नीलकंठी ब्रज / भाग 5 / इंदिरा गोस्वामी / दिनेश द्विवेदी

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देवधरी बाबा से मिलकर लौट आने के पश्चात अनुपमा टूट-सी गयीं। वह दुबली हो गयीं बहुत लम्बा आराम नहीं कर पायीं। ब्रज की चौरासी कोस परिक्रमा का समय आ गया। हनुमान टीला और बाँकेबिहारी के उद्यानों में पंडे परिक्रमा के आयोजन को लेकर बैठकें करने लगे। इस दरम्यान ऊँट की कूबड़-जैसे तम्बुओं को फैलाकर जाँच होने लगी। अलग-अलग मन्दिरों के अजीब-अजीब झंडे लिए हुए घुड़सवार सन्तरियों ने अभ्यास शुरू कर दिया। ब्रज के हर एक पावन स्थान का भ्रमण करना होगा। हजारों भक्तजनों के पैरों की धूल से मथुरा का मार्ग वह स्थान जहाँ कंस का वध करने के बाद भगवान ने माथे का पसीना पोंछा था त्रेता में जहाँ शत्रुघ्न ने लवबकासुर का वध किया था सतयुग में जहाँ भगवान ने हिरण्याक्ष को मारकर विश्राम किया था वह विश्रामघाट महाराजा सिन्धिया का मानस मन्दिर द्वारकाधीश सतयुगी भगवान बरहाका चतुर्भुजी मन्दिर गोकर्ण महादेव पंचमुखी हनुमान सोमतीर्थ भूतेश्वर दाऊजी नहीं-नहीं इस मौके को नजरअन्दाज नहीं कर सकतीं अनुपमा। आजकल अनुपमा सोचती रहती हैं कि उनके जीवन में यह सुयोग दुबारा नहीं आएगा। अनुपमा के यहाँ पानी भरनेवाली राधेश्यामी बुढ़िया ने कहा माँ तुम डोली में जाओ। मैंने पुरानी डोलियों पर रंग-रोगन करते हुए अष्टधातु-शिल्पी राकेश को देखा है।

अनुपमा खुश हो उठीं। सही है। इससे रास्ते में बीमार पड़ने का भी डर नहीं रहेगा। आज ही एक डोली का इन्तजाम करना होगा। वरना नन्दगाँव और बरसाने के अपंग भक्त अपने लिए बन्दोबस्त कर लेंगे।

खिड़की खोल अनुपमा ने देखा भीड़ भरती जा रही है। सजे-धजे ताँगों पर झंडियाँ लहरा रही थीं। राधारमण और गोविन्दजी के मन्दिर से भेंटस्वरूप मिले लाल-नीले कपड़े सिर पर कसे यात्रियों की भीड़ बढ़ रही थी। आज कृष्णाष्टमी है इसलिए शायद इतनी भीड़ है। अनुपमा सतर्क हो गयीं। सौदामिनी को बाँकेबिहारी के प्रांगण में ले जाना होगा। ऐसे उदात्त क्षणों में मनुष्य के आत्म-द्वार खुल जाते हैं पर वह तो कच्चे वय की छोकरी है। उसकी आत्मा का द्वार अनुपमा की नाक पर पसीना छलछला आया। इस मौके का फायदा तो हर हाल में उठाना ही पड़ेगा। पर वह ब्रज चौरासी की परिक्रमा डाकखाना अस्पताल नाटक मंडली इत्यादि के लिए घूमने वाली वह ब्रज चौरासी की परिक्रमा सौदामिनी क्या इन सबको सहन कर सकेगी तीन महीनों तक भैंसागाड़ी का सफर और तम्बू का रहना-यह सब बिता सकेगी वह?

