पंचम की याद आती है / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 27 जून 2014
आज पंचम अर्थात राहुल देव बर्मन का 75वां जन्म दिन है और अगर वे जीवित होते तो आज के लोकप्रिय संगीतकार प्रीतम, हिमेश रेशमिया और साजिद-वाजिद से उनकी प्रतिस्पर्धा होती और मजे की बीत यह है कि इन सबके पिता किसी दौर में पंचम और उनके पिता राजकुमार सचिन देव बर्मन के साजिंदा रहे हैं । गोयाकि मुकाबला अपने अपनों के बीच ही होता। जब पंचम लोकप्रियता के शिखर पर थे तब लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल सिंहासन पर विराजमान थे और इनकी प्रतिद्वंद्विता में लक्ष्मी-प्यारे यह कभी नहीं भूले कि उनकी 'दोस्ती' के गीत में माउथ आर्गन बजाने के लिए श्रेष्ठ पंचम की सेवाएं उन्होंने ली थीं। उस दौर में प्रतिद्वंद्विता सख्त थी परन्तु उसे दुश्मनी माना जाता था और किसी अन्य के श्रेष्ठ काम पर तालियां बजाने में कोई संकोच नहीं किया जाता था।
राजकुमार सचिन देव बर्मन के एकमात्र पुत्र का जन्म नाम राहुल देव रखा गया था परन्तु उस दौर के सुपर सितारा अशोक कुमार ने जब नन्हे बालक को गोद लिया तो वह रोने लगा तब दादा मुनि अशोक कुमार ने सचिनदा से कहा कि यह तो रोता भी पंचम में है, इसे पंचम कहेंगे और स्वयं सचिन दा ने उसे हमेशा पंचम कहकर ही पुकारा। पंचम का जन्म 27 जून 1939 को हुआ था जो दूसरे विश्व युद्ध का प्रारंभिक चरण था। पंचम बचपन से ही स्कूल से अधिक समय अपने पिता के संगीत कक्ष में गुजारता था और उसकी जन्मना प्रतिभा देखकर जब वह बमुश्किल सत्रह का था, गुरुदत्त ने अपनी फिल्म 'गौरी' के लिए अनुबंधित किया जिसमें स्वयं गुरुदत्त अपनी पत्नी गीता दत्त के साथ अभिनय कर रहे थे। पति-पत्नी के अहंकार और संदेह की लड़ाई में फिल्म चार रील बनकर रद्द हो गई और निराश पंचम को बाल सखा मेहमूद ने वचन दिया कि शीघ्र ही वे फिल्म बनाने जा रहे हैं जिसमें पंचम ही संगीत देगा। इस तरह पंचम को एक अवसर मिला परन्तु पहला गीत वे लता से गवाना चाहते थे जिनका उन दिनों सचिन दा से मनमुटाव चल रहा था। पंचम ने लताजी को रिहर्सल के लिए बुलाया वे 'जैट' नामक इमारत में पहुंची तो उन्हें मनमुटाव याद आया। उन्होंने पंचम से कहा कि फ्लैट के बाहर सीढिय़ों पर वह हारमोनियम लेकर आए और वे बाहर ही रिहर्सल करेंगी। उस दौर में शिखर गायिकाएं भी दस-पंद्रह दिन गीत की रिहर्सल करती थी, आज तो उभरती गायिका भी कहती है कि रिकॉर्डिंग पर ही रिहर्सल होगी। जब पंचम और लता ने अपना काम शुरू किया तो, सचिन दा बाहर आए और लता से कहा कि हमेशा की तरह सरस्वती को नमन करने की बात भूल गईं, भीतर आकर नमन करो और रिहर्सल करो। इस तरह मनमुटाव समाप्त हुआ। मां सरस्वती कला को जन्म ही नहीं देतीं वरन् अपने बच्चों के मनमुटाव को भी दूर करती हैं। वह गीत था 'घिर आए काले बदरवा' और फिल्म थी 'छोटे नवाब'। बाद में मेहमूद की दूसरी फिल्म 'भूत-बंगला' में पंचम ने संगीत भी दिया और अभिनय भी किया।
सचिन देव बर्मन पारम्परिक माधुर्य और उत्तर-पश्चिम की लोकधुनों के साथ ही नए प्रयोग भी करते थे। यह एक लोकप्रिय परन्तु असत्य बात है कि पंचम ही प्रयोगवादी थे, सच तो यह है कि सचिन दा ने अनेक प्रयोग किए और यह भी गलत है कि देव आनंद के लिए किशोर कुमार की आवाज ही अनुकूल थी जबकि सचिन दा ने मोहम्मद रफी की आवाज का इस्तेमाल देव आनंद के लिए अनेक फिल्मों में किया जैसे काला पानी, काला बाजार, तेरे घर के सामने और गाइड इत्यादि। यहां तक कि जिस 'आराधना' से किशोर कुमार की दूसरी पारी शुरू हुई , उसमें भी 'गुनगुना रहे हैं भंवरे कली कली' रफी साहब ने गाया है।
पंचम ने 'आराधना' में न केवल अपने पिता के सहायक की तरह काम किया, वरन् कुछ धुनें उनकी भी हैं और पिता के बीमार रहने के कारण उन्होंने रिकॉर्डिंग भी की है। दरअसल पंचम अपने प्रथम अमेरिका दौरे में 36 चैनल पर रिकॉर्डिंग की सुविधा देखकर बौरा गए। यह पंचम की सृजन क्षमता ही थी कि शक्ति सामंत और अन्य व्यवसायी फिल्मकारों के लिए काम करते हुए भी उन्होंने गुलजार के गीतों को भी धुनों में बांधा। पंचम बहुत ही दिलदार, भोजन प्रेमी और यारबाज आदमी थे। आज की टेक्नोलॉजी में विपुल तकनीकी सुविधाओं का भरपूर दोहन करते। टेक्नोलॉजी अपने आगमन के पूर्व ही अपने पहले प्रेमी पंचम को खो चुकी थी।