नैना बरसे रिमझिम रिमझिम / नवल किशोर व्यास

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नैना बरसे रिमझिम रिमझिम


कोई-कोई सुबह ऐसी भी होती है जब लगता है कि पिछली रात को आप किसी जंगलों, पहाड़ो और समन्दरों से चल के आये है। यात्रा थी पर कही जाना नही हुआ। कुछ ढूँढने की फिराक में थे पर पता ही ना था कि ढूंढना किसे था। और फिर आंख खुले। आप के पैर उस थकान को महसूस करें। पसीने से भीगी काया हो। बैचैन हो अवचेतन। उन जगहों से फिर से ढूंढने की कोशिशे हो। उस यात्रा को उनींदी आंखों में फिर से लाने की कोशिश हो। खाली खाली सा पिंजर अचानक ऐसे भाव से भर जाए जो आपने अब तक महसूस नही किया हो। आप अपने भीतर तक उतरते चले जाए। सारा बिखराव सिमट जाये। अचानक आप लबालब होते जाते है। भाव से। प्यार से। भर जाए। इतने लबालब हो जाये कि कोई हाथ रखे और आप फूट पड़े। 


कोई-कोई सुबह अपने भरे हुए मन के लिए ऐसे किसी गीत को दवा बनानी पड़ती है जो आपको छलकने का मौका दें और ऐसे में लता के गाये नैना बरसे को एक बार फिर सुनना पड़ता है। जाने कितने बरसो से सुनते ही आ रहे है। संगीतकार मदन मोहन की ये कमाल धुन राज खोसला की फिल्म वो कौन थी मे दर्ज है पर इस धुन के इस्तेमाल की कहानी भी कम लाजवाब नही। नैना बरसे की धुन को मदन मोहन रिकार्ड करने से अठारह साल पहले ही बना चुके थे पर जाने क्या था कि लगातार हर निर्माता-निर्देशक इसे रिजेक्ट किये जा रहे थे। इतना रिजेक्ट कि मदन मोहन ने सोच लिया कि अगर राज खोसला भी इस धुन को ना कर देंगे तो इस फिर धुन के बारे में सोचना बंद कर देंगे पर राज खोसला को ये धुन बहुत पसन्द आई। सुनते ही हाँ कर दी पर अब फिल्म की एक दूसरी धुन लग जा गले उन्हें बहुत साधारण लगी। उसे रिजेक्ट कर दिया। अजीब था पर सच यही है कि रिजेक्ट हों रही धुन सलेक्ट हो गई और लगभग सलेक्ट होने वाली धुन हो गई रिजेक्ट। बाद में फिल्म के हीरो मनोज कुमार ने ये लग जा गले की धुन सुनी और सुनकर ठीक वैसे ही उस खुमार में चले गए जिस खुमार में हम सब आज तक इस गाने को सुनकर हैं। उन्होने ही राज खोसला को फिर इस गाने को फिल्म में रखने के लिए राजी किया और गाने फिल्म में रहे। आज इन दोनों गानो को सुन सुन कर हमने जमाने बदल दिए। ये गीत अब तक हम सब की सुप्त होती भावनाओ को सहलाते रहते है।


खुद मदन मोहन ने फिर इस पर बोलते हुए एक रेडियो इंटरव्यू में कहा- "फीलिंग कैसी भी हो, किसी भी कला में ढली हुई हो, उसे वक्त और जमाना कैद नही कर सकता। वह हर समय ताजा बनी रहती है।"

मदन मोहन साहब, कितने सही थे आप।


और फिर ये सब जानने के बाद अक्सर इस गाने को सुनते हुए एक डर मन में हमेशा हरा रहता है कि अगर उस दिन, उस रोज राज खोसला भी नैना बरसे को रिजेक्ट कर देते तो.....