पगड़ी / सुषमा गुप्ता
"तुम्हें इससे शादी करनी है?" सामने बैठी रीमा को देख मनीष के पिता ने धीरे से उसके कान में कहा।
"हाँ पापा, रीमा बहुत अच्छी..."
"खाक अच्छी है, कल रात ही पब में देखा था दोस्तों के साथ नाचते और शायद पीती भी है यह तो।"
"नहीं पापा, इसकी कज़िन की शादी है। कल उसी की कॉकटेल पार्टी थी तो इसे जाना पड़ा। मुझे बताकर गई थी।"
"वह सब मुझे मत समझा। हम इज्ज़तदार लोग है। पब में जाने वाले लड़की हमारे घर की बहू नहीं बन सकती। समाज में अपनी पगड़ी नहीं उछलवानी मैंने।"
"पर पापा, आप क्या कर रहे थे कल वहाँ?"
"मैं ... मैं वह ..."
"कुछ नहीं मनीष, कल तुम्हारे पापा अपने से आधी उम्र की लड़की के साथ पब में बेसुध नाच रहे थे। मुझसे टकरा गए, तो मैंने धक्का देकर पीछे हटा दिया। देखना ज़रा इनकी ढीली पगड़ी कल वहीं न गिर गई हो। अच्छा अंकल जी, चलती हूँ, नमस्ते।"
कहकर रीमा बाहर निकल गई
मिस्टर मेहरा दिसम्बर की ठंड में अपना पसीना पोंछने लगे।
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