नीले कुत्ते की आँखें / गाब्रिएल गार्सिया मार्केज / सरिता शर्मा

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फिर उसने मेरी ओर देखा। मुझे लगा वह मुझे पहली बार देख रही थी। मगर फिर, जब वह लैंप के पीछे घूमी और मुझे उसकी फिसलनभरी चिकनी नजर कंधे पर से होकर पीठ पर महसूस होती रही, तब, मैं समझ गया कि मैं उसे पहली बार देख रहा था। मैंने सिगरेट सुलगाई। मैंने कुर्सी को घुमाकर पिछले पायों पर संतुलित करने से पहले कसैले और तीखे धुएँ का कश लिया। उसके बाद मैंने उसे वहाँ देखा, मानो वह हर रात लैंप के पास खड़ी हुई मुझे देखती थी। कुछ मिनटों तक हम सिर्फ यही किया करते थे: एक दूसरे को देखना। मैंने पिछले एक पाए पर संतुलित कुर्सी से उसे देखा। वह लैंप पर अपना लंबा और स्थिर हाथ रखे मुझे देख रही थी। मैंने उसकी पलकों को हर रात चमकते हुए देखा। तब मैंने वह उसे 'नीले कुत्ते की आँखें' कहा, तो मुझे मुझे बहुत आम बात याद आई: लैंप से हाथ हटाए बिना उसने मुझसे कहा: 'इस बात को हम कभी नहीं भूलेंगे।' वह आहें भरते हुए क्षेत्र से बाहर चली गई: 'नीले कुत्ते की आँखें। मैंने इसे हर जगह लिख दिया है।'

