नीले फीते का जहर और काला धन / जयप्रकाश चौकसे

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नीले फीते का जहर और काला धन
प्रकाशन तिथि : 18 जनवरी 2014


शुक्रवार को प्रदर्शित 'मिस लवली' की पृष्ठभूमि अश्लील फिल्में बनाने वाला संसार है और इस पर महेश भट्ट दो फिल्में बना चुके हैं। जिस तरह समाज में काले धन का अपना एक साम्राज्य है और पीत पत्रकारिता तथा लगभग अश्लील प्रकाशन भी इसके बाय प्रोडक्ट हैं, उसी तरह अश्लील फिल्मों के साथ ही कुंठाओं को जगाने और उसके बहाने एक बाजार खड़ा होना भी उसके बॉय प्रोडक्ट हैं। इस तरह की कानाफूसी साहित्य संसार में है कि कुछ प्रतिभाशाली लेखकों ने अपनी मुफलिसी के दौर में छद्म नाम से अश्लील उपन्यास लिखे हैं। सिनेमा के संसार में ऐसा कभी नहीं हुआ कि अश्लील फिल्में बनाने वाले ने कभी अपनी दुनिया से तंग आकर एक अच्छी सामाजिक फिल्म बनाने का प्रयास किया हो परंतु सामाजिक फिल्में बनाने वाले कुछ फिल्मकारों ने आर्थिक संकट से मुक्त होने के लिए अपनी फिल्मों में नारी शरीर का प्रदर्शन किया है और एक भ्रष्ट समाज में लचीले सेन्सर को उसकी टूटने की हद तक खींचा है। अभी तक ऐसा कोई गंभीर प्रयास नहीं हुआ कि पूरी तरह अवैध अश्लील फिल्मों के कलाकारों और तकनीशियन के मन पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है। क्या वे एक व्यवसायी कसाई की तरह भावनाहीन ढंग से कीमा कूटता है, रान की हड्डी निकालता है या उसके मन में उत्तेजना या जुगुप्सा जागृत होती है और उसे खुद से घृणा हो जाती है।

कसाई के गोश्त काटने और जीवन बचाने वाले सर्जन के काम में अंतर होता है। गुलजार की अचानक में फांसी की सजा पाया एक गुनाहगार जेल से भाग जाता है और उसका पीछा करते इंस्पेक्टर की गोली लगने के बाद उसे गंभीर अवस्था में अस्पताल लाया जाता है जहां सर्जन उसी कुशलता से उसके प्राण बचाते हैं जिसे वे किसी और सामान्य रोगी के बचाते। अस्पताल में अपने ठीक होने के दिनों वह सर्जन से कहता भी है कि सर्जन का प्रयास निष्फल जायेगा क्योंकि चंगा होते ही उसे फांसी पर लटकाया जायेगा। सर्जन निष्काम कर्मदांगी है, मरीज का पापी या पवित्र व्यक्ति होना उसके लिए जानना भी आवश्यक नहीं है। सर्जन ने हिपोक्रेटिस शपथ ली हुई होती है और संसद में ली गई शपथ से यह अलग होती है।

मार्टिन स्कोरसिस की फिल्म 'क्लॉकवर्क आरेंज' में एक विशेषज्ञ सेक्स से ग्रसित व्यक्ति को अनवरत अनेक दिनों तक जबरन जगाये रख कर अश्लील फिल्में दिखाता है। कुछ ही महीनों में व्यक्ति का उपचार समाप्त होता है। उसे हिंसा की फिल्में भी दिखाई गई हैं और अब वह सेक्स तथा हिंसा उच्चारित करने से भी डरता है। वह रीढ़ की हड्डी के बिना व्यक्ति जैसा घास-फूस का बजूका सा हो जाता है और एक दिन आत्महत्या कर लेता है। संभवत: मार्टिन स्कॉरसिस यह संकेत देना चाहते हैं कि सेक्सविहीन और हिंसामुक्त व्यक्ति आत्म हत्या के लिए बाध्य हो जाता है। जीवन में सेक्स और हिंसा का अपना स्थान है परंतु इन से पूरी तरह वंचित व्यक्ति के पास भी जीने के कई कारण हो सकते है। महज सांस लेते रहे हैं- यह भी एक उद्देश्य बन जाता है क्योंकि सर्वथा निष्क्रिय व्यक्ति के अवचेतन में एक संसार उभरता है, मिटता है फिर उभरता है। जब एक कवि खुली खिड़की से सूने आसमान को देख रहा होता है तब भी वह कुछ कर रहा है, शब्दों से धरती आकाश के बीच एक सेतु रच रहा है।

बहरहाल यह कितने आश्चर्य की बात है कि 1896 में रूस में सिनेमा प्रदर्शन के बाद मैक्सिम गोर्की ने उसकी मार्मिक व्याख्या करके यह भी लिखा था कि 'संभव है इस माध्यम में कभी स्नान करती महिला' या 'वस्त्र बदलती स्त्री' भी दिखाई जायेगी गोयाकि उन्होंने अश्लील फिल्म उद्योग की संभावना भांप ली थी। यह 'नीले फीते का जहर' एक उद्योग के रूप में विश्व युद्ध के समय ही विकसित हुआ और यह भी संयोग है कि उस समय काला बाजार और काला धन भी सामने आया। क्या कालेधन और अश्लील किताबें तथा अश्लील फिल्मों का सीधे कोई संबंध है? 1969 में यह आंकलन प्रकाशित हुआ कि काला धन जायज धन के बराबर है और उसी दौर में कुछ ऐसी पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रारंभ हुआ जिनमें स्त्री-पुरुष के साहसी चित्र प्रकाशित होते थे। सिनेमा की गॉसिप पत्रकारिता भी उसी दौर में शुरू हुई।

बहरहाल जिन देशों में कालाधन नहीं है, वहां भी अश्लील किताबें तथा फिल्में बनती हैं। यह सारा प्रकरण विशेषज्ञों द्वारा गहरे अध्ययन का मामला है। बहरहाल 'मिस लवली' सतही फिल्म है और धुंध को गहरा ही कर सकती है।