पता है / मनोहर चमोली 'मनु'

Gadya Kosh से
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तालाब के किनारे कई पेड़ थे। एक पेड़ की डाल पर बाज था। एक कछुआ तालाब से बाहर आया। बाज ने कछुए से कहा,‘‘सावधान। मैंने अभी चीता देखा है। तालाब ’’ कछुआ फिर भी चलता रहा। बाज ज़ोर से चिल्लाया,‘‘चीता आस-पास ही है।’’ कछुआ हँसते हुए बोला,‘‘सुठीक है। मैं हमेशा तालाब में नहीं रह सकता। मुझे धूप चाहिए। मुझे अपना खोल सुखाना होता है।’’ बाज ने हैरानी से पूछा,‘‘चीते से डर नहीं लगता?’’ कछुआ बोला,‘‘चीता भी एक जीव है।’’ बाज कुछ समझ नहीं पा रहा था। कछुआ बोला,‘‘चीते ख़ुद कम होते जा रहे हैं। वह जीने के लिए छटपटा रहे हैं।’’

बाज चौंका। बोला,‘‘कैसी बात करते हो?’’ कछुए ने बताया,‘‘मौसम बदल रहा है। खान-पान बदल रहा है। जीवों का भोजन कम हो रहा है। जंगल और पानी कम हो रहा है। चीते भी कम हो रहे हैं।’’ बाज बीच में ही बोल पड़ा। कहने लगा,‘‘चीता सबसे तेज दौड़ता है। पता है न?’’

कछुए ने टोका। बोला,‘‘पता है। बस, बीस पल तक ही सबसे तेज दौड़ पाता है। वह लगातार नहीं दौड़ सकता। उसे शिकार करने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। वह बीस बार कोशिश करता है तब जाकर एक बार शिकार पकड़ पाता है। वह पेड़ पर नहीं चढ़ पाता। दहाड़ भी नहीं पाता। तुम्हारी तरह उसकी नज़र भी तेज नहीं होती। पता है?’’ बाज एकदम बोल पड़ा,‘‘मुझे दूर चीता दिखाई दे रहा है। अब जाओ।’’ कछुआ अपनी चाल चलता हुआ तालाब में घुस गया।