कृष्णाष्टमी का नन्दोत्सव देखने माँ-बेटी दोनों चल पड़ीं। हरिद्वार, द्वारका, अयोध्या, लठावन आदि के तीर्थयात्रियों से श्रीधाम वृन्दावन का हर गली-कूचा भरा हुआ था। कृष्ण मन्दिरवाली गली में कतारबद्ध बैठे कोढ़ियों को तो भीड़ खूँदे चली जा रही थी। इसके बाद भी उनके भीख माँगने के कटोरे चिल्लर से भरे पड़े थे।

मन्दिर के परिसर में नन्दोत्सव शुरू हो चुका था। मुख्यद्वार से अन्दर घुस पाना असम्भव था। जूता-चप्पल धरने वाली कोठरी भी आज भीड़ से भरी हुई थी। सौदामिनी की दृष्टि अचानक एक ऐसे व्यक्ति पर पड़ी जो इन माँ-बेटी की असहाय दशा को भंडारेवाले बरामदे से तक रहा था। सौदामिनी ने महसूस किया ये दो आँखें पहले भी कहीं देखी हैं पर किधर उसे याद आयाए मथुरा छावनी से आते वक्त देखी थीं।

भीड़ को धकियाता हुआ चरणबिहारी आगे आया। दोनों के सामने आकर उसने परम श्रद्धा दिखाते हुए कहाए राधे-राधे।

अनुपमा ने भी सिर नवाकर कहाए राधे-राधे।

ऐसे खड़े-खड़े तो आप लोग दर्शन नहीं कर पाएँगी। मेरे पीछे-पीछे बाहर आइए।

भीड़ को धकेलता हुआ चरणबिहारी एक गुप्त-मार्ग से दोनों को लेकर नट-प्रांगण के ऊपर बरामदे में जा पहुँचा। यहाँ से नीचे चल रहे उत्सव का तेज स्वर और बिहारीजी का अपूर्व बाँकपनश् यहाँ से भली-भाँति सुना-देखा जा सकता था।

यहाँ पर मन्दिर के खास पंडे के अलावा किन्हीं दूसरे पेशेवर पंडों को नहीं आने दिया जाता। मेरे परिवार के लिए यह जगह आरक्षित थीए वे लोग तो आ नहीं सकेए अब आप लोग बिना किसी बाधा के दर्शन कीजिए।

अनुपमा बोलीं मैं कैसे आपका आभार प्रकट करूँ?

ऐसा मत कहिए। यात्रियों की मदद करना तो हमारा फर्ज है। लौटते समय भी आपको भीड़-भाड़ से होकर नहीं जाना है। आप लोग अष्टसखी के मन्दिर से होकर मदनमोहन मन्दिर के करीब से जा सकेंगी। इसी दरम्यान मन्दिर के आँगन में काफी तेल-पानी डाला जा चुका था। फिसलन इतनी ज्यादा हो गयी थी कि अगर कोई रपट जाता तो दूर जा गिरता। पानी से बाहर निकली धूप में दमकती भैंस की पीठ के समान मन्दिर का आँगन दिखाई दे रहा था।

उत्सव शुरू हुआ। चमचमाता जोधपुरी कोट पहने एक पंडे ने उच्च-स्वर से घोषणा-पत्र पढ़कर सुनाना प्रारम्भ किया इस बार कृष्णजी के आँगन में सोने की हँसुली फेंकने का सौभाग्य बरसाना के रामनिवास की सेठानी को प्राप्त हुआ है। शहंशाह अकबर महान द्वारा जारी किया गया राम-सीता के चित्र से युक्त सोने का सिक्का विजेता को भेंटस्वरूप प्रदान किया जाएगा।

भीड़ में खुसुर-फुसुर हुई। अनुपमा के पास खड़ी किसी ब्रजवासिनी ने पूछा सेठानी क्या ब्रजवासिनी है?

मालूम नहीं।

तब तक दूसरी स्त्री बोल पड़ी हाँ वे ब्रजवासी हैं। बड़ी भक्त हैं। वे मदनोत्सव पर राधेश्यामियों और भीख माँगकर गुजर-बसर करने वाली विधवाओं के बीच कम्बल बँटवाती हैं।

तभी तोप दागे जाने की भयंकर गर्जना सुनाई पड़ी। सभी फर्श की तरफ देखने लगे।

तभी कृष्ण को भक्ति-भाव से शीश झुकाकर प्रणाम कर सेठानी ने पूरे वेग के साथ हँसुली फर्श पर फेंक दी। कुछ अधनंगे ब्राह्मण-बालक चिकने फर्श पर आगे बढ़े। वे इस प्रकार चल रहे थे जैसे तैर रहे हों। लट्ठे के खेल के समान बच्चे बार-बार रपटने लगे। घुटनों के बल चलते हुए वे पूरे बन्दर लग रहे थे। हँसुली तक पहुँचना नामुमकिन लग रहा था।

