पटाखों की आवाज़ और हीरों की चोरी / जयप्रकाश चौकसे

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पटाखों की आवाज़ और हीरों की चोरी
प्रकाशन तिथि :16 अक्तूबर 2017

कुछ प्रांतीय सरकारों ने दीपावली पर पटाखों को बेचना कानूनी अपराध बना दिया है। इंदौर के रानीपुरा क्षेत्र में पटाखों के गोदामों और दुकानों में आग लगने के कारण कुछ समय पूर्व बड़ी हानि हुई थी। चोरी छिपे सबकुछ जारी है परंतु अवाम को अब अधिक दाम चुकाने पड़ रहे हैं। यह वर्तमान समय की सबसे बड़ी समस्या प्रदूषण ही है। इस पर चिंता व्यक्त करन के साथ ही सफल, सघन वृक्षारोपण भी किया जाना चाहिए। पौधों के ट्री गार्ड्स चोरी चले जाते हैं, क्योंकि लोहे का दाम तुरंत मिल जाता है। अमेरिका के फिल्मकार जैम्स कैमरन की 'अवतार' फिल्म में अन्य ग्रह पर अमेरिका के लोग शोध करने के लिए पहुंच जाते हैं। एक दृश्य में वृक्ष काटने पर एक पात्र कहता है कि पृथ्वी से करोड़ों मील दूर इस ग्रह पर वृक्ष काटने से धरती के वृक्ष को दु:ख हो सकता है गोयाकि सारे वृक्ष एक-दूसरे के हमसफर और हमदर्द हैं। 'अवतार' पर्यावरण पर चिंता व्यक्त करने वाली फिल्म थी। विदेशों में इस विषय पर विपुल साहित्य उपलब्ध है और एक किताब का नाम है 'द अर्थ दैट वी प्लंडर्ड।' एक वैज्ञानिक ने कहा है कि वृक्ष स्थिर मनुष्य हैं और मनुष्य चलते-फिरते वृक्ष हैं।

एक विदेशी फिल्म का नाम था 'ग्रैंडस्लैम' जिसमैं विश्व के सबसे अधिक मूल्यवान हीरों के संग्रह में एक रात चोरी हो जाती है। वह रात भी वहां मनाए जाने वाले पटाखों के फोड़ने के उत्सव की रात थी। चोरी के लिए वह रात इसीलिए चुनी गई थी कि तिजोरी को तोड़ने की आवाज सड़क पर फोड़े जा रहे पटाखों के शोर के नीचे दब जाएगी। चोरी के बाद बंटवारे के यज्ञ में लालच का घी पड़ता है और वे एक-दूसरे की हत्या करने लगते हैं। इसकी आखरी कड़ी में हीरो से भरी थैली खुल जाती है और सारे हीरे समुद्र में गिर जाते हैं। सारे अपराधी भी मारे जाते हैं। फिल्म का आखरी दृश्य अत्यंत चौंकाने वाला था। स्विट्जरलैंड में एक फुटपाथ रेस्तरां में एक उम्रदराज जोड़ा बैठा है। पति हीरो की पोटली मेज पर रखकर अपनी पत्नी से कहता है कि तीस वर्ष तक उस जगह नौकरी करते समय ही उसने चोरी की योजना बनाई थी और उसकी योजना के अनुरूप ही उसके द्वारा चुने हुए 'विशेषज्ञों' ने वारदात को अंजाम दिया था। उनका एक-दूसरे को मारना भी उस योजना का ही हिस्सा था। वही इस 'चोरी लीला' का कर्ता और सूत्रधार रहा है। पत्नी कहती है कि जब हीरे ही समुद्र में गिर गए तो योजना का क्या लाभ हुआ? उम्रदराज पति कहता है कि उसने चोरी के पूर्व अपने कार्यकाल के अंतिम दिन असली हीरे हथिया लिए थे और वहां उनकी हू-ब-हू नकल रख दी थी। असली हीरे टेबल पर रखे इस बैग में है। ऐन उसी वक्त एक मामूली-सा उठाईगिरा बैग को लेकर भागता है और वहां मौजूद लोग चोर का पीछा करते हैं। पत्नी चाहती है कि पति भी चोर को पकड़ने का प्रयास करें तो पति कहता है कि उन दोनों को शीघ्र ही यहां से हवाई जहाज द्वारा अन्य देश, संभवत: ब्राजील या दक्षिण अफ्रीका जाना चाहिए, क्योंकि ये विश्वविख्यात हीरे हैं, जिन्हें पुलिस प्राप्त करे या वह मामूली उठाईगिरा बेचने का प्रयास करे, हीरे पहचाने जाएंगे और समुद्र में डूब जाने के रहस्य से परदा उठ जाएगा।

यह मामूली उठाईगिरा मात्र ही उसकी योजना का हिस्सा नहीं था। उम्रदराज युगल भीड़ में गुम हो जाता है। इस टाइटैनिक नुमा चोरी की योजना का जहाज अनपेक्षित हिमखंड से टकरा गया। विजय आनंद की 'काला बाजार' का शैलेन्द्र का लिखा गीत याद आता है, 'क्या लेकर आए थे, क्या लेकर जाना है, बस दिल ही तेरा खजाना है, मोह मन मोहे, लोभ ललचाहे, कैसे कैसे ये नाग लहराए, मेरे दिल ने ही जाल फैलाए, अब किधर जाऊं, हे राम किधर जाऊं, तेरे चरणों की धूल मिल जाए तो मैं तिर जाऊं'। पूरी चतुराई से की गई चोरियां भी पकड़ी जाती हैं।

हीरों पर अनेक फिल्में रची गई हैं, अनेक कथाओं का जन्म हुआ। जेम्सबांड की 'डायमंड्स आर फॉर एव्हर' मनोरंजक फिल्म थी। जाने कैसे यह किवंदती बनी कि हीरों की रक्षा सांप करते हैं। इसी का प्रयोग करके गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 'धन की भेंट' नामक महान कथा लिखी है, जिसमें एक लोभी कंजूस अनजाने में अपने पोते को ही अपने खजाने के कक्ष में यह सोचकर बंद कर देता है कि वह सांप बनकर खजाने की रक्षा करेगा। यह दिल दहलाने वाली कथा है। ओ हैनरी की 'डायमंड नेकलेस' भी क्लासक मानी जाती है। श्रेष्ठि वर्ग की महिलाओं के बारे में कहते हैं कि अगर उन्हें आत्महत्या करना पड़े तो वे हीरा चबाकर आत्महत्या करती हैं। गरीब औरत तो फांसी का फंदा लगाती है या केरोसीन से स्वयं को जलाती है गोयाकि आत्महत्या करने में भी कोई आर्थिक औकात का सवाल उठता है।

धरती के भीतर सतत चलने वाली लहरें ही कहीं-कहीं ऐसा दबाव व रचना प्रक्रिया को जन्म देती है कि कोयला हीरे में बदल जाता है परंतु लालच मनुष्य को भट्‌टी में झोंक देता है। संभवत: 'ग्रैंडस्लैम' से प्रेरित होकर विजय आनंद ने 'ज्वेलथीफ' बनाई जिसमें गीत था 'होठों में ऐसी बात मैं दबाकर चली आई'। हीरों की बात कहां दबाए दबती है।