पच्चीस रोशन वर्ष / जयप्रकाश चौकसे

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पच्चीस रोशन वर्ष

प्रकाशन तिथि : 08 अगस्त 2012


राकेश रोशन अपने कॉलेज के दिनों में यार-दोस्तों के साथ मौज-मस्ती में दिन गुजार रहे थे। पढ़ने-लिखने मे उनकी कोई खास रुचि नहीं थी। उनके पिता रोशन साहब महान संगीतकार थे और उन्होंने अनेक सुपरहिट फिल्मों में संगीत दिया था। लता मंगेशकर ने अपनी एक फिल्म में अपने प्रिय मदनमोहन या शिखर संगीतकार शंकर-जयकिशन को नहीं लेकर रोशन साहब को अनुबंधित किया था। बहरहाल वह फिल्म अधूरी रही, परंतु दो वर्ष पूर्व उनके पुत्र राजेश रोशन को मध्यप्रदेश सरकार ने लता मंगेशकर पुरस्कार देकर नवाजा, क्योंकि आधे माधुर्य को भी कभी अपना जायज हक लेने से बेताली दुनिया रोक नहीं सकती।

रोशन साहब अत्यंत गुणी और संजीदा व्यक्ति थे, परंतु एक रात एक दावत में उन्होंने लतीफे सुनाकर लोगों को हंसी से लोट-पोट कर दिया और स्वयं ठहाका लगाते हुए नीचे गिर गए। हृदयाघात से पलक झपकने के पहले ही उनकी मृत्यु हो गई। उसी दुखद घटना ने उनके पुत्र राजेश और राकेश का जीवन ही बदल दिया। बड़े रोशन साहब कोई बैंक बैलेंस और लंबी-चौड़ी जायदाद छोड़कर नहीं मरे थे। उनके जैसा सृजनशील व्यक्ति सांस्कृतिक संपत्ति छोड़कर जाता है- कुछ आधी-अधूरी बंदिशें, चंद खत और अधूरे अरमानों से भरा हुआ घर। राजेश ने लक्ष्मी-प्यारे के सहायक के रूप में काम शुरू किया और राकेश मोहनकुमार के सहायक निर्देशक बन गए। इसके चंद दिन पूर्व दोनों भाइयों का जीवन मस्ती मंत्र जप रहा था, जीवन एक न खत्म होने वाली दावत की तरह था, परंतु पिता के जाते ही जीवन सब थम गया और फिल्म की भाषा में कहें तो फ्रीज शॉट हो गया।

राकेश रोशन ने १९७क् में अपनी अभिनय यात्रा प्रारंभ की और उसी वर्ष ऋषि कपूर की पहली फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ भी प्रदर्शित हुई तथा जीतेंद्र भी सफलता प्राप्त कर चुके थे और प्रेम चोपड़ा खलनायक की भूमिकाएं कर रहे थे। अभिनेता सुजीत कुमार का भी कॅरियर शुरू हो गया था। ये सब एक-दूसरे के अच्छे मित्र हो गए और आज भी उनकी दोस्ती कायम है। केवल इनमें से सुजीत कुमार आज नहीं हैं। उस दौर में प्रतिद्वंद्वी मित्र भी होते थे। उधर राजेश रोशन को मेहमूद ने अपनी फिल्म में संगीत का अवसर दिया और उनके द्वारा संगीतबद्ध ‘जूली’ ने तो हंगामा बरपा दिया।

राकेश रोशन ने १९८२ में बतौर निर्माता ऋषि कपूर और टीना मुनीम के साथ फिल्म बनाई और निर्माण कार्य करते रहे, परंतु १९८७ में उन्होंने अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय यह लिया कि सितारा बनने की कोशिशें छोड़ दीं। अपने सिर को मुंडवा लिया कि अभिनय का कोई प्रलोभन ही नहीं रहे और ‘खुदगर्ज’ का निर्देशन किया। यह फिल्म सफल रही।

इस वर्ष वे अपने निर्देशन के पच्चीस साल पूरे कर चुके हैं और इस समय अपनी महत्वाकांक्षी ‘कृष २’ निर्देशित कर रहे हैं। उनका सुपरसितारा सुपुत्र पिता की इस रजत जयंती के अवसर पर एक लघु वृत्तचित्र बना रहा है और उनके मित्र शाहरुख भी उनकी सहायता कर रहे हैं। ज्ञातव्य है कि शाहरुख खान की पहली जबरदस्त सफलता राकेश रोशन की ‘करन अजरुन’ थी, जिसे आज के फिल्मी बाजार की भाषा में पहली सौ करोड़ वाली फिल्म कह सकते हैं। ऋतिक रोशन अपने पिता के साथ काम करने वाले सारे कलाकारों और तकनीशियनों से मिल रहे हैं, ताकि निर्देशक राकेश रोशन की प्रतिभा और प्रयास की सच्ची तस्वीर उस लघु फिल्म में आ सके।

राकेश रोशन ने विगत पच्चीस वर्षो में अनेक सुपरहिट फिल्में बनाई हैं और अपने पुत्र को भी सुपरसितारे की तरह स्थापित किया है। राकेश रोशन को विगत दो दशकों का सबसे अधिक सफल फिल्मकार मानना चाहिए, परंतु उन्होंने कभी अपनी कीर्तिगाथा के लिए अपना कोई दल नहीं बनाया, चमचे नहीं पाले और कोई प्रचारक नहीं रखा। उनकी श्रद्धा सिर्फ अपने काम में है। उन्होंने कभी इस तरह के बयान नहीं दिए कि वे अपने पुत्र ऋतिक की फिल्म सौ बार देखेंगे। उन्होंने कभी कोई दावा नहीं किया। वे संपूर्ण फिल्मकार इस मायने में हैं कि फिल्म निर्माण के हर विभाग की उन्हें पूरी जानकारी है। सबसे बड़ी बात यह है कि वे परदे पर भव्यता रचते हैं, परंतु किफायत उनके जीवन का मूलमंत्र है और फिल्म के संपादन में भी कोई उबाऊ दृश्य नहीं रखते। फिल्म निर्माण उनके लिए साधना और तप की तरह है। विगत बीस वर्षो में मैंने कभी उन्हें किसी की बुराई करते नहीं सुना। वे फिल्म उद्योग में कीचड़ में कमल की तरह हैं।

ज्ञातव्य है कि वे अपने मित्र जीतेंद्र के साथ वर्षो से फिल्म का पहला दिन पहला शो देखते हैं। सिनेमा उनके लिए महज व्यवसाय नहीं, एक धर्म है। उन्होंने दिलीप कुमार अभिनीत ‘राम और श्याम’ अनेक बार देखी है और उनकी पटकथाओं का वह आदर्श मॉडल है। प्रतिदिन सुबह दस से दोपहर एक बजे तक वे अपनी लेखकों की टीम के साथ काम करते हैं। शूटिंग के दिन सुबह चार बजे से पूरे दिन की शूटिंग के हर शॉट पर परिश्रम करते हैं।

आज बड़े रोशन साहब को अपने दोनों पुत्रों और पोते ऋतिक पर गर्व होगा कि उनकी सृजन परंपरा को अपनी व्यक्तिगत प्रतिभा से उनका परिवार मजबूत बना रहा है। याद कीजिए उनका गीत ‘ताल मिले नदी के जल में, नदी मिले सागर में..।’