मैंने उसे ड्रेसिंग टेबल की ओर जाते हुए देखा। मैंने उसे निश्चित प्रकाश के दायरे के परे अब मेरी तरफ देखते हुए आईने के गोलाकार शीशे में प्रकट होते हुए देखा। मैंने उसे मुझे तपती आँखों से देखते हुए पाया: जब उसने गुलाबी रंग के सीप के मोती से ढके छोटे से बक्से को खोला तो वह मुझे देख रही थी। मैंने उसे नाक पर पाउडर लगाते हुए देखा। उसके बाद वह बक्से को बंद करके खड़ी हुई और एक बार फिर यह कहते हुए लैंप के पास गई: 'मुझे लगता है कोई इस कमरे के बारे में सपने देख रहा है और मेरे रहस्यों को उजागर कर रहा है।' उसने अपने लंबे और काँपते हुए हाथ को लौ पर रखा हुआ था जिसे वह दर्पण के सामने बैठने से पहले सेंकती रही थी। और उसने कहा: 'तुम्हें ठंड तो नहीं लग रही है।' और मैंने उससे कहा: 'कभी-कभी।' और उसने मुझसे कहा: 'तुम इसे अब महसूस करो।' और तब मैं समझा कि मैं उस सीट पर अकेला क्यों नहीं हो सकता था। ठंड मुझे मेरे एकांत की निश्चितता दे रही थी। 'अब मैं इसे महसूस कर रहा हूँ,' मैंने कहा। 'यह हैरानी की बात है क्योंकि रात चुप है। शायद चादर गिर गई है।' उसने जवाब नहीं दिया। वह फिर से दर्पण की ओर बढ़ने लगी और मैं अपनी पीठ उसकी तरफ किए हुए फिर से कुर्सी में घूमा। उसे देखे बिना, मैं जानता था कि वह क्या कर रही थी। मुझे पता था मैं कि वह मेरी पीठ की ओर देखते हुए फिर से आईने के सामने बैठी हुई थी जिसके पास दर्पण की गहराई तक पहुँच कर उसकी नजरों में आने का काफी वक्त था और उसके पास भी गहराई तक पहुँचने और वापस आने का भरपूर समय था - इससे पहले कि हाथ के पास दुबारा घूमना शुरू करने का अवसर होता - जब तक कि उसके होंठ उसके हाथ दर्पण के सामने पहली बारी में हाथ घुमाने से गाढ़े लाल नहीं रंग गए थे। मैंने अपने सामने चिकनी दीवार को देखा जो अंधे दर्पण की तरह थी जिसमें मैं उसे अपने पीछे बैठे हुए नहीं देख सकता था - लेकिन कल्पना कर सकता था कि वह कहाँ होगी जैसे किसी दर्पण को दीवार में किसी स्थान पर टाँग दिया गया हो। 'मुझे तुम्हें देख रहा हूँ,' मैंने उससे कहा। और मैंने दीवार पर देखा तो ऐसा लगा जैसे उसने अपनी नजरों को उठाया हो और उसने कुर्सी से मेरी पीठ उसकी ओर किए हुए और दर्पण की गहराई में मेरा चेहरा दीवार की तरफ किए हुए देखा हो। मैंने उसे फिर से नजरें झुकाते और बिना बोले हुए उसे हमेशा निगाहें चोली पर टिकाए हए देखा। और मैंने उसे फिर से कहा: मैं तुम्हें देख रहा हूँ।' और उसने फिर से चोली से अपनी नजरें उठाई। 'यह असंभव है,' उसने कहा। मैंने उससे पूछा क्यों। और उसने फिर से खामोश निगाहें चोली पर डालते हुए कहा: 'क्योंकि तुम्हारा चेहरा दीवार की ओर घूमा हुआ है।' फिर मैंने कुर्सी को चारों ओर घुमा दिया। मेरे मुँह में सिगरेट दबी हुई थी। जब मैं आईने के सामने था, उसकी पीठ लैंप की तरफ थी। अब उसने हथेलियों को मुर्गी के दो पंखों की तरह लौ पर फैलाया हुआ था और चेहरे को उंगलियों में छुपाकर आग सेंक रही थी। 'लगता है मुझे ठंड लगने वाली है,' उसने कहा। 'यह बर्फ का शहर है।' उसने अपने चेहरे को एक तरफ किया और उसकी त्वचा ताँबई से लाल रंग की हो गई थी। वह अचानक उदास हो गई। 'इसका कुछ करो,' उसने कहा। और वह ऊपर चोली से शुरुआत करते हुए एक-एक करके वस्त्र उतारने लगी। मैंने उससे कहा: 'मैं दीवार की तरफ पीठ कर लेता हूँ।' उसने कहा: 'नहीं, वैसे भी, तुम मुझे उसी तरह से देख लोगे जैसे पीठ मोड़े हुए देखा था।' और जैसे ही उसने यह कहा, वह लगभग पूरी तरह से निर्वस्त्र हो चुकी थी, लौ उसकी ताँबई त्वचा को छू रही थी। 'मैं तुम्हें हमेशा ऐसे ही पेट पर छोटे छोटे गड्ढों के साथ देखना चाहता था, मानो तुम्हें पीटा गया हो।' और इससे पहले कि मुझे एहसास हो कि उसके निर्वस्त्र होने से मेरे शब्द बेअदब हो गए थे, उसने खुद को लैंप के इर्द-गिर्द सेंकते हुए कहा: 'कभी-कभी मुझे लगता है मैं धातु से बनी हुई हूँ।' वह एक पल के लिए चुप थी। लौ पर उसके हाथ थोड़ा हिले। मैंने कहा: 'कभी-कभी मैंने सपनों में, सोचा कि तुम किसी संग्रहालय के कोने में रखी छोटी सी कांस्य प्रतिमा हो। शायद तुम इसीलिए ठंडी हो।' और उसने कहा: 'मैं कभी-कभी दिल के बल सोती हूँ तब, मुझे लगता है कि मेरा शरीर खोखला हो रहा है और मेरी त्वचा प्लेट की तरह है। और जब मेरे अंदर खून धड़क रहा होता है मुझे ऐसा लगता है कि कोई मेरे पेट पर दस्तक दे कर बुला रहा है और मैं बिस्तर में अपने खुद के तांबे की ध्वनि महसूस कर सकती हूँ - आप क्या कहते हैं परतदार धातु।' वह लैंप के करीब चली गई। 'मैं तुम्हें बोलते हुए सुनना चाहता हूँ,' मैंने कहा। और उसने कहा: 'हम कभी एक दूसरे से मिलें जब मैं बाईं ओर सोई हूँ, तो अपने कान मेरी पसलियों के पास ले जाओगे तो तुम मुझे अपनी बात प्रतिध्वनित करते हुए पाओगे। मैं हमेशा चाहती थी कि तुम ऐसा करो।' मैंने उसे बात करते हुए भारी साँस लेते हुए सुना। और उसने कहा कि उसने बरसों से कुछ भी अलग नहीं किया था। उसकी ज़िंदगी 'नीले कुत्ते की आँखें' वाक्यांश का प्रयोग करते हुए मुझे वास्तव में खोजने के लिए समर्पित थी और जो भी उसे समझ सकता था, वह उसे बताती हुई इसे जोर-जोर से कहती हुई सड़कों पर चलती गई।

