत नर्स पात्र डॉक्टर के परामर्श पर रोगी से प्रेमपूर्वक व्यवहार करती है। दवा से अधिक असर उसकी सेवा का है। इलाज के दरमियान रोगी, नर्स से प्रेम करने लगता है, परंतु सेहत ठीक हो जाने के बाद वह सबकुछ भूल जाता है। फिल्म के अंतिम चरण में नर्स अपना दिमागी संतुलन खो देती है। कुछ इसी तरह कमल हासन और श्रीदेवी अभिनीत फिल्म 'सदमा' में दिमाग के केमिकल लोचे से मुक्त होने पर श्रीदेवी अभिनीत पात्र, कमल हासन अभिनीत पात्र को भूल जाता है। आजकल प्रसारित सीरियल 'लेडीज स्पेशल' की एक पात्र भी याददाश्त गुम हो जाने के रोग से पीड़ित है। पश्चिम में रोग और डॉक्टर पर अनगिनत उपन्यास लिखे गए और फिल्में बनी हैं। दक्षिण भारत के फिल्मकार श्रीधर की फिल्म 'दिल एक मंदिर' में कैंसर का रोगी सेहतमंद हो जाता है, परंतु डॉक्टर बीमार हो जाता है। 'आईलेस इन गेजा' भी रोग आधारित रचना है। राजकुमार हिरानी की मुन्नाभाई भी मेडिकल शिक्षा और अस्पताल की पृष्ठभूमि पर रची गई फिल्म है।

विजय आनंद ने एजी क्रोनिन के उपन्यास 'सिटाडेल' से प्रेरित फिल्म 'तेरे मेरे सपने' बनाई थी। अनगिनत गांवों में अस्पताल तो दूर की बात है, प्राथमिक चिकित्सा केंद्र भी नहीं खुल पाए हैं। राजकुमार हिरानी की 'थ्री ईडियट्स' फिल्म का क्लाइमेक्स प्रसव वेदना और शिशु के जन्म पर आधारित है। डॉक्टर पात्र कम्प्यूटर पर परामर्श देता है और इंजीनियरिंग का पात्र प्रसव कराता है। सरकार द्वारा बनाए गए अधिनियम के खिलाफ 31 जुलाई को एलोपैथी के डॉक्टर्स ने अखिल भारतीय हड़ताल रखी। डॉक्टर यह भलीभांति जानते हैं कि उनके इस कदम से मरीजों को कष्ट हो सकता है। गौरतलब यह है कि एलोपैथी का डॉक्टर वर्षों से कठिन परिश्रम और अभ्यास करके योग्यता हासिल करता है। अब एक अधिनियम उनकी वर्षों की तपस्या का अपमान कर रहा है। डॉक्टर को अपने व्यक्तिगत जीवन में साधारण सामान्य सुख से भी वंचित होकर आधी रात को मरीज की सेवा में उपस्थित होना पड़ता है। उन्हें अपने व्यक्तिगत सुख-दु:ख से ऊपर उठकर अपने कर्तव्य का पालन करना होता है। एक अधिनियम उनकी वर्षों की साधना का अपमान कर रहा है।

ताराशंकर बंधोपाध्याय के उपन्यास आरोग्य निकेतन में संकेत है कि पैथोलॉजी को अनदेखा करके आयुर्वेद ने अपने को हानि पहुंचाई है। हमने जंगल काट दिए हैं, अत: जड़ी-बूटी प्राप्त करना कठिन हो गया है। एलोपैथी में रोग का उपचार हो जाता है, परंतु दवा के दुष्प्रभाव कभी-कभी नए रोग को जन्म देते हैं। दवा के कुप्रभाव से निपटने की दवाएं भी हैं। इस प्रकरण का एक पक्ष यह भी है कि दवा बनाने वाली कंपनियां अपनी दवा बेचने के लिए कुछ मिथ्या बातों को प्रचारित कर देती हैं। मधुमेह नामक घातक रोग के मामले में भी फास्टिंग शुगर का गलत पैमाना प्रचारित किया गया है।

बहरहाल, नए अधिनियम से अवाम की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ने वाला है। कुछ बंदरों के हाथ उस्तरा लग जाएगा। शल्यक्रिया के उपकरण अनाड़ियों के हाथ लग जाएंगे। पश्चिम में भी डॉक्टरों से कभी-कभी चूक हो जाती है। मसलन श्रीदेवी की मां के उस अंग की शल्यक्रिया कर दी गई, जो पूरी तरह ठीक था। बोनी कपूर ने अस्पताल से हर्जाना वसूल करवाकर श्रीदेवी को दिया। धन्य है श्रीदेवी की मां, जाते हुए भी अपनी पुत्री का कल्याण कर गई।