न्यूटन: लॉज़ ऑफ फिल्म मेकिंग / जयप्रकाश चौकसे

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न्यूटन: लॉज़ ऑफ फिल्म मेकिंग
प्रकाशन तिथि :27 सितम्बर 2017


शोधकर्ता न्यूटन ने गति के सिद्धांत की खोज की। यह ऐतिहासिक घटना 1687 की है और इसी ने जन्म दिया विज्ञान क्षेत्र में एक क्रांति को, जिसके मौजूदा चरण में हम आकाश गंगा में पृथ्वी के समान अन्य ग्रह खोज रहे हैं। दरअसल पृथ्वी एक छोटा-सा ग्रह है और जाने कितने इससे बड़े ग्रह-तारे अंतरिक्ष में मौजूद हैं। हमारे अहंकार कितने तुच्छ हैं कि अभी तक हमने अपनी पृथ्वी को ही पूरी तरह नहीं जाना, जो स्वयं संभवत: लघुतम है। फिल्मकार ने छत्तीसगढ़ के एक दूरदराज बसे क्षेत्र को अपनी कथा की पृष्ठभूमि बनाई है। कांकेर क्षेत्र के आदिवासी गोरे रंग के हैं। इस क्षेत्र को सभ्यता के आक्रमण से बचाने के लिए सरकार ने भरपूर व्यवस्था की है। इस क्षेत्र में जंगल इतना घना है कि दोपहर को ही सूर्य किरणें प्रवेश कर पाती हैं।

बहरहाल, 'न्यूटन' नामक मनोरंजक फिल्म के नायक का नाम नूतन है परंतु मित्र उसे न्यूटन कहकर संबोधित करते हैं। उसे छत्तीसगढ़ के एक दुर्गम क्षेत्र में बसे लगभग पचास मतदाताओं को चुनाव में भागीदार बनाना है। उम्रदराज अनुभवी लोग उसे सलाह देते हैं कि वह इतने कम मतदान के लिए इतना जोखिम नहीं उठाए, क्योंकि वह क्षेत्र नक्सलवाद के प्रभाव में है। युवा न्यूटन अपने काम के प्रति समर्पित है और जोखिम उठाकर वह अपना काम पूरा करता है। इस तरह की कथा में प्रेम व गीत-संगीत की गुंजाइश कम होती है और यह लीक से हटकर एक अछूता विषय है। फिल्मकार ही असली न्यूटन है। भारतीय सिनेमा में परिवर्तन होते रहते हैं परंतु कुछ आदर्श नहीं बदलते, मसलन बुराई पर अच्छाई की जीत, विभिन्न समुदाय के लोगों का आपसी याराना, प्राण जाए पर वचन नहीं जाए इत्यादि।

यह फिल्म भारतीय गणतंत्र व्यवस्था व चुनाव प्रणाली पर भी प्रकाश डालती है। भारत में विकसित गणतंत्र अन्य गणतंत्र से अलग है। प्राय: सरकारें 42 से 50 प्रतिशत मतदान के आधार पर ही बनती रही हैं परंतु विगत आम चुनाव में 30 प्रतिशत से ही सरकार बनी है। धर्म और जाति आज भी महत्वपूर्ण है। जेपी दत्ता की एक फिल्म में पुलिस कुछ अधिकारियों को पकड़कर जीप से थाने की ओर जा रही है। एक जगह अफसर जीप रोककर अपने सजातीय अपराधी को भाग जाने का आदेश देता है और बाद में अन्य अपराधियों को गोली मार देता है। 'मुठभेड़' पुलिस प्रायोजित भी होती है। एनकाउंटर विशेषज्ञ पर फिल्म भी बनी है। नाना पाटेकर अभिनीत इस फिल्म का नाम था 'अब तक छप्पन'।

प्राय: फिल्म इतिहासकार 1947 से 1964 तक के कालखंड को स्वर्ण युग मानते हैं और इस कालखंड में शांताराम, मेहबूब खान, बिमल रॉय, गुरुदत्त, राज कपूर और अमिया चक्रवर्ती जैसे फिल्मकार सक्रिय रहे हैं। वर्तमान दशक में भी महान फिल्मों की रचना हुई है जैसे आमिर खान की 'लगान', 'तारे जमीं पर', 'थ्री इडियट्स'। सलमान खान की 'बजरंगी भाईजान' एक सार्थक रचना है। 'दृश्यम' से प्रेरित फिल्म चीन में बनाई जा रही है, जिसके बाकायदा अधिकार खरीदे भी गए हैं। अक्षय कुमार लगातार सफल फिल्में कर रहा है। उसकी 'टायलेट : एक प्रेम कथा' और अन्य फिल्में खूब सराही गई हैं। अमिताभ बच्चन अभिनीत 'पिंक' यादगार फिल्म है।

इस दशक में आनंद एल. राय सफलतम फिल्मकार हैं और उनकी निर्माण गति भी तेज है। कॅरियर में पहली बार में सितारे शाहरुख खान अभिनीत फिल्म बना रहे हैं। प्रियंका चोपड़ा भारत से अधिक अमेरिका में लोकप्रिय हैं। अनुष्का शर्मा 'एनएच टेन' जैसी साहसी फिल्म का निर्माण कर चुकी है। इस दशक में ही 'वेडनस डे', 'पानसिंह तोमर', 'विकी डोनर' इत्यादि फिल्मों में अब तक अछूते विषय उठाए गए हैं और प्रस्तुतीकरण भी रोचक है। इरफान खान अभिनीत फिल्म 'लन्च बॉक्स' कितनी साहसी फिल्म है।

फिल्म उद्योग का अघोषित थीम सॉन्ग है 'चलना जीवन की कहानी, रुकना मौत की निशानी'। इस तरह न्यूटन नियम से फिल्म उद्योग हमेशा ही संचालित रहा है। दरख्त के नीचे बैठा न्यूटन एक फल के जमीन पर गिरने जैसी सामान्य घटना से प्रेरित होकर 1687 में गति के सिद्धांत खोज लेता है। विगत 104 वर्षों से फिल्में भी गतिशील रही हैं और इन्हें मोशन फिल्म इसलिए नहीं कहते कि प्रोजेक्शन रूम में रील घूम रही है वरन् इसलिए कहते हैं कि सिनेमाघर की सीट पर स्थिर बैठे दर्श के हृदय में भावनाओं का जन्म हो रहा है। वर्तमान कालखंड में बाजार व राजनीति भावना शून्य मनुष्य का निर्माण कर रही है परंतु सिनेमा भावना संचार कर रहा है। सिनेमा पर जजिया कर- जीएसटी थोपना एक अन्याय है। हवा पर टैक्स नहीं तो मनोरंजन पर भी नहीं होना चाहिए।