'मैं ही हर रात तुम्हारे सपनों में आती हूँ और तुम्हें बताती हूँ: ' नीले कुत्ते की आँखें।' और उसने कहा कि वह रेस्तराँ में गई और ऑर्डर करने से पहले बैरे से कहा: 'नीले कुत्ते की आँखें।' लेकिन बैरों ने यह याद किए बिना, आदर से सिर झुका लिए कि उनके सपनों में क्या कहा गया था। फिर वह नैपकिन पर लिखा करती थी और चाकू से मेज के रोगन पर कुरेदा करती थी: 'नीले कुत्ते की आँखें।' और होटलों की भापभरी खिड़कियों, स्टेशनों, सभी सार्वजनिक भवनों पर अपनी तर्जनी से लिखा करती थी: 'नीले कुत्ते की आँखें।' उसने बताया कि वह एक बार दवा की दुकान में गई तो उसी गंध को महसूस किया जो एक रात मेरे बारे में सपना देखते समय मेरे कमरे से आई थी। 'वह आसपास होगा,' उसने दवा की दुकान की साफ, नई टाइलों को देखकर सोचा। फिर वह क्लर्क के पास गई और उससे कहा: 'मैं हमेशा आदमी के बारे में सपना देखती हूँ जो मुझसे कहता है: 'नीले कुत्ते की आँखें' और उसने कहा कि क्लर्क ने उसकी आँखों में देखकर कहा था: 'मिस, दरअसल आपकी आँखें वैसी हैं।' और मैंने उससे कहा: ' मुझे उस आदमी की तलाश है जिसने मेरे सपनों में ये शब्दों कहे थे।' और क्लर्क हँसने लगा और काउंटर के दूसरे छोर पर चला गया। वह साफ टाइलों को देखती रही और गंध को सूँघती रही। और उसने अपना पर्स खोला और गाढ़ी लाल लिपस्टिक से टाइलों पर लाल रंग से लिख दिया: 'नीले कुत्ते की आँखें।' क्लर्क जहाँ गया था वहाँ से वापस आया। उसने उसे गीला कपडा देकर कहा, 'इसे साफ करो।' और उसने सारी दोपहर हाथ और पाँवों पर खड़े होकर टाइलें धोने और यह कहते हुए बिता दी: 'नीले कुत्ते की आँखें,' जब तक कि लोगों ने दरवाजे पर एकत्र होकर यह नहीं कहा कि वह पागल है।

अब, जब उसने बोलना बंद कर दिया था, मैं कोने में बैठकर कुर्सी को झुलाता रहा। 'हर दिन मैंने उस वाक्यांश को याद करने की कोशिश जिससे मैं आप को ढूँढ़ सकूँ,' मैंने कहा। 'अब मुझे नहीं लगता है मैं कल इसे भूल जाऊँगा। फिर भी, मैंने हमेशा यही बात कही है और जब मैं जागता हूँ तो मैं हमेशा उन शब्दों को भूल जाता हूँ जिनसे मैं आपको खोज सकता हूँ।' और उसने कहा: 'तुमने पहले दिन उनका आविष्कार किया था।' और मैंने उससे कहा: 'मैंने उनका आविष्कार इसलिए किया क्योंकि मैंने तुम्हारी राख जैसी आँखों को देखा था। लेकिन मुझे अगली सुबह कभी याद नहीं रहता।' और उसने लैंप के पास खड़े होकर मुट्ठी भींचते हुए गहरी साँस ली: 'कम से कम यह तो याद कर सकते हो कि मैं किस शहर से इसे लिख रही हूँ।'