हँसी चिल्लाहट और सीटियों के बीच किसी को किसी बात की सुनाई नहीं दे रही थी। आखिर में कई बच्चे हाँफने लगे।

अनुपमा के करीब बैठी हुई एक ब्रजवासी महिला ने सिर से चादर उतारते हुए कहाए श्पिछले तीन दिनों से फर्श पर तेल डालकर परत पर परत चढ़ाई जा रही थीय लगता है आज कोई भी हँसुली नहीं पा सकेगा।

प्रतियोगी बालकों को कृष्ण चरणामृत मिलीए लस्सी पीने को दी गयी। थोड़ा आराम करने के बाद फिर से खेल शुरू हुआ। इस बार बिल्कुल देर नहीं लगी। जब तक लोग सँभलें-सँभलेंए तभी किसी पंडे का लड़का कमान से छूटे तीर की तरह आया और उसने झपटकर हँसुली उठा ली।

तालियों की गड़गड़ाहट और खुशी के शोरगुल से कान दी हुई बात का सुनना भी मुश्किल हो गया।

इसके बाद दर्शक तितर-बितर होने लगे। शोरगुल होने लगा।

अनुपमा बोलीं हम लोगों का यहाँ से निकल जाना ही अच्छा रहेगा। चरण ने बताया था कि अष्टसखी की तरफ से एक सरल मार्ग है।

भीड़ की धकापेल में दोनों के कपड़े फटते-फटते बचे। कतार से बैठे हुए कोढ़ियों को भी भीड़ की धक्का-मुक्की झेलनी पड़ी। इसके बाद भी वे डटे रहे।

अनुपमा बोलीं मदनमोहन मन्दिर के पट खुले हुए हैं।

तभी चरणबिहारी हाजिर हो गया चलिए आपको मदनमोहन के दर्शन करा दूँ। अभी कोई भी पंडा नहीं मिलेगा। किन्तु मेरे साथ पंडे जैसा सुलूक नहीं करना।

चरण बिहारी अपनी ही तरंग में खिलखिला पड़ा। तीनों सीढ़ियाँ चढ़ने लगे। दो उपेक्षित छतरियाँ दिखाई पड़ीं। इस वक्त यहाँ पर चमगादड़ों का बसेरा है। कभी मन्दिर तक पहुँचने के अनेक रास्ते हुआ करते थे। अब ये सब बबूल और बेलों से रुँधे पड़े हैं। नीम के एक वृक्षतले पहुँचने पर चरणबिहारी बोलाए इस नीम को देखिए। महाकवि तुलसीदास जी ने इसी के नीचे बैठकर मदनमोहन से अनुरोध किया था। तुम अपना यह श्याम रूप छोड़कर मेरे प्रिय धनुर्धारी दशरथ-पुत्र राम का रूप दिखलाओ।श् लोगों का कहना है कि तब इस अनन्य भक्त की मनोवांछा की पूर्ति हेतु मदनमोहन ने एक अलग ही अद्भुत रूप धारण किया-वक्षस्थल पर भृगुपद चिह्न सिंह-स्कन्धए कम्बु-ग्रीवाए वृन्दावनबिहारी का एक अलग ही रूप।

तीनों ने बाकी सीढ़ियों पर पहुँचकर दूर बहती यमुना की शोभा को देखा। यमुना के बीचो-बीचबबूल की कँटीली झाडिय़ों से भरे हुए बालू के दो टीले नजर आये। श्लगता है मन्दिर में भोग लगाया जा रहा है। इसलिए पट बन्द हैं। हमें यहाँ कुछ देर ठहरना होगा। चलिएए आदित्य टीले के पास बैठिए।

इसी बीच आदित्य टीला के मन्दिर के पट खुल गये। प्रधान मन्दिर से शंख और घंटा ध्वनि आने लगी। इस पर अनुपमा बोलींए श्जब तक मैं यहाँ बैठ माला जपती हूँए तुम परिक्रमा कर आओ।

