नेता अभिनेता की तैयारी और चरित्र / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 13 फरवरी 2013
मुंबई में अंतरराष्ट्रीय स्तर के अंबानी स्कूल में प्रसिद्ध एवं अमीर लोगों के बच्चे ही दाखिला ले सकते हैं, क्योंकि फीस बहुत अधिक है और दाखिले के पहले की परीक्षा भी आसान नहीं है। फरहान अख्तर की दोनों पुत्रियां वहां पढ़ती हैं। शाहरुख खान का पुत्र व पुत्री भी वहां पढ़ते हैं तथा हाल ही माधुरी दीक्षित नेने के बच्चे भी वहां पढऩे लगे हैं। बहरहाल, संस्था में एक खेल-कूद प्रतियोगिता में माता-पिता के लिए भी एक खंड था, जिसकी सारी प्रतियोगिताएं फरहान अख्तर ने आसानी से जीत लीं, क्योंकि राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म 'भाग मिल्खा भाग' की शूटिंग के पहले लगभग एक वर्ष तक फरहान ने स्वयं को एक धावक की भूमिका के लिए तैयार किया था। फिल्म के पहले प्रोमो में भी फरहान का सुगठित शरीर और तैयारी नजर आई थी।
बेन किंग्सले ने भी महात्मा गांधी की भूमिका के लिए योग सीखा, शाकाहारी हुए और शराब का सेवन भी बंद किया। दिलीप कुमार ने 'कोहिनूर' के एक दृश्य के लिए वीणा वादन सीखा। इस तरह के अनगिनत प्रकरण हैं। मार्लन ब्रेण्डो ने 'गॉडफादर' के लिए एक शल्य चिकित्सा कराई थी। जब कलाकार अपनी भूमिकाओं के लिए इतनी तैयारी करते हैं, तब नेता संसद, विधानसभा इत्यादि में जाने के लिए किसी तरह का प्रशिक्षण क्यों नहीं लेते? नेता कम से कम पं. जवाहर लाल नेहरू की 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' पढ़कर भारत को समझने का प्रयास तो कर ही सकते हैं।
इसी तरह धार्मिक संगठनों के सरगना भी अपने-अपने धर्म की मूल किताबों के विश्वसनीय संस्करण तो पढ़ ही सकते हैं। मसलन हिंदुत्व के नेता पूना में तैयार विश्वसनीय महाभारत पढ़ लें और विवेकानंद साहित्य पढ़ लें, विशेषकर खंड-6 प्रकाशक अद्वैत आश्रम। उसकी पत्रावली में विवेकानंदजी के एक पत्र में लिखा है, 'यदि किसी धर्म के अनुयायी व्यावहारिक जगत के दैनिक कार्यों के क्षेत्र में, इस समानता को योग्य अंश में ला सके हैं तो वे इस्लाम और केवल इस्लाम के अनुयायी हैं..., इसलिए हमें दृढ़ विश्वास है कि वेदांत के सिद्धांत कितने ही उदार और विलक्षण क्यों न हों, परंतु व्यावहारिक इस्लाम की सहायता के बिना मनुष्य जाति के महान जनसमूह के लिए वे मूल्यहीन हैं... मैं अपने मानस चक्षु से भावी भारत की उस पूर्णावस्था को देखता हूं, जिसका इस विप्लव और संघर्ष से तेजस्वी और अजेय रूप में वेदांती बुद्धि और इस्लामी शरीर के साथ उत्थान होगा।'(विवेकानंद साहित्य पत्रावली पृष्ठ ४०५-४०६)
इसी तरह इस्लाम के तथाकथित प्रवक्ता कैसे इस हदीस को अनदेखा कर सकते हैं कि इस्लाम का सच्चा मानने वाला वही है, जिसके पड़ोस में रहने वाला उसके साथ रहते हुए स्वयं को सुरक्षित समझे। जिस मजहब के अभिवादन में आपकी सलामती की बात की गई हो, उस धर्म का व्यक्ति अनेक लोगों के जीवन को नष्ट करे तो वह अपने मजहब के उसूलों के खिलाफ जाता है। संसार के सारे धर्मों में सत्य, समानता, स्वतंत्रता व धर्म निरपेक्षता के सिद्धांत हैं और इस सत्य के बावजूद सबसे अधिक युद्ध धर्म के नाम पर लड़े गए हैं। वर्तमान में धर्म के मूल पाठ का पुनरुद्धार आवश्यक है।
बहरहाल, फरहान अख्तर की निष्ठा द्वारा की गई तैयारी ने उन्हें व्यक्तिगत जीवन में भी सुगठित शरीर दे दिया है, गोयाकि हर व्यक्ति अपने काम की तैयारी में न केवल अच्छे काम का संतोष महसूस करता है, वरन वह भीतर से भी मजबूत हो जाता है। यही कार्य-संस्कृति का मूल आधार है और इसी का लोप होता जा रहा है। हर क्षेत्र में लोग काम के नाम पर रस्म अदायगी ही कर रहे हैं। कोई तैयारी के साथ प्रस्तुत नहीं होना चाहता। हर आदमी काम करते हुए नजर आना चाहता है और काम उसके लिए महत्वपूर्ण नहीं है। एक लोकप्रिय फिल्म का दृश्य है कि मालिक के दफ्तर आते ही सब उठकर उसका अभिवादन करते हैं, परंतु नायक अपने काम में डूबा है। मालिक उसकी प्रशंसा करते हैं। अगले दिन मुकरी काम में डूबे हुए होने का अभिनय करता है, परंतु फाइल उलटी रखे होने के कारण पकड़ा जाता है।
आजकल भारत के अनेक शहरों में फैशनेबल स्कूल खुल गए हैं और वहां शिक्षा का भी मात्र अभिनय हो रहा है। शिक्षा का उद्देश्य अब व्यक्ति का सर्वांगीण विकास नहीं रह गया है, वरन वह योग्यता विकसित करना है, जिससे नौकरियां मिलती हैं।
बच्चे अपने वजन से अधिक का बस्ता पीठ पर लिए स्कूल जाते हैं, जिससे उनकी कमर उतनी नहीं झुकती, जितनी उस शिक्षा से, जो झुककर सफलता अर्जित करना सिखाती है। प्राय: माता-पिता बच्चे के होमवर्क में डूबे रहते हैं। शिक्षा के स्वांग से देश को बहुत हानि हो रही है। आज स्कूलों के लिए भव्य इमारत और आकरषक तामझाम समर्पित विद्वान शिक्षकों से अधिक आवश्यक हो गया है।