नृत्य बिन बिजली, जल बिन मछली / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 04 जुलाई 2020
भारतीय सिनेमा अपने गीत-संगीत के कारण दुनिया की फिल्मों से अलग है। भारतीय जीवन में हर अवसर के लिए गीत रचे गए हैं। हमारी जासूसी व मारधाड़ की फिल्मों में भी गीत होेते हैं। विदेशों में कभी-कभी ओपेरा शैली की फिल्मों में गीत होते हैं, जैसे ‘साउंड ऑफ म्यूजिक’ व ‘माई फेयर लेडी।’ अन्य फिल्म ‘फिडलर ऑन द रूफ’ का कथा सार यह है कि एक क्रिश्चियन बहुल बस्ती में एक घर में यहूदी परिवार रहता है। परिवार में सात सुंदर युवतियां हैं, जिनपर बस्ती के सारे युवा फिदा हैं। गुरुदत्त के प्रिय लेखक अबरार अल्वी ने इससे प्रेरित पटकथा लिखी। राजकपूर ने उस पटकथा पर फिल्म बनाने से मना कर दिया, क्योंकि उनका कहना था कि मूल फिल्म में क्रिश्चियन बनाम यहूदी पारंपरिक वैमनस्य के भारतीय समाज में रोपण के लिए जरूरी है कि एक ब्राह्मण बस्ती में एक तथाकथित निचले वर्ग का परिवार रहता है, जिसकी सात कन्याओं पर युवा फिदा हैं। पश्चिम की इस फिल्म में ‘टोपॉज’ के ओपेरा से प्रेरणा ली गई थी, जिसका नाम था ‘फिडलर ऑन द रूफ।’
दक्षिण के सफल नृत्य संयोजक हीरालाल के शागिर्द दशकों तक फिल्मी नृत्य निर्देशित करते रहे हैं। सरोज खान भी इसी घराने की थीं। बिरजू महाराज से के. आसिफ ने ‘मुगले आजम’ के नृत्य के लिए सहायता मांगी थी। उनके शिष्यों ने ही राजकपूर की ‘प्रेम रोग’ के एक गीत के नृत्य सृजन में सहयोग किया। के.आसिफ की पहली पत्नी सितारा देवी भी शास्त्रीय नृत्य में प्रवीण थीं। वी.शांताराम की फिल्म ‘झनक-झनक’ पायल बाजे में कलाकार संध्या ने बेहद कठिन नृत्य प्रस्तुत किए। ज्ञातव्य है कि कमल हासन भी शास्त्रीय नृत्य कला में प्रवीण रहे और फिल्म ‘एक-दूजे’में उनकी एक और प्रतिभा दिखी। फिल्म ‘सत्ते पे सत्ता’ में भी नृत्य कला आधार थी। इस फिल्म के एक नृत्य की प्रेरणा कोजाक नृत्य से ली गई थी। इस शैली के लिए बहुत शारीरिक ऊर्जा व चपलता आवश्यकता है। ‘हिंदुस्तानी’ फिल्म में भगनवान दादा की नृत्य शैली से राजकपूर व अमिताभ बच्चन प्रेरित हुए। भारत में डिस्को शैली का लाभ मिथुन चक्रवर्ती ने उठाया, उनकी ‘डिस्को डांसर’ विदेशों में सफल रही। एक दौर में कामरान स्टंट फिल्मों में सफल रहे परंतु फिल्म निर्माण में उन्हें भारी घाटा हुआ। उनकी पुत्री फरहा खान नृत्य संयोजन में ताजगी लाईं। मंसूर हुसैन की फिल्म ‘जो जीता वही सिकंदर’ में फरहा द्वारा संयोजित पहला नृत्य ‘पहला नशा’ बहुत सराहा गया। जब सलमान खान को सूरज बड़जात्या ने ‘मैंने प्यार किया’ में अवसर दिया तब सलमान ने फरहा से नृत्य सीखा व उनकी शैली लोकप्रिय हुई। सफल सितारे की हर अदा जादू बन जाती है। असफलता को नाजायज संतान माना जाता है, जबकि सफलता के पिता होने के दावेदार कई होते हैं।
संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ के एक दृश्य में अजय देवगन टैप डांस ब-खूबी करते हैं। फिल्म में शराब का एक दृश्य भी अजय ने ब-खूबी अभिनीत किया है। ज्ञातव्य है कि संजय के पिता को फिल्म निर्माण में घाटा हुआ था। वे अपने गम को शराब में डुबाने का प्रयास करते रहे। उनकी पत्नी श्रीमती लीला ने गुजराती रंगमंच पर नृत्य संयोजन कर अपना घर खर्च चलाया। इसीलिए संजय ने अपने नाम में अपनी मां के नाम लीला को सगर्व शामिल किया। संजय ने अपनी फिल्म ‘देवदास’ में पारो और चंद्रमुखी को एक साथ नृत्य करवाया। उनकी फिल्मों के नृत्य दृश्यों पर शांताराम का प्रभाव स्पष्ट है। सारी नृत्य शैलियां प्रकृति के कार्यकलाप से प्रेरित हैं। पशु-पक्षी के शरीर में रिद्म होता है। मोर का नृत्य देखना अभिनव अनुभव है। इस तथ्य को शैलेंद्र ने फिल्म मधुमति में रेखांकित किया है-‘जंगल में मोर नाचा किसी ने न देखा, हम जो पी के बहके तो सबने देखा।’ गाइड की रोजी के प्राण उसके पैरों में बसे हैं। उसके जीवन को भी शब्दों से शैलेंद्र ने अभिव्यक्त किया-तोड़कर बंधन बांधी पायल, आज फिर जीने की तमन्ना है, आज फिर मरने का इरादा है।’