पतिव्रता / अमित कुमार मल्ल

Gadya Kosh से
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रमिया एक अच्छी व कुशल गृहणी थी। वह पूरे मनोयोग से अपने परिवार का देख भाल कर रही थी। उसका मरद - रामजीत,खेतो में ख़ूब मेहनत करता था, जिससे उसकी फसल, पूरे गाँव में सबसे अच्छी होती थी। खेती के अलावा, रामजीत ने गाय व मुर्गी भी पाल रखी थी, जिनके दूध अंडे भी बेचता था। रमिया भी रामजीत के साथ, कंधे से कंधा मिलाकर पूरा काम करती। दुवार पर मौजूद गायों को खिलाने, पिलाने, नहलाने, देख रेख करने की जिम्मेवारी रमिया की थी। मुर्गियों के पालने में भी वह, बहुत मदद करती थी।रामजीत व रमिया अपने में ख़ुश थे, मस्त थे। बच्चे भी थे, कमाई भी थी, दोनों महीने में एक बार ज़रूर पास के कस्बे में जाकर सिनेमा भी देखते, खाते भी और घूमते भी।

गाँव के लोग रमिया को चटक समझते और रामजीत को उत्साही।रामजीत कभी कभार, 10 -15 दिन में एक बार शराब पी लेता था और कभी कभी भांग भी खा लेता। इन दोनों स्थितियों में रामजीत बहुत रोमांटिक हो जाता, जिसे रमिया बहुत पसंद करती। इसीलिये रमिया कभी भी भांग खाने या शराब पीने से, रामजीत को नहीं रोकती। सब कुछ ठीक चल रहा था।

लेकिन रामजीत के दूर के मौसेरे भाई सुमेर के यहाँ अच्छा नहीं चल रहा था। उसके पट्टीदारों का मानना था कि सुमेर के पिता ने उनके परिवार के दो लोगों की हत्या कराई है। वे लोग धमकी दे रहे थे कि वे लोग सुमेर के परिवार को मार कर बदला लेंगे। इस धमकी को सुमेर के पिताजी ने गंभीरता से नहीं लिया और सुमेर के पिता मारे गए।पिताजी के मरने के बाद, सुमेर अकेला हो गया। पूछार करने जब रामजीत, सुमेर के घर गया तो पाया कि सुमेर डरा हुआ है।

रामजीत ने सुमेर को सांत्वना देते हुए बोला,

ऐसी स्थिति में यहाँ रहना ठीक नहीं है।

जमीन घर तो यही है। कहाँ जाऊँ ?

सुमेर ने उत्तर दिया।

तुम यहाँ की जमीन, घर बेच दो। मेरे गाँव चलो। वहाँ जमीन, घर खरीदवा देंगे।

रामजीत बोला।

ठीक है। मुझे भी यही सही लग रहा है।

सुमेर, सोचते हुए बोला।

दो महीने में सुमेर, अपना खेत व घर बेचकर, रामजीत के गाँव में खेत खरीदने व बसने के लिये आ गया।

रामजीत व रमिया - दोनों लग गए कि सुमेर को ज़मीन खरीदवा दिया जाय तथा उसका एक घर बन जाय।सुमेर ने सारा पैसा रमिया के पास रखवा दिया था, ताकि जैसे जैसे पैसे की ज़रूरत होगी वह पैसे ले लेगा। रंजीत ने, अपने घर के पास ही सुमेर को ज़मीन खरीदवा दी, जिस पर सुमेर का घर बन गया और कुछ बीघे ज़मीन भी खरीद गयी।

इन सबमे 5-6 माह लग गए। इतने दिन तक सुमेर, रामजीत के घर ही रहता, उनके साथ ही खाता और उसके दरवाज़े पर ही सोता।

रामजीत से सुमेर दो साल छोटा था। इस नाते सुमेर की, रमिया भाभी थी और उसी नाते इन दोनों में हँसी मज़ाक भी होने लगा। सुमेर नई जगह से आया था, कॉलेज से पढ़ा था। उसका फैशन अलग था, उसकी बाते अलग थी और नई थी।जिसको सुनने में रमिया को मज़ा आने लगा,और धीरे धीरे उसका साथ अच्छा लगने लगा।