उसके भींचे हुए दाँत लौ पर चमक रहे थे। 'मैं अब तुम्हें छूना चाहता हूँ।' मैंने कहा। उसने अपना चेहरा उठाया लगा जो उसके और उसके हाथों की तरह जला और भुना हुआ भी लग रहा था और मुझे लगा उसने मुझे कोने में कुर्सी झुलाते हुए देख लिया था। 'तुमने मुझे वह बात कभी नहीं बतायी।' उसने कहा, 'मैं अब तुम्हें बता रहा हूँ और यह सच है,' मैंने कहा। उसने लैंप के दूसरी ओर से एक सिगरेट माँगी। सिगरेट मेरी उंगलियों के बीच गायब हो गई थी। मैं भूल गया था कि मैं धूम्रपान कर रहा था। उसने कहा: 'मुझे नहीं पता कि मैं याद क्यों नहीं कर पा रही हूँ कि मैंने इसे कहाँ लिखा था।' और मैंने उससे कहा: 'उसी कारण से जिससे कल मैं शब्दों को याद नहीं रख पाऊँगा।' और उसने उदासी से कहा: 'नहीं, यह बात है कि मुझे लगता है कि कभी- कभी मैंने भी वह सपना देखा है।' मैं उठ खड़ा हुआ और लैंप की ओर चला गया। वह कुछ दूरी पर थी, और मैं हाथ में सिगरेट और माचिस लिए हुए चलता गया और लैंप से आगे नहीं पहुँचा। मैंने उसकी तरफ सिगरेट बढ़ाई। उसने उसे होठों के बीच पकड़ा और इससे पहले कि मैं माचिस जलाता वह लौ पर झुक गई। 'दुनिया में किसी शहर में, सभी दीवारों पर, उन शब्दों को लिखा जाना चाहिए: 'नीले कुत्ते की आँखें,' मैंने कहा। 'अगर मुझे कल वे शब्द याद रहे तो मैं तुम्हें तलाश कर सकता हूँ।' उसने अपने सिर को फिर से उठाया और अब उसके होठों के बीच जलता हुआ कोयला था। 'नीले कुत्ते की आँखें,' उसने आह भरी और ठोड़ी पर झुकी हुई सिगरेट और एक आँख आधी बंद किए हुए उसे याद आया। तब उसने अपनी उंगलियों के बीच सिगरेट के धुएँ का कश लगाकर हैरानी जताई: 'अब कोई और बात है। मुझे गर्मी लग रही है।' और उसने यह अपनी उदासीन और अस्थिर आवाज में कहा मानो उसने वास्तव में ऐसा न कहा हो बल्कि कागज के छोटे से टुकड़े पर लिख दिया हो, और वह कागज को लौ के करीब लेकर आई थी जबकि मैंने पढ़ा हो: 'मुझे गर्मी लग रही है' और उसने अँगूठे और तर्जनी के बीच कागज को घुमाते हुए मानो बात को जारी रखा मानो कागज को नष्ट किया जा रहा था और मैंने सिर्फ पढ़ा था '...ऊपर' कागज पूरी तरह से भस्म हो गया था और भुरभुराकर फर्श पर गिर गया और छोटा होकर हलकी सी ऐश ट्रे में बदल गया हो। 'यह बेहतर है,' मैंने कहा। 'कभी-कभी तुम्हें इस तरह से देख कर मुझे डर लगता है। लैंप के पास काँपते हुए।'

हम कई वर्षों के लिए एक दूसरे से मिलते रहे थे। कभी-कभी जब हम एक साथ होते थे, तो बाहर कोई चम्मच गिरा देता था और हम जाग जाते थे। धीरे-धीरे समझ में आ गया था कि हमारी दोस्ती हालात और साधारण घटनाओं के अधीन थी। हमारी मुलाकातें हमेशा सुबह चम्मच के गिरने के साथ एक ही तरह से खत्म हुआ करती थी।

अब वह लैंप के पास बैठी हुई मुझे देख रही थी। मुझे याद आया कि उसने मुझे पहले भी मुझे बहुत पहले सपने में इस तरह से देखा था जब मैंने कुर्सी को पिछले पायों पर घुमाया था और भस्मवर्ण आँखों वाली औरत के सामने बैठा रहा था। मैंने उस सपने में उससे पहली बार पूछा था: 'तुम कौन हो?' और उसने मुझसे कहा था: 'मुझे याद नहीं है।' मैंने उससे कहा: 'लेकिन मुझे लगता है हमने एक दूसरे को पहले देखा है।' और उसने उदासीनता से कहा, ' मुझे लगता है कि मैंने तुम्हारे बारे में इसी कमरे में एक बार सपना देखा था।' और मैंने उससे कहा: 'यही बात है। अब मुझे याद आने लगा है।' और उसने कहा: 'कितनी अजीब बात है। हम जरूर और सपनों में भी मिले हैं।'

