न्याय नहीं वरन आय निर्णायक / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 16 अक्टूबर 2018
फिल्मकार संगठन का निर्णय है कि मध्य प्रदेश के सिनेमाघरों में प्रदर्शन नहीं होगा क्योंकि सरकार मनोरंजन कर वसूल करती है। दुनिया के किसी भी देश में मनोरंजन कर नहीं लिया जाता। इस पूरे मामले में असल बात यह है कि फिल्मकार को मध्य प्रदेश से प्राप्त होने वाली आय उनकी समग्र आय का सबसे छोटा हिस्सा है। विगत कुछ वर्षों में एकल सिनेमा घरों की संख्या निरंतर घटती गई है। मध्य प्रदेश में बने मल्टीप्लेक्स की आय भी अत्यंत अल्प है। अतः उन्हें इसकी कोई फिक्र नहीं है। परिवारों में मां भी कमाऊ पूत की दाल में ज्यादा घी डालती है। लाभ से रिश्तों का संचालित होना विघटित होते समाज का संकेत है। चुनाव आचार संहिता लागू होने के कारण कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता। इसके पूर्व मध्य प्रदेश के हुक्मरान प्राय: दौरे पर ही रहते थे। अब चुनाव बारहमासी होते जा रहे हैं। लोकसभा, ग्राम पंचायत, म्यूनिसिपल निगम, विधानसभा इत्यादि चुनाव का सिलसिला जारी रहता है गोयाकि चुनाव से बड़ा कोई व्यवसाय नहीं।
राजेंद्र सिंह बेदी के महान उपन्यास "एक चादर मैली सी’ में आर्थिक हालात के कारण बदलते रिश्तों का मार्मिक विवरण प्रस्तुत किया गया था। इससे प्रेरित फिल्म भी बनी है जिसमें हेमा मालिनी और ऋषि कपूर ने प्रमुख भूमिका अभिनीत की थीं। जब केंद्रीय पात्र का विवाह हुआ तब उन्होंने अपने देवर को शिशु की तरह पाला था परंतु घटनाक्रम इस तरह चलता है कि कालांतर में उन्हें विधवा हो जाने के बाद अपने इसी देवर से विवाह करना पड़ता है। यह दिखावे का विवाह नहीं होते हुए, इसके सारे दायित्व का वहन करना होता है। इसी तरह राजेंद्र यादव की कहानी में भी आर्थिक हालात से मानवीय रिश्तों में परिवर्तन होता है। पति और पत्नी के बीच तीसरी शक्ति धन का अभाव ही रहता है।
धन का अभाव तरह-तरह से जीवन के सभी क्षेत्रों को प्रभावित करता है। फ्योदोर दोस्तोयेव्स्की के धारावाहिक रूप में प्रकाशित "क्राइम एंड पनिशमेंट" का मेहनताना भी कर्ज अदायगी की मद में जाता था। पूंजीवाद की महाभारत की तरह मानी जाने वाली किताब ‘गॉडफादर’ के लेखक मारिया पुजो भी कर्ज में डूबे थे। सत्यजीत राय को "पाथेर पांचाली" पूरी करने के लिए बंगाल सरकार से कर्ज लेना पड़ा और फिल्म के मुनाफे का बड़ा भाग बंगाल सरकार को दशकों तक मिलता रहा। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्देश के अनुरूप नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन ने रिचर्ड एटनबरो की फिल्म "गांधी’ में पूंजी निवेश किया था। अफसरों की लापरवाही के कारण अनुबंध ऐसा बना कि निगम को उसका वाजिब हिस्सा नहीं मिला और जो कुछ भी मिला वह जूनियर कलाकारों और उससे जुड़े तकनीशियनों तक नहीं पहुंचा। स्वयं रिचर्ड एटनबरो के अंतिम वर्ष एक वृद्ध आश्रम में गुजरे। एक जितेंद्र अभिनीत फिल्म में पिता अपने संवेदनहीन सफल पुत्र पर मुकदमा कायम करता है कि उसके लालन-पालन में खर्च राशि मय ब्याज के उसे दिलाई जाए। निर्माता एन सिप्पी ने संजीव कुमार और माला सिन्हा अभिनीत फिल्म बनाई थी जिसमें उम्रदराज माता-पिता का उत्तरदायित्व दो पुत्र आपस में बांट लेते हैं। इसी तरह पति और पत्नी एक दूसरे से बिछड़ जाते हैं और यह उस समय होता है जब उन्हें एक-दूसरे के भावनात्मक सहारे की सबसे अधिक आवश्यकता होती है।
ऐसी कथा विचार का चरबा बाद में राजेश खन्ना और शबाना आज़मी के साथ "अवतार’ के नाम से बनाया गया था। इसी कथा पर अमिताभ बच्चन अभिनीत "बागबान’ भी बनी। आजादी के बाद भी भारत में उद्योग का विकास हुआ और उसके साथ ही तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने साहित्य अकादमी और कला अकादमी और सांस्कृतिक संस्थाओं का निर्माण भी किया। उसी दौर में पाकिस्तान अमेरिका से मिलने वाले दान और ऋण पर आधारित होते हुए उद्योग का विकास नहीं कर पाया और ना ही अदबी संस्थाएं बना पाया। यहां तक कि वहां साइकिल बनाने का उद्योग भी उस समय बना जब भारत में हवाई जहाज का निर्माण होनेे लगा था। पाकिस्तान में व्याप्त गरीबी और भुखमरी की कल्पना भी नहीं की जा सकती। हमारे नेताओं ने इस कमज़ोर पाकिस्तान से भय का हव्वा अपने राजनैतिक लाभ के लिए किया है। अब दशहरा की शस्त्र पूजा सरहद पर की जा रही है और उधर चीन प्रतिदिन कुछ जमीन हमारी हड़प रहा है परंतु शक्तिशाली से बैर नहीं लेने को मौजूदा व्यवस्था वीरता मानती है। पाकिस्तान में बने सीरियल यू-ट्यूब पर धड़ल्ले से देखे जा रहे हैं। पाकिस्तान के लेखक हमेशा ही सीरियल से जुड़े रहे क्योंकि 50 सिनेमा घर वाले देश में सिनेमा से आय नहीं प्राप्त हो सकती थी। हमारे देश में भी एकल सिनेमाघरों की संख्या निरंतर घट रही है। मध्यप्रदेश और राजस्थान में सबसे अधिक क्षति हुई है। हुक्मरान धार्मिक यात्राओं पर जाते रहे हैं और वे उसे विकास यात्रा भी कहते रहते हैं।