माला प्रसाद लाने के लिए चरण बिहारी मन्दिर के अन्दर चला गया। यहाँ पर बाँकेबिहारी के मन्दिर की तरह भीड़-भाड़ नहीं थी। सौदामिनी फूलों से लदे हुए गुलमोहर के नीचे बैठ गयी। यहाँ शान्ति थी। टहनी-टहनी फूल खिले थे। ऊपर मेघाच्छादित आकाश था। सौदामिनी को यहाँ बैठना बहुत भा रहा था। वह देर तक एकांगी बैठना चाहती थी पर ऐसा न हो सका। चरण बिहारी परछाई की तरह उससे चिपका हुआ था। वह सामने से आता दिखाई पड़ा।

यहाँ से यमुना की छटा कितनी सुन्दर लग रही हैए देखिएए कछुए कैसे ऊपर-ऊपर तैर रहे हैं। शायद आपको याद होगा। पहले दिन मैं मथुरा से वृन्दावन तक आपके पीछे-पीछे चुंगी नाका तक आया था। मैंने समझाए आप लोग तीर्थयात्री होंगे। मैं नहीं जानता था कि आप लोग यहाँ रहने के लिए आये हो। वाकई आप लोग रहने आये हैं आप जैसी कम उम्र लड़कियाँ ब्रज में असंख्य हैं। लोग-बाग कहते हैं कि उन्हें मिर्गी के दौरे पड़ा करते हैं।

सौदामिनी मौन रही। चोटी में गुँथी चमेली की सूखी माला को उसने खोल कर दूर फेंक दिया।

ठाकुर साहब का बिहारीमोहन कुंज अब तक नहीं बिका था। उनकी जमा-पूँजी समाप्त होने आ गयी थी। दैनिक अखबारों में इश्तहार पढ़कर तथा पंडों द्वारा खबर होने से कुछेक ग्राहक आये भीए परन्तु उनकी सौदेबाजी का ढंग देख ठाकुर साहब क्षुब्ध हो गये। रुपये-पैसों को लेकर प्रत्येक ग्राहक मरभुक्खा राक्षस दिखाई पड़ रहा थाए बल्कि मन्दिर के बिकाऊ होने की खबर से कुछ पंडे तो दलाली खाने की फिराक में थे।

ठाकुर साहब छड़ी के सहारे शाम को जब आ बैठतेए तो पंडों का झुंड उन्हें घेर लेता। सीढ़ियों पर बैठे-बैठे ठाकुर साहब अजीब दास्तानें सुना करते। एक दिन राधामाधव का एक नौजवान पंडा बोलाए श्ये जो बिहारीमोहन कुंज है नए यह राधामाधव की जमीन पर खड़ा है इसलिए लाजिमी है कि मन्दिर के बिकने पर चार हिस्सों में से एक हिस्सा पंडे को भी मिलना चाहिए।

ऐसे अजीब-अजीब किस्से ठाकुर साहब सीढ़ियों पर बैठे-बैठे सुना करते। मृणालिनी ने उन्हें याद दिलाया कि शेष पैसों से अधिक से अधिक एक महीना और गुजारा हो सकता हैए इसके बाद कोठरी में रहना होगा और ट्रस्ट से मिलने वाले पैसों से गुजारा करना होगा। डट कर माछ-भात उड़ाने और छक कर दारू पीने का ही नतीजा है जिसकी सजा जिन्दा-जीते जी मिल रही है। बा-मुश्किल अन्नकूट तक पैसा चल जाए तो गनीमत समझो।

उत्सव-प्रियता ब्रज की विशेषता है। अन्नकूट भी जोरशोर से आ पहुँचा। आज एक भी बूढ़ी विधवा अपनी कोठरी में बैठी नहीं रह सकी। छप्पन भोग और छत्तीसों व्यंजनों के आज पहाड़ के पहाड़ देखने को मिलेंगे। मन्दिर में पकवानों के अम्बार के बीच विराजमान राधाकृष्ण के अपूर्व शृंगारयुक्त विग्रहों के सम्मुख प्रत्येक वृद्धा को मत्था टेकना होगा।

