पठान-2 / शमशाद इलाही अंसारी
भाग दो
उस रात रहीम सो न पाया था। सुबह उठ कर वो सबसे पहले मामा के पास गया, उसके हाथ में वह परफ़्यूम की शीशी भी थी जो नूर ने उसे दी थी, "मामा, नूर ने मुझे ये शीशी कल दी, ये ठीक नहीं, मैं इसे नहीं ले सकता" रहीम ने अपना अन्तर्द्वन्द व्यक्त करते हुये शीशी वापस करने का फ़ैसला लिया था. मामा ने उस दिन रहीम को बडे़ प्यार से देखा था..फ़िर बोली, "रहीम, इसमें बुराई क्या है? मेरे सामने ही नूर ने ये तुम्हारे लिये खरीदी थी, रख ले इसे.." रहीम, मामा के जवाब से एकदम निहत्था हो गया, उसे उसकी तमाम चिंताओं का उत्तर मामा के जवाब में मिल गया. रहीम ने नूर का हाथ थाम लिया और वह भी उससे प्रेम करने लगा. मामा नि:संदेह इस रिश्ते से खुश थी.
इस रिश्ते की भनक जैसे ही नूर के भाईयों को पड़ी, तब उन्हे पहली बार अपने वुजूद का एहसास हुआ, उन्हे अपने अरबी खून की वरियता का आभास हुआ लिहाज़ा सबसे पहले रहीम को घर से निकाला गया और नूर पर पाबन्दियाँ आएद कर दी गयी. मामा को इस घटनाक्रम का बहुत दुख हुआ और चाहते हुये भी मर्द की इस बेगै़रत अधिनायकवादी ऑथोरिटी को चुनौती न दे सकी, भले ही उसका परचम स्वयं उसकी संतान के हाथ में ही क्यों न हो. मामा बीमार हो गयी, नूर चुप-चाप छिप-छिप के रहीम से उस वक्त तक मिलती रही जब तक उसके भाईयों ने दोनों को ममज़ार पार्क में एक दिन पकड़ न लिया. रहीम को तीनों भाईयों ने जम कर पीटा और फ़िर पुलिस के हवाले कर दिया. पुलिस से रहीम को तब तक नहीं छोडा़ जब तक उससे अहद न उठवा लिया कि वह फ़िर नूर से न मिलेगा. रहीम ने भी फ़ैसला कर लिया कि परदेश में ये झंझट वाले ताल्लुकात रखना ठीक नहीं, पुलिस के रवय्ये से उसे पहली बार एहसास हुआ कि यह न उसका देश है और न उसकी पुलिस है, वह नितांत अकेला है. रहीम ने नूर से मिलना बंद कर दिया और अपनी रिहाईश भी अबु हैल इलाके से दूर कर ली. इस घटना के कोई छ्ह साल के बाद रहीम एक दिन अपने दोस्तों के साथ सिटि सेन्टर माल में एक दिन उस वक्त हक्का बक्का रह गया जब एक पर्दा नशीन महिला ने एक दम उसका हाथ थाम लिया. उसने पलट कर देखा तो वह नूर थी."भूल गये मुझे..?? नूर ने पूछा था तब, रहीम ने इधर-उधर देखा फ़िर बातचीत शुरु की, एक रेस्तरां में घंटों बैठे रहे, रहीम को तभी पता चला कि मामा की दो साल पहले हार्ट अटैक से मौत हो चुकी, बडे़ दो भाईयों की शादी हो चुकी और वो अपनी-अपनी बेगमों के साथ दूसरी विलाओं में रहते है, अब एक भाई और फ़ातिमा के साथ ही वो रहती है. एक दूसरे ने अपने-अपने मोबाइल नंबर दिये और बुझ गये रिश्तों में फ़िर से आँच आने लगी.
नूर ने एक दिन उसे बताया कि उसकी शादी तय हो गयी है, रहीम जानता था कि यही होना है, वह खुद उससे शादी कभी नहीं कर पायेगा. नूर और रहीम का इश्क ठीक दस साल बाद उस दिन खत्म हुआ जब नूर एक लोकल अरबी मौहम्मद उबैद की दुल्हन बनी, उबैद दुबई एयरपोर्ट पर एक अच्छे ओहदे पर है. नूर ने रहीम की मुलाकात भी उबैद से करवाई. रहीम का जब कभी कोई काम एयरपोर्ट में किसी एयर शिपमेंट के मुत्ताल्लिक फ़ंसता तो वो बे झिझक उबैद के पास जाता और उबैद भी उसकी मदद करता. नूर को भी उबैद ने एयरपोर्ट पर नौकरी दिलवा दी थी, दोनों मियां बीवी एक साथ काम पर आते-जाते. नूर की शादी के कोई एक साल बाद रहीम ने भी अपने खा़नदान की रिवायत के मुताबिक पाकिस्तान जाकर शादी कर ली थी, उसकी दुल्हन समीना, उसके मामू की लड़की ही है.