उसने सिगरेट के दो कश लगाए। मैं अभी भी लैंप के सामने खड़ा हुआ था, कि अचानक मैं उसे देखता रह गया। मैंने उसे ऊपर और नीचे देखा और वह अभी भी तांबा थी; अब वह सख्त और ठंडी धातु नहीं, बल्कि सुनहरी, मुलायम और लचीला तांबा थी। 'मैं तुम्हें छूना चाहता हूँ।' मैंने फिर से कहा। और उसने कहा: 'तुम सब कुछ बर्बाद कर दोगे।' मैंने कहा: 'अब इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता है। हमें बस यह करना है कि अगली बार मिलने से पहले तकिए को पलट दें।' और मैंने लैंप की तरफ अपना हाथ बढ़ाया। वह नहीं हिली। 'तुम सब कुछ बर्बाद कर दोगे,' मैं उसे छू पाता उससे पहले उसने फिर से कहा। 'हो सकता है तुम लैंप के पीछे से आओगे तो मैं पता नहीं दुनिया के किस हिस्से में भयभीत होकर जाग जाऊँ।' लेकिन मैंने जोर देकर कहा: 'इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।' और उसने कहा: 'अगर हम तकिया को पलट देंगे, तो हम फिर से मिल पाएँगे। लेकिन जब तुम उठोगे तो तुम भूल चुके होगे।' मैं कोने की ओर बढ़ने लगा। वह लौ पर हाथ सेंकती हुई पीछे रह गई। और मैं अब भी कुर्सी की बगल में नहीं था जब मैंने उसे मेरे पीछे से यह कहते हुए सुना: 'जब मैं आधी रात को जाग जाती हूँ, मैं बिस्तर में करवटें बदलती रहती हूँ, तकिया का कोना मेरे घुटने को जलाता रहता है, और सुबह होने तक यह सिलसिला चलता रहता है: 'नीले कुत्ते की आँखें।'

तब मैंने मुँह दीवार की ओर किए रखा। 'पौ फट गई है, ' मैंने उसे बिना देखे कहा। 'जब दो का घंटा बजा तो मैं जाग गया था और वह बहुत पहले था।' मैं दरवाजे के पास गया। जब मेरे हाथ में दरवाजे की मूठ थी, मैंने उसकी वही, स्थिर आवाज फिर से सुनी, 'उस दरवाजे को मत खोलो,' उसने कहा। 'दालान उलझे हुए सपनों से भरा हुआ है'। और मैंने उससे पूछा: 'तुम्हें कैसे पता?' और उसने मुझसे कहा: 'क्योंकि मैं एक क्षण पहले वहाँ थी और जब मुझे पता चला कि मैं दिल के बल सो रही थी तो मुझे वापस आना पड़ा।' मैंने दरवाजे को आधा खोला। मैंने उसे थोड़ा सा हिलाया और ठंडी, हल्की-सी हवा मेरे पास वनस्पति की धरती, नम खेतों की ताजा गंध लेकर आई। उसने फिर से बात की। मैंने मूठ को घुमाते हुए कब्जों पर टिके दरवाजे को हिलाते हुए उससे कहा: 'मुझे नहीं लगता कि वहाँ दालान है। मुझे गाँव की महक आ रही है।' और उसने कुछ दूरी से कहा, 'मैं इसे तुमसे बेहतर जानती हूँ। बात यह है कि एक औरत गाँव के बारे में सपना देख रही है।' उसने अपनी बाहों को लौ पर घुमाया। वह बोलती रही: 'वह ऐसी औरत है जो हमेशा देहात में घर चाहती थी और कभी भी शहर को छोड़ नहीं पाई थी।' मुझे वह महिला पिछले कुछ सपनों में देखी हुई याद आई, मगर अब अधखुले दरवाजे के चलते मैं जानता था कि मुझे आधे घंटे के भीतर नाश्ते के लिए नीचे जाना होगा। और मैंने कहा: 'बहरहाल, मुझे जागने के लिए विदा लेनी होगी।'

बाहर हवा पल भर के लिए चली, फिर शांत हो गई, और ऐसे आदमी के साँस लेने की आवाज सुनाई दे रही थी जिसने बिस्तर में अभी करवट ली थी। खेतों से हवा आनी बंद हो गई थी। अब गंध नहीं आ रही थी। 'कल मैं तुम्हें उससे पहचान लूँगा,' मैंने कहा। 'सड़क पर मैं तुम्हें तब पहचान लूँगा जब कोई औरत दीवारों पर लिख रही होगी 'नीले कुत्ते की आँखें।' और उसने अगम्य, असंभव को समर्पण की उदास मुस्कान के साथ कहा: ' तो भी तुम्हें दिन में कुछ भी याद नहीं रहेगा।' और उसने अपने हाथ फिर से लैंप पर रख दिए, उसकी आकृति कसैले बादल सी स्याह हो गई। 'तुम अकेले ऐसे आदमी हो जिसे जागने के बाद जो सपना देखा उसकी कुछ भी याद नहीं है।'