इस अभिराम दृश्य को निहारती सौदामिनी के कानों में एक अजीब-सी आवाज सुनाई पड़ी ठीक से आँखें खोलकर अन्नकूट के दर्शन कर लो। कहते हैं इससे साल भर अन्न की कमी नहीं होती।

मृणालिनी ने पीछे मुडक़र देखाए फटे चिथड़ों में एक राधेश्यामी बुढ़िया चलने-फिरने में असमर्थ दूसरी बुढ़िया को हाथों के सहारे उठाकर दर्शन करा रही थी।

बढ़ते हुए जन-सैलाब के बीच अधिकतर वे ही राधेश्यामियाँ थींए जो अधपेट अपना जीवन बिता रही थीं। उनकी ललचायी आँखों को देखकर लगता था कि जैसे मौका मिलते ही वे अन्नकूट के भात के पर्वताकार ढेर पर टूट पड़ेंगीए परन्तु तुरन्त ही इस कभी न पूरी होने वाली इच्छा को सोचकर उनकी आँखों में निराशा उतर आती।

काफी लम्बे अर्से से अपनी कोठरियों में मौत का इन्तजार करती हुई पंगु वृद्धाओं को सक्षम औरतें हाथों पर उठाये चली आ रही थीं। पूरे ब्रज में फैली हुई लगभग तीन हजार दरिद्र विधवाएँ अन्नकूट के दर्शन का लोभ भला कैसे छोड़ देतीं। फाँका करने वाली इन गरीबनियों के मन में यह दृढ़ आस्था है कि अन्नकूट का दर्शन मात्र सालभर उन्हें भुखमरी से दूर रखेगा।

मृणालिनी गोविन्दजी के फर्श पर बैठ गयी। राधावल्लभ मन्दिर नहीं चलोगी दीदी शशि ने पूछा।

नहीं मैं यहीं गोष्ठी शुरू होने का इन्तजार करूँगी।

परन्तु भद्र जनों के घरों की स्त्रियाँ ऐसी गोष्ठियों में नहीं बैठतीं।

भद्र जन क्या मखौल है? बेघर राधेश्यामियों के समान कोठरियों में रहने के बाद भी हमें भद्रजन कहेंगे हम अब भिखमंगे हैं। खाते-पीते लोग जब भिखारी हो जाते हैं तब उनके दर्द की कोई सीमा नहीं होती।

तभी गोष्ठी का गजर बजा। पंक्तिबद्ध बैठी औरतों को छोड़ कर बाकी दूसरी औरतों को पुजारी ने बाहर खदेड़ दिया। सिंहद्वार बन्द कर दिया गया। मृणालिनी बेपरवाही से कतार में बैठी शशि के साथ आ बैठी।

वह पुजारी को अचरज में डालते हुए बोली थोड़ा और दीजिए।

मृणालिनी की शह पाकर भूखी राधेश्यामियाँ भी चिल्ला उठीं- दो और दो। गोविन्दजी के भंडार में कोई कमी नहीं है। इसकी फिकर मत करो।

पुजारी खीझ गया अरी बुढ़ियो यहाँ डटे रहने से कोई फायदा नहीं होने का। राधादामोदर मन्दिर में जाओ नहीं तो वहाँ का भंडारा खत्म हो जाएगा।

पुजारी की चेतावनी सुन वृद्धाएँ गप-गप प्रसाद निगलने लगीं। मृणालिनी के निकट बैठी हुई एक ने दूसरी से पूछा राधादामोदर मन्दिर में आज क्या भोग मिलेगा?

बूंदी के लड्डू और पूरी।

नहीं वहाँ बताशे मिलेंगे।

अब समय नहीं बचाए वृद्धाएँ बर्तन चाटने लगीं।

सोच रखा था सारे मन्दिरों के दर्शन करूँगी पर अब कहीं भी जाने का मन नहीं हो रहा। कहीं अच्छी जगह चलकर बैठने को मन कर रहा है। मृणालिनी ने कहा।

शशि खुश हो गयी। यूँ भी उसे बैठने में दिक्कत हो रही थी।

शशि तुम एक सच्चरित्र लड़की लगती हो।