नो वन किल्ड जमाल खशोगी? / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 22 अक्टूबर 2018
कुछ वर्ष पूर्व नई दिल्ली के होटल में एक अमीरजादे ने जेसिका की हत्या कर दी, क्योंकि उसने नियमानुसार बार बंद कर दिया था। अमीरजादे के परिवार ने उसे बचाने के लिए हरचंद प्रयास किए। यहां तक कि बार में मौजूद 40 लोगों ने स्वयं के वहां होने को नकार दिया। इस हत्याकांड पर रानी मुखर्जी अभिनीत रोचक फिल्म 'नो वन किल्ड जेसिका' प्रशंसित होने के साथ ही टिकट खिड़की पर भी सफल सिद्ध हुई। खोजी पत्रकार जमाल खशोगी अरब काउंसलेट में गए परंतु वहां से बाहर आते नहीं देखे गए। समझा जाता है कि उनकी हत्या करने के बाद लाश को टुकड़े-टुकड़े कर पास के जंगल में ठिकाने लगा दिया गया। दुनियाभर के तमाम शहरों और कस्बों से कुछ लोग लापता हो जाते हैं। 'कौन बनेगा करोड़पति' के 19 अक्टूबर को दिखाए गए कार्यक्रम में एक महान व्यक्ति ने बताया कि किस तरह कमसिन उम्र की बच्चियों की चोरी करके उन्हें देह व्यापार में भेजा जाता है। उन्होंने ऐसी अनेक बच्चियों को बचाया है। किसी कस्बे में सभी महिलाएं खुल्लम-खुल्ला देह व्यापार करती हैं और उस जगह इसे पारम्परिक व्यवसाय बताया जाता रहा है। इस बस्ती का भी सुधार उन्होंने किया है।
यह भी माना गया है कि कुरुक्षेत्र में युद्ध के पूर्व ही लगभग 25,000 लोग लापता थे। ये लोग उस अनावश्यक युद्ध को नहीं लड़ना चाहते थे और अन्य स्थानों की ओर पलायन कर गए थे। श्रीकृष्ण के बड़े भ्राता बलराम ने स्वयं को न सिर्फ इस युद्ध से दूर रखा बल्कि इसकी बाकायदा घोषणा की थी। बलराम का प्रकरण उन 25,000 लोगों से अलग है, जिन्होंने कोई घोषणा नहीं की। वर्तमान में ऐसा माना जाता है कि लगभग 40 लाख भारतीय अन्य देशों में बस गए हैं। क्या यह संभव है कि इनमें से कुछ कुरुक्षेत्र में न लड़ने वालों के वंशज हैं? कुछ लोग तो विगत सदी में उच्च शिक्षा या बेहतर अवसर की तलाश में अमेरिका गए। दरअसल अमेरिका का अस्तित्व बनाने का श्रेय उन्हीं लोगों को है, जो विभिन्न देशों से अमेरिका आकर बसे। अब ट्रम्प महोदय कुछ भी करें परंतु अन्य देशों से आकर अमेरिका का विकास करने वालों के तथ्य को नकार नहीं सकते। वर्तमान समय में गुजरात से लोगों को खदेड़ा जा रहा है और असम से भी पलायन कराया जा रहा है। इतिहास इस तरह के पागलपन से भरा पड़ा है। पलायन किया भी जाता है और जबरन कराया भी जाता है। विस्थापित लोगों के दर्द को साहित्य व सिनेमा में अभिव्यक्त किया गया है। जॉन स्टीनबेक के महान उपन्यास 'द ग्रेप्स ऑफ रैथ में उन किसानों के पलायन की दास्तां है, जिनकी जमीनें हड़पकर वहां कारखाने बनाए गए। व्यवस्था की क्रूरता यह है कि ऐसे कुछ लोग हैं, जो पलायन नहीं कर रहे हैं परंतु फिर भी वे लापता है, क्योंकि स्वयं से अपरिचित हैं। यह एक अजीबोगरीब पलायन है कि व्यक्ति अपनी स्वतंत्र विचार प्रक्रिया को कुछ समय के लिए बंद कर दे। व्यक्ति भीड़ का हिस्सा नहीं होते हुए भी स्वयं को भीड़ की तरह विवेकहीन बना ले। इस तरह के मनुष्यों का उत्पादन बड़े स्तर पर जारी है। ये लोग अल्बर्ट कामू के 'द स्ट्रेंजर्स' से अलग हैं या कहें उस संवेदनहीन प्राणी का निखरा हुआ स्वरूप है। पत्रकार जमाल खशोगी को जिस इमारत में जाते हुए देखा गया, क्या उस इमारत में कोई तहखाना है? क्या उस इमारत के किसी हिस्से का एक द्वार रहस्यमय गुफा में ले जाने के लिए बनाया गया है? निर्मम व्यवस्थाएं ऐसा कुछ रचने में समर्थ हैं। जैनेट मालकोल्म एक जगह लिखती हैं कि हर खोजी पत्रकार यह जानता है कि वह अपने घपलों को उजागर करने के काम में यह अनैतिक कार्य कर रहा है कि वह किसी न किसी व्यक्ति की निजता के अधिकार को भंग कर रहा है। संभवत: पत्रकार जमाल खशोगी ऐसा कुछ जान गए थे, जिसके उजागर होने पर कई चेहरों से मुखौटे हट जाते या यह भी संभव है कि किसी अरब के हरम की किसी बांदी से उसे प्यार हो गया हो गया हो। गोयाकि यह रहस्य रोमांच की कथा नहीं होकर एक इश्क का किस्सा हो। क्या जमाल खशोगी अब अरेबियन नाइट्स नामक गल्प के पात्र हो जाएंगे? ज्ञातव्य है कि बादशाह विवाह करके पत्नी के साथ हमबिस्तर होने के बाद की सुबह उसका कत्ल कर देता था। इस तरह वह आदतन विवाह और कत्ल करता जाता था। एक विदूषी ने हजार रातों तक उसे कहानियां सुनाई और कत्ल होने से बचती गई। अंततोगत्वा बादशाह को अपनी विदूषी पत्नी से सच्चा प्रेम हो गया और कत्ल बंद हो गए।