पगहा / सौरभ कुमार वाचस्पति

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“और एक ही हुमच्चे में पगहा टूट गया !’

ललपरिया' अपनी पनियाई जीभ, भूख से कुलबुलाती अन्तरियां और मन में आशा की एक नई डोर लिए उछल पड़ी ! उसने एक बार अपने रुग्न मालिक 'सीरिया' को देखा जो बड़ी ही करुण और असहाय आँखों से उसकी ओर देख रहा था , मानो कह रहा हो -" ललपरिया, पगहा मत तोड़ो, पगहा टूट जाने पर फिर खूंटे से नहीं जुड़ पाओगी ! मेरी मजबूरी पर रहम कर ! जब मेरी सेहत दुरुस्त थी तो तुम्हे कितना मानता था मैं ! दिन भर रिक्सा टानते रहता था ! न दिन का दिन समझता था न रात को रात ! न कड़कडाता हुआ जाड़ा, न चिलचिलाती हुई धूप ! जो भी कमाता , उससे खाने - पीने की सुन्दर -सुन्दर चीजे खरीद कर तुम्हारे सामने परोस देता था ! तू कितना खुश रहती थी ! और तुम्हें खुश देखकर मेरे कलेजे गर्व से फूल उठते थे की मेरी ललपरिया खुश है ! उसकी सेहत उम्दा है ! मैंने सोचा था की इस बार जरूर एक सुन्दर टटघरवा बनाऊंगा तुम्हारे लिए ! मगर किस्मत को कोई देख पाता है भला ! मेरे ख्वाब अधूरे रह गए ! आग लगे उस मेम को जो अपने यार से झगड़कर गुस्से में जैसे -तैसे कर कार चला रही थी ! साली को 'डरेवरी' नहीं आती थी तो चला क्यों रही थी ? मार दिया मेरे रिक्से में धक्का ! मैं औंधा गिरा ! सर फूट गया ! ऊपर से कार का एक चक्का दाहिने गोड़ को पीसता चला गया ! आह्ह्ह ......... ! साली मेम ने पलटकर देखा ; सॉरी कहा और अपनी रफ़्तार से भागती चली गई ! जैसे सॉरी कह देने से फूटे सर और कुचले- मसले पैर ठीक हो जाते ! उफ़ .....!

ललपरिया ! तू कठकरेज मत बन ! कुछ ही दिनों में मेरी सेहत दुरुस्त हो जाएगी ! तब फिर तुम्हें सुख ही सुख ...............! "

और ललपरिया एक क्षण ठिठकी ! आज भूखे रहने का चौथा दिन था ! रोम - रोम में लहरा बर रहा था ! छ महीने से तो अध्पेट्टा खाकर उसने दिन बिताए ! यह पगहा नहीं होता तो किसी के खेत में छुपकर घुस जाती और मटर की छीमियाँ ही सरपोट लेती ! मगर यह पगहा ................. ! ऊफ्फ्फ ........! व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और सारा संसार किसी न किसी पगहे से बंधा हुआ है! आखिर क्यों बनाए लोगो ने पगहे ? क्यों बनाया विधि -निषेध का विधान ! क्यों बनाया यह रिवाज की अगर गाय - बैल खरीद कर लाओ तो उसके गले में पगहा डाल दो ! शादी कर के बहू घर लाओ तो उसके मांग में सिन्दूर भर दो ? भला सिन्दूर लगाने से कोई अपना हो जाता है क्या ? ये सब नियम -धरम समाज के पगहे हैं , जिसे न जाने कब से समाज वाले मेरी तरह भूखे - अधभूखे रहकर ढ़ोते आए हैं ! मैं भी तो अब तक पगहे से बंधी थी ! क्या मिला मुझे ? छ महीनो से भूख- प्यास से तड़प रही हूँ !

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उफ़ .... उस केले वाले तरुण ने केले का छिलका मेरी तरफ फेंका ! कैसी ललचाई निगाहों से देख रहा था मेरी तरफ ! मैं केले के छिलके पर ऐसे झपटी जैसे रोटी के एक ही कौर पर दो भूखे कुत्ते झपटते हों ! कितने मीठे थे वो छिलके ! केले कितने मीठे होंगे ? भूख से तड़पती अंतरियों को जो भी मिले, मीठे ही लगेंगे ! वह तरुण केले का घौंद लेकर जा रहा है ! मैं भी क्यों न भागूं उसके पीछे ! वह मुझे मीठे - मीठे केले देगा ! ललपरिया का दिल चंचल हो उठा ! भूख और भी तेज हो गई ! आँखों में तृष्णा जग गई ! अब उसने 'सीरिया' की तरफ देखा तक नहीं ! उछली और तरुण के पीछे भागी ! तरुण ने उसके पैरों की आहट सुनी ! वह मुस्कुराया ! वह अरहर के खेत में छुपकर खड़ा हो गया , मगर ललपरिया झूमती हुई वहां भी पहुँच गई ! तरुण उसे केले खिलाता रहा और उसके जिस्म को सहलाता रहा ! न जाने कबतक .........!

मगर यह क्या ? वह तरुण तो जाने कब वहां से चला गया था ; उसे छोड़कर ! अब ललपरिया कहाँ जाए ? आवारा कुतिया की तरह क्या वह इधर -उधर जूठन खाती फिरे ? बंधी हुई कुतिया पर दुसरे कुत्ते नहीं झपटते, मगर आवारा कुतिया पर तो कमजोर से कमजोर कुत्ते भी झपट पड़ते हैं ! .... और दमदार कुत्ते तो नोच - खसोट भी देते है ! फिर आदमी में क्या कम कुत्ते है !

तो पगहे में बंध जाने के लिए वह सीरिया के पास लौट जाए ? मगर वह सीरिया को क्या मुह दिखाएगी ? सीरिया जरूर कहेगा की " ललपरिया तू तो पगहा तोड़ कर भाग गई थी ! जूठन खाकर , जूठन बनकर मेरे पास क्यों आई है ? पता नहीं कितनो ने मुह मारा होगा तुझमे ! जा ! जा ! जिसके साथ उडी थी, उडती रह ! हवा में ख्वाबों के पंख लगाकर उड़ना जिंदगी नहीं ,जिंदगी यथार्थ की माटी पर पनपती है , नए पौधे की तरह !"

क्या ललपरिया बर्दास्त कर लेगी यह तीखी बात ? द्वन्द की आंधी में ललपरिया सूखे पत्ते की तरह उड़ -उलझ रही थी की तभी पीछे से एक पियक्कर डरेवर ने कार ठोंक दी ! वह गिरी ! उसके पैर जख्मी हो गए ! खून तेजी से बहने लगा ! उसने सहायता के लिए नजरें उठाई, मगर उसके चारों ओर खून और मांस के लोभी कुत्ते ही दाँव लगाए थे ! एक बड़ा कुत्ता उसकी ओर पनियाई जीभ लिए बढ़ रहा था ! विवश ललपरिया अपनी भूल पर पछताने लगी - --- हाय , उसने क्यों पगहा तोडा ? पगहा ; जो एक निश्चित दायरे में ही घूमने को बाध्य करता है , मगर कुत्तों से रक्षा भी तो करता है ! काश ; वह पगहे से बंधी रहती !!!!!