शायद शुएब के अलावा रहीम की प्रेम कहानी इतने विस्तार से कोई नहीं जानता था, शुएब रहीम के वुजूद में छिपे इन तमाम इंसानी रिश्तों के बेमिसाल, बेशकीमती गहनों की बडे़ सच्चे अर्थों में कद्र भी करता, रहीम भी इस बात को जानता था कि शुएब ही उसे सही मायनों में जान पाया है और अपने दिल की बात मौका मिलते ही शुएब को बताकर अपने दिल का बोझ भी हल्का कर लेता।
शुएब को मालूम हुआ कि रहीम को बरी कर दिया गया है, उसे पिछ्ले दो माह से कोई ख़बर न थी रहीम की, रहीम की गिरफ़्तारी के कोई १३ महीने बाद ये हुआ कि रहीम को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया है और कल दोपहर ३ बजे की फ़्लाइट से उसे पाकिस्तान डीपोर्ट किया जा रहा है. शुएब ठीक बारह बजे ही एयरपोर्ट पहुँच गया, कोई आधा घंटे बाद रहीम एक व्हील चेयर पर बैठे हुये एयरपोर्ट पहुँचा, उसके साथ दो सुरते (पुलिस वाले) भी थे.काग़ज़ी कार्यवाही के बाद कोई चालीस मिनट के बाद उसे मुलाकात करने का वक्त दिया. शुएब ने उसके हाथों को अपने हाथों में लेते हुये व्हील चेयर से उठाया, रहीम शुएब के सीने से अपना सीना लगा कर फ़फ़क फ़फ़क के रो पडा, शुएब ने उसे संभालते हुये, उसके दर्द का एहसास करके फ़ौरन बैठा दिया, कुछ देर खामोशी के बाद रहीम बोला, "तुम हमारा साथ दिया, उसके लिये मैं बहुत शुक्रगुज़ार हूँ"...ये सब कैसे हुआ रहीम, इस बात के इल्म मुझे नहीं है न ऐसी कोई ख़बर मिली..? शुएब ने पूछा.
"सब बताऊँगा, तुमको ही तो बताना है, मेरे साथ क्या-क्या बीती.. दो महीने पहले मुझे नेपाल ले जाया गया, यहाँ की हकूमत को ये शक था कि मैं नेपाल के किसी गिरोह का काम यहाँ दुबई में चला रहा हूँ, मनिशयात और मनी लांडरिंग (हवाला) का धन्धा करता हूँ, वहाँ ले जाकर कुछ शिनाख्त करवाने लगे, मुझे पीटा गया, लौटते हुये, नेपाल एयरपोर्ट पर ही इण्डियन इंटेलिजेंस ने पकड़ लिया, वो दस दिन तक मुझे दिल्ली में पूछताछ करते रहे..
शुएब ने बीच में टोका,"इण्डियन इंटेलिजेंस- दिल्ली"
"हाँ"..सात-आठ साल पहले, हयात रीजेंसी में पाकिस्तानी क्रिकेटर हबीब मियाँदाद के बेटे की शादी मुंबई के किसी भाई की बेटी से हुई थी, बास उसके रिसेपशन में गया था, मैं उसे लेने के लिये नीचे इंतज़ार कर रहा था कि मियांदाद और उनका समधी होटल से निकल रहे थे, मैंने बढ़ कर मियांदाद से हाथ मिला लिया और उनके समधी से भी, मुझे क्या पता था कि इण्डियन इंटेलिजेंस फोटो खी़च लेगी, उनके पास मेरा वो सात आठ साल पुराना फ़ोटो था, बस वो लोग मुझे ये ही पूछते रहे कि डान कहाँ है, तुमने उसके लिये क्या-क्या किया है, पाँच दिन तक मुझे सोने नही दिया, फ़िर दो दिन तक बेहोश रखा, नशे की हालत में दसवें दिन वो मुझे नेपाल छोड़ गये, यहाँ आते आते मुझे पता चला कि मेरे हाथ काम नहीं कर रहे, यहाँ की हकुमत ने मेरे पेशाब वाली जगह पर इतने झटके दिये है कि मैं कभी बाप नहीं बन सकता, इण्डिया ने मेरे हाथ छीन लिये और दुबई ने मेरा लिंग..अब जब मैं मोहताज बना दिया गया हूँ तो मुझे पाकिस्तान भेज रहे हैं, ये सब उस सी.आई.डी. वाले का इंतकाम है"..
शुएब के मुँह से एकदम निकला,"कौन सी.आई.डी. वाला ?".... अहमद अली, फ़ातिमा का शौहर... लेकिन वो ऐसा क्यों करेगा?
