न्याय / प्रताप नारायण मिश्र
सवार साहब तो घोड़े की पीठ पर चढ़ें, उसे कोड़ा मारें, पाँव से एँड़ मारें, मुँह में लगाम लगावें, जब चाहें तब बाँधें, जब चाहें तब दौड़ावें, पर यह कोई न कहेगा कि सवार कठोर हृदय है, अन्यायी है। हाँ, यदि घोड़ा कहीं लात फटकार दे या काट खाए या सवार को पटक दे तो सबके मुँह से सुन लीजिए, घोड़ा बदलगाम है, कटहा है, लतहा है। वाह रे न्याय! सिंह व्याघ्र इत्यादि बलवान जीव होते हैं। वे जैसे हरिणादि को मार गिराते हैं वैसे ही कभी-कभी मनुष्य पर भी चोट कर देते हैं, इसलिए वे दुष्ट जंतु हैं। उनको मार डालना पाप नहीं है, बहादुरी है। पर मनुष्य महाशय बकरा मार खायँ, मछली हजम कर जायँ, चिड़ियों को भोग लगा जायँ, यह कहने वाला कोई न हो कि निर्दयी हैं।
वाह रे इंसाफ! यदि नौकर बिचारा कोई वस्तु उठाना भूल जाय और मालिक साहब ठोकर खा के गिर पड़े तौ फरमावेंगे, 'अंधा है, नालायक है, चीज को ठीक ठौर पर नहीं रखता, पैर तोड़ डाला'। पर जो कहीं मालिक साहब की वैसी ही असावधानता से नौकर ठोकर खा जाय तो भी आप यह न कहेंगे कि 'भाई हमें क्षमा करो, हमारी गफलत से तुम्हें चोट लग गई। बरंच झुँझला के कहेंगे, अंधा है, देख के नहीं चलता।' कहाँ तक कहिए, यदि हम कभी दुःख पा के, झुँझला के ईश्वर को कोई बात भी कह बैठे तो मूरख, नास्तिक, पापी इत्यादि की पदवी पावें और आप हमारे बाप, भाई, बंधु, बांधव, इष्ट मित्रादि का वियोग करा दें। धन, मान, आरोग्य अथवा प्राण तक हर लें तौ भी हमारे ही कर्मों का फल है।
वुह तो जो करेंगे हमारे भले ही को करेंगे। ऐसे-ऐसे लाखों उदाहरण सब काल, सब ठौर में मिला करते हैं जिससे हम ऐसे मुँहफट्टों का सिद्धांत हो गया है कि न्याय या इंसाफ या जसटिस एक शब्द मात्र है, जो खुशामदी लोग समर्थ व्यक्तियों के लिए कहा करते हैं। वास्तव में क्या न्याय, क्या दया, क्या वात्सल्य, सब प्रेमस्वरूप परमात्मा के गुण हैं, मनुष्य बिचारा उनका हठ कहाँ तक करेगा? महाराज भरत (जिन्होंने प्रजा को सताने के अपराध में अपने नौ लड़कों का सिर काट लिया था), बादशाह नौशेरवाँ (जिन्होंने एक बुढ़िया की फरियाद पर अपने पुत्र के बध की आज्ञा दी थी) इत्यादि नाम केवल उपमा के लिए हैं। यदि लोग कभी हुए भी हों तो उन्हें हम संसारियों में नहीं गिन सकते।
जगत की रीति यही है कि यदि आप असमर्थ हैं तो दूसरों को न्यायी धर्मात्मा गरीबपरवर बना के अपना मतलब गाँठते रहिए। यदि कभी परमेश्वर की दया, नसीबे के जोर या हिम्मत की चाल इत्यादि से आप भी कुछ हो जाइएगा तो हम लोग इन्हीं विशेषणों के साथ आपका नाम लिखा और कहा करेंगे। यकीन है यह शब्द धरती की पीठ पर इसी भाँति धारा प्रवाह रीति से बना रहा है वैसे ही बना रहेगा। यदि सचमुच न्याय कोई वस्तु है और उसको साक्षी देके हमसे पूछिए तो उत्तर यही पाइएगा कि सबके इतिहास देख डाले, सिद्धांत केवल यह निकला कि दुनिया अपने मतलब की है। उस मतलब के लिए जहाँ और बहुत बातें हैं, एक यह भी सही। मतलब निकलने में कोई अड़चन न पड़े तब तक आप मुझको कहते रहिए, मैं आपसे कहता रहूँगा कि न्याय के विरुद्ध चलना ठीक नहीं है।
इंसाफ को छोड़ना दुरुस्त नहीं है। पर जो कोई पुरुषरत्न अपने हानि लाभ, मानापमान, जीवन-मरण, सुख दुःख इत्यादि की पर्वा न करके, कठिन परीक्षा के समय, न्याय का साथ देता रहे उसे हम मनुष्य तो कह नहीं सकते, हाँ, देवता बरंच ईश्वरीयगुणविशिष्ट कहेंगे!