पंकज कपूर : संध्या और 'दोपहरी' / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 16 नवम्बर 2019
अभिनेता पंकज कपूर का पहला उपन्यास 'दोपहरी' हॉर्पर ने प्रकाशित किया है। यह इतना ताजा प्रकाशन है कि पन्नों से प्रिंटिंग मशीन की गंध महसूस की जा सकती है। एक वृद्ध महिला अपने पुरखों की बनाई लाल हवेली में तन्हाई से जूझ रही है। वृद्धाश्रम में उसे अच्छा नहीं लगा, इसलिए हवेली में लौटी है। उनकी नई किराएदार हसीन, लाधड़क के आते ही वृद्धा को जिंदगी फिर से रोमांचक लगने लगी। कुछ खुश मिजाज लोग अपने चारों ओर आनंद का सृजन करते हैं। पंकज कपूर का कहना है कि उन्होंने पहले भी उपन्यास लिखे हैं, परंतु प्रकाशित होने वाला यह पहला उपन्यास है। यह भी गौरतलब है कि पंकज कपूर ने अपने जीवन के संध्याकाल में 'दोपहरी' नामक उपन्यास लिखा है। सृजनधर्मी लोग सायंकाल की लंबी गहरी परछाइयों को अलसभोर की किरणों के समान बना देने की क्षमता रखते हैं।
छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में जन्मे फिल्मकार अभिनेता किशोर साहू की आत्मकथा में हिंदुस्तानी सिनेमा के प्रारंभिक दौर के इतिहास की भीतरी जानकारी प्राप्त होती है। इस किताब को तत्कालीन मुख्यमंत्री रमण सिंह के सहयोग से राजकमल प्रकाशन ने जारी किया था। बलराज साहनी ने सिनेमा आैर रंगमंच पर पुस्तक लिखी थी। सैल्यूलाॅइड पर मानवीय करुणा के गीत लिखने वाले महान सत्यजीत रॉय ने कहानियां लिखी हैं और बाल पत्रिका का संपादन भी किया है। उन्होंने जासूसी उपन्यास भी लिखे हैं। सत्यजीत रॉय ने 'हीरोज एंड हीरोइंस' नामक पुस्तक के लेखक अभिनव नाग से लंबी बातचीत की थी।
सत्यजीत रॉय ने 'अवर फिल्म्स देयर फिल्म्स' नामक किताब लिखी है। प्रसिद्ध फिल्कार दीपा मेहता की पुत्री ने 'शूटिंग वाटर' नामक किताब लिखी है। ज्ञातव्य है कि बनारस में 'वाटर' फिल्म की शूटिंग नहीं होने देने के लिए एक हुड़दंगी ने गंगा में छलांग लगा दी थी। इसी घटना के कारण सरकार द्वारा दी गई शूटिंग की इजाजत रद्द कर दी गई थी। दीपा मेहता ने अपनी फिल्म श्रीलंका में शूट की थी। अपने प्राणों की आहुति देने वाला युवक कुछ वर्षों के पश्चात दिल्ली में देखा गया। वह एक जुलूस को रोकने के लिए सड़क पर लेट गया था। बाद में हुड़दंगी ने स्वीकार किया कि इस तरह के कार्य करना उसका व्यवसाय है और वह खूब धन कमाता है। हुड़दंगियों को नेताओं का प्रश्रय प्राप्त है।
नसीरुद्दीन शाह की आत्मकथा कुछ वर्ष पूर्व प्रकाशित हुई थी। निहायत ही साफगोई से नसीरुद्दीन ने अपनी जीवनकथा लिखी थी। ऑक्सफोर्ड में शिक्षित पाठक ने नसीरुद्दीन की अंग्रेजी भाषा पर पकड़ की प्रशंसा की है। ओम पुरी का जीवन चरित्र उनकी पत्नी ने लिखा, परंतु उनका उद्देश्य सत्य प्रकट करना नहीं था। व्यक्तिगत खुन्नस अनर्थ करा देती है।
फ्रांस के फिल्म समालोचक का विश्वास रहा है कि फिल्मकार ही फिल्म का असली लेखक भी होता है। ख्वाजा अहमद अब्बास की पटकथाओं से प्रेरित राज कपूर ने सफल सार्थक फिल्में रची हैं। परंतु अब्बास साहब द्वारा बनाई गई एक भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं रही। यहां तक कि ख्वाजा अहमद अब्बास की बहुसितारा फिल्म 'चार दिल चार राहें' भी असफल रही। उस फिल्म में पृथ्वीराज कपूर, राज कपूर, शम्मी कपूर, मीना कुमारी, बलराज साहनी इत्यादि कलाकारों ने अभिनय किया था। अनिल विश्वास ने मधुर संगीत रचा था। कुछ फिल्मकारों ने अपनी आत्मकथा प्रेरित फिल्में बनाईं, परंतु वे सफल नहीं रहीं। गुरु दत्त की आत्मकथात्मक 'कागज के फूल' असफल रही। राज कपूर की 'मेरा नाम जोकर' भी असफल रही। संभवत: दर्शक की रुचि फिल्म में है, परंतु फिल्मकार के जीवन या सृजन प्रक्रिया में नहीं है।
मिठाई खाने वाले को मिठाई बनाने की प्रक्रिया में रुचि नहीं होती। आत्मकथा किसी भी माध्यम से लिखी जाए, अत्यंत कठिन कार्य है। प्राय: फिल्मकार अपनी लोकप्रिय छवि की कथा ही प्रस्तुत करता है। दरअसल, समस्या यह है कि मनुष्य स्वयं को ही सबसे कम जानता है, इसलिए आत्मकथा आधी हकीकत आधा फसाना होती है। आम आदमी भी अपने लिए एक छवि गढ़ता है और छवि के अनुरूप आचरण करते हुए स्वयं को खो देता है और छवि को ही जीने लगता है।