शुएब भाई, नूर से मेरे जब ताल्लुकात खत्म हुये तो फ़ातिमा को बहुत बुरा लगा, वो नूर को हमेशा लड़ने के लिये जो़र देती रही, उसे उकसाती रही कि वो मुझे से शादी कर ले, उसने नूर को हमेशा मेरे लिये गुनाहगा़र माना, कि नूर ने मुझ पर ज़्यादती की है, जब नूर की शादी हो गयी तब उसने मुझे एक बार बुलाया और कहा, मैं तुम से नूर से भी पहले मौहब्बत करती हूँ और उसकी तरह तुम्हे नहीं छोडूँगी, मुझे से शादी कर लो, मैं तुम्हारे साथ पाकिस्तान चल कर रहने के लिये तैयार हूँ, लेकिन मैंने मना कर दिया, यहाँ तक की मैंने शादी भी कर ली और उसे क़सदन शादी का कार्ड भी भेजा, वो उसके बाद भी यही ज़िद करती रही.
तुम्हे याद है जिस दिन मैं अरेस्ट हुआ था, तुम्हारे ऑफ़िस में मुझे एक काल आया था जिसे मैंने काट दिया था, वह फ़ातिमा का फ़ोन था, दो दिन बाद उसकी सगाई थी, वो मेरा इंतज़ार कर रही थी, मैं उससे मिला और उसे समझा बुझा कर उसके घर तक छोड़ कर आया था, उस वक्त उसके भाई ने मुझे देख लिया था और मैंने उसे फो़न करते भी देखा था. बस मैं अपने कमरे पर गया, खाना खाने बैठा ही था कि पाँच सी.आई.डी वाले आये और मुझे मेरे दोस्तों के साथ उठा कर ले गये. एक महीने बाद फ़ातिमा की जिस शख़्स से शादी हुयी, उसका नाम अहमद अली है जो सी.आई.डी में यहाँ एक अफ़सर है, फ़ातिमा जितना भी अहमद से लडी़ होगी उतने ही तशद्दुद का शिकार मैं बनता गया...रहीम लगातार अपनी बात बताता गया. सुरता ने वक्त खलास होने का इशारा भी किया.
शुएब का धैर्य अब जवाब दे चुका था, बस कर रहीम...उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बह रही थी, रहीम संघर्ष करते हुये व्हील चेयर से जैसे तैसे उठ गया था, शुएब के सीने से उसने अपना सीना लगा दिया, शुएब ने अपने दोनों हाथों से उसे कस कर पकड़ा और गले मिला, रहीम के लुँज-पुँज हाथों का अपनी कमर में लिपटने का वह इंतज़ार ही करता रह गया. रहीम के भाई बंद लोग भी उसकी हालत देख अपनी आँखों में आँसू न रोक सके, सबके चेहरे लाल हुये थे.. बत्तीस साला रहीम व्हील चेयर पर बैठे, अपंग हालत में पन्द्रह साल एक महीने के प्रवास के बाद वापस पाकिस्तान जा रहा था, उसने पीछे मुड़ कर एक बार भी नहीं देखा था...
शुएब ने रहीम से विदाई के बाद जब पीछे मुड़ कर देखा तो उसकी नज़र कारिडोर के उस तरफ़, शीशे की दीवार के पीछे एक अरबी जोडे़ पर पड़ी, उस खा़तून की निगाह जाते हुये रहीम पर ही टिकी रही और वह लगातार रोये जा रही थी.
रहीम को वापस गये कोई सात महीने हुये थे, शुएब को रहीम का चचाज़ात भाई मिला, दुआ सलाम हुई, रहीम के बारे में शुएब ने जब उससे पूछा कि रहीम कैसा है? उसके भाई ने फ़ौरन कहा, अलहम्दुल्लिहा, वो ठीक है, अपने मोबाईल फ़ोन के बटनों को दबाते हुए उसने एक तस्वीर दिखाते हुये कहा, देखो, ये रहा रहीम खान बंगश. शलवार कुर्ते में एक शख़्स, काली पगडी लगाये, दाढ़ी बढी़ हुयी, एक कंधे पर क्लाशनिकोव टाँगे खडा था. रहीम के भाई ने बताया कि उसका एक हाथ तकरीबन ठीक हो गया है.
शुएब ने दस साल तक रहीम को शेव करते, पैंट कमीज में हमेशा टना-टन देखा था, अब रहीम का हुलिया एक-दम बदल गया है, क्या उसके अंदर का खूबसूरत इंसान भी बदल गया है? शायद उसे हमने ही मार दिया है..हम ही उसके हत्यारे हैं.. क्या सारी दुनिया की पुलिस का चरित्र समान है या इंसान की शक्ल में कुछ भेडि़ये पूरी दुनिया में बिखरे पडे़ हैं? इन सवालों में उलझे हुए वो आगे बढ़ गया.
रचनाकाल: २७.०९.२००९