पंचतंत्र की रचना का इतिहास / पंचतंत्र
आलेख : अशोक कुमार शुक्ला
ईसा से लगभग दो सौ तीन सौ वर्ष पूर्व पंडित विष्णु शर्मा ने पंचतंत्र की इन कहानियों को गढा था। इन कहानियों के जरिए उन्होंने एक राजा के तीन बिगडे बेटों को सही राह दिखाई थी। उन्होंने अपनी बातें पशु-पक्षियों के मुख से रोचक तरीके से कहलवाई। वही उनकी कहानी के पात्र थे। पशु-पक्षियों को आधार बनाकर उन्होंने राजकुमारों को उचित-अनुचित की शिक्षा दी। उनकी शिक्षा समाप्त होने के बाद पंडित विष्णु शर्मा ने इन कहानियों को पंचतंत्र की कहानियों के रूप में संकलित किया।
रचना का इतिहास
पंचतंत्र की कहानियों की रचना का इतिहास भी बडा ही रोचक हैं। लगभग 2000 वर्षों पूर्व भारत वर्ष के दक्षिणी हिस्से में महिलारोप्य नामक नगर में राजा अमरशक्ति का शासन था। उसके तीन पुत्र बहुशक्ति, उग्रशक्ति और अनंतशक्ति थे। राजा अमरशक्ति जितने उदार प्रशासक और कुशल नीतिज्ञ थे, उनके पुत्र उतने ही मूर्ख और अहंकारी थे। राजा ने उन्हें व्यवहारिक शिक्षा देने व्यवहारिक शिक्षा देने की बहुत कोशिश की परंतु किसी भी प्रकार से बात नहीं बनी। हारकर एक दिन राजा ने अपने मंत्रियों से मंत्रणा की। राजा अमरशक्ति के मंत्रिमंडल में कई कुशल, दूरदर्शी और योग्य मंत्री थे, उन्हीं में से एक मंत्री सुमति ने राजा को परामर्श दिया कि पंडित विष्णु शर्मा सर्वशास्त्रों के ज्ञाता और एक कुशल ब्राह्मण हैं, यदि राजकुमारों को शिक्षा देने और व्यवहारिक रुप से प्रक्षित करने का उत्तरदायित्व पंडित पंडित विष्णु शर्मा को सौंपा जाए तो उचित होगा, वे अल्प समय में ही राजकुमारों को शिक्षित करने की सामर्थ रखते हैं।
राजा अमरशक्ति ने पंडित विष्णु शर्मा से अनुरोध किया और पारितोषिक के रूप में उन्हें सौ गांव देने का वचन दिया। पंडित विष्णु शर्मा ने पारितोषिक को तो अस्वीकार कर दिया, परंतु राजकुमारों को शिक्षित करने के कार्य को एक चुनौती के रुप में स्वीकार किया। इस स्वीकॄति के साथ ही उन्होंने घोषणा की कि मैं यह असंभव कार्य मात्र छः महिनों में पूर्ण करुंगा, यदि मैं ऐसा न कर सका तो महाराज मुझे मॄत्युदंड दे सकते हैं।पंडित विष्णु शर्मा की यह भीष्म प्रतीज्ञा सुनकर महाराज अमरशक्ति निश्चिंत होकर अपने शासन-कार्य में व्यस्त हो गए और पंडित विष्नु शर्मा तीनों राजकुमारों को अपने आश्रम में ले आए।
राजा ने हर्षपूर्वक तीनों राजकुमारों की जिम्मेदारी विष्णु शर्मा को दे दी। विष्णु शर्मा जानते थे कि वे उन राजपुत्रों को पुराने तरीकों से कभी नहीं पढ़ा सकते। उन्हें थोड़ा सरल तरीका अपनाना होगा तथा वह तरीका था उन्हें जन्तु कथाओं की कथायें सुनाकर आवश्यक बुद्धिमता सिखाने का। इसलिये उन्होंने उन्हें शिक्षित करने हेतु कुछ कहानियों की रचना की जिनके माध्यम से वे उन्हें नीति सिखाया करते थे। वह प्रतिदिन राजकुमारों को नई-नई कहानियां सुनाते। जिनके पात्र मुख्यतः पशु-पक्षी होते थे। राजकुमार इन कहानियों को बड़े ध्यान से सुना करते थे। फलस्वरूप कुछ ही समय में तीनों सफल जीवन के गुणों से परिचित हो गए। लोक-व्यवहार, आत्मविश्वास, संपन्नता, दृढ़संकल्प, मित्रता और विद्या के सही संयोग से ही मनुष्य सुखी जीवन जी सकता है। इसी कौशल को इन कहानियों में बड़ी बानगी से उतारा गया है। शीघ्र ही राजकुमारों ने इसमें रुचि लेना आरम्भ कर दिया तथा नीति सीखने में सफलता प्राप्त की।
पंडित विष्णु शर्मा ने राजकुमारों को विविध प्रकार की नीतिशास्त्र से संबंधित कथाएं सुनाई। उन्होंने इन कथाओं में पात्रों के रुप में पशु-पक्षियों का वर्णन किया और अपने विचारों को उनके मुख से व्यक्त किया। पशु-पक्षियों को ही आधार बनाकर उन्होंने राजकुमारों को उचित-अनुचित आदि का ज्ञान दिया व व्यवहारिक रुप से प्रशिक्षित करना आंरम्भ किया ।
पंचतंत्र के पाँच तंत्र (अनुभाग)
राजकुमारों की शिक्षा समाप्त होने के बाद पंडित विष्णु शर्मा ने इन कहानियों को पंचतंत्र की प्रेरक कहानियां के संग्रह के रुप में संकलित किया। पंचतंत्र को पाँच तंत्रों (भागों) में बाँटा गया है:
1- मित्रभेद (मित्रों में मनमुटाव एवं अलगाव)
2- मित्रलाभ या मित्रसंप्राप्ति (मित्र प्राप्ति एवं उसके लाभ)
3- काकोलुकीयम् (कौवे एवं उल्लुओं की कथा)
4- लब्धप्रणाश (मृत्यु या विनाश के आने पर ; यदि जान पर आ बने तो क्या?)
5- अपरीक्षित कारक (जिसको परखा नहीं गया हो उसे करने से पहले सावधान रहें ; हड़बड़ी में कदम न उठायें)
वैश्विक नीति कथाओं में महत्वपूर्ण स्थान
इन कहानियों का संकलन पाँच समूहों में पंचतन्त्र के नाम से कोई 2000 साल पहले बना। यही कहानियां पंचतंत्र के नाम से जानी जाती हैं। शताब्दियों पुरानी ये कहानियां, जो संस्कृत में लिखी गईं थी, आज भी विश्व साहित्य की अमर थाती हैं।
पंचतंत्र दुनिया के उन थोड़े पुस्तकों में से एक है जिनका प्राचीन काल में ही यूरोप की प्रायः तमाम भाषाओं में अनुवाद हो गया था।
इसका पहला अनुवाद ईरान में पहलवी में फारसी भाषा में हुआ जिसने विदेशों में पंचतत्र की सफलता और लोकप्रियता के झण्डे गाड दिये । इसकी लोकप्रियता का यह परिणाम था कि बहुत जल्द ही पंचतंत्र का ‘लेरियाई’ भाषा में अनुवाद करके प्रकाशित किया गया, यह संस्करण 570 ई. में प्रकाशित हुआ था।
संलग्न चित्र ऐतिहासिक भारतीय कृति 'पंचतंत्र' के फारसी अनुवाद की प्रतिकृति पुस्तक की है ! पंचतंत्र की कथाओं के फारसी अनुवादक का नाम इब्न अल मुकाफा है !
फारसी से अरबी भाषा में इसका अनुवाद हुआ। अरबी से सन 1080 के लगभग इसका यूनानी भाषा में अनुवाद हुआ। फिर यूनानी से इसका अनुवाद लैटिन भाषा में पसिनस नामक व्यक्ति ने किया। अरब अनुवाद का एक उल्था स्पेन की भाषा में सन 1251 के लगभग प्रकाशित हुआ। जर्मन भाषा में पहला अनुवाद 15वीं शताब्दी में हुआ और उससे ग्रंथ का अनुवाद यूरोप की सब भाषाओं में हो गया।
पंचतंत्र की कहानियाँ जावा के पुराने लिखित साहित्य तक और संभवत: मौखिक रूप से इंडोनेशिया तक भी पहुँची। भारत में 12 वीं शताब्दी में पंचतंत्र की साम्रगी की एक स्वतंत्र प्रस्तुति नारायण पण्डित द्वारा रचित हितोपदेश से हुयी। जो प्रमुखतः बंगाल में प्रसारित हुयी।