ज़मीन खरीदने के बाद,सुमेर ने रामजीत से कहा,

मैं तो अकेला हूँ। मेरी खेती तुम कराओ,अधिया पर, प्रॉफिट में आधा आधा हो जाएगा।

तुम अपनी खेती ख़ुद करो।

रामजीत बोला।

भइया, हम तो अकेले है। मेरा ख़र्चा ही कितना है ?,... तुम्हारा परिवार है। तुम्हारा ख़र्चा अधिक है।तुम्हे खेती करने का अनुभव है। तुम पहले से, अपनी, इतनी अच्छी खेती कर ही रहे हो। मुझे कोई यहाँ की कोई जानकारी नहीं है। हर चीज ढूँढनी पड़ेगी। फिर मैंने कभी खेती की नहीं है।वहाँ भी, बाबूजी ही खेती करते थे।

सुमेर बोला।

जब तक रामजीत कुछ बोले, रमिया बोली,

सुमेर बाबू सही कह रहे है। इसी बहाने, हम लोगों की कुछ आमदनी बढ़ जाएगी।

इस प्रकार रामजीत सुमेर की भी खेती करने लगा। लेकिन इससे रामजीत पर काम का दबाव और बढ़ गया। रमिया पर भी काम बढ़ा। अब उसे अपने परिवार के सदस्यों के साथ साथ, सुमेर के भी खाने का ध्यान रखना पड़ता। रामजीत पहले जब भांग खा कर लौटता,तब वह वह और रानियाँ होते। दोनों रोमांस करते थे।अब सुमेर भी रहता, तब रोमांस तो हो नहीं पाता। मन मसोस कर, उल्ह मेलह कर रामजीत सो जाता और सुमेर तथा रानियाँ देर रात तक, बाते करते जाते।

ऐसा कई बार हुआ और रामजीत की थकावट बढ़ने लगी।नई परिस्थिति का दबाव था कि अब वह एक हफ्ते में दो तीन बार भांग खाने लगा। रमिया पहले भी, भांग खाने से, मना नहीं करती थी और अब भी मना नहीं करती। थकावट मिटाने के लिये शुरू हुआ भांग की लत, धीरे धीरे नशा बन गया और धीरे धीरे भांग खाना, उसकी दैनिक आदत बन गई। खेतो से आते समय,वह भांग खा कर, घर आता। भांग के सरूर में उसे थकावट तो नहीं लगता लेकिन वह कभी खाना खाता और कभी बिना खाये ही सो जाता। काम बढ़ने और सुमेर से बात करने के कारण,रमिया भी रामजीत को खिलाने में लापरवाह हो गयी थी।अब, रमिया पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। वह और सुमेर, देर रात तक खाना खाते और देर रात तक बातें करते।

कुछ महीनों के बाद, भांग के नशे का असर कम होने लगा। इसलिये रामजीत,भांग की जगह मोदक खाने लगा। मोदक में नशीली दवाइयों के साथ भांग मिलाया जाता था। रोज़ रोज मोदक खाने तथा पूरा खाना न खाने से, रामजीत कमजोर होता गया। मोदक ने उसके दिमाग़ को कुंद कर दिया। इस परिवर्तन से रमिया और सुमेर तटस्थ रहे।लेकिन कुंद रामजीत का अब खेती में मन नहीं लगता और रामजीत ने धीरे धीरे खेती करना भी छोड़ दिया।

रमिया ने सुमेर व एकाध सहायकों के साथ, खेती, गाय, मुर्गी का- सभी काम संभाल लिया। रमिया चटक बनी रही, सुमेर उत्साही बन गया और रामजीत डिप्रेस्ड रहने लगा। गाँव वालों के साथ रामजीत थोड़ा बहुत सामान्य व्यवहार करता लेकिन जैसे ही सुमेर को देखता या सुमेर व रमिया को एक साथ देखता, बिल्कुल ख़ामोश हो जाता। ऐसा क्यों होता, यह रमिया नहीं समझ पाती या यों कहें,वह भी गाँव वालों की तरह, इस पर ध्यान ही नहीं देती।

रमिया ने, रामजीत को पास पड़ोस के वैद्य और डॉक्टरों को दिखाया। वे रामजीत का रोग नहीं पकड़ पाए, वे लोग डिप्रेसन की दवा देते रहे। रामजीत कभी दवा खाता, कभी नहीं खाता। कभी खाना खाता और कभी नहीं खाता।रमिया भी, दोनों परिवारों की खेती, गाय, मुर्गियाँ, सुमेर को सम्हालने में, रामजीत का उतना ध्यान नहीं दे पाती और एक दिन रामजीत अपने बिस्तर पर मृत पाए गए। बहुत हिम्मत से रनिया ने रामजीत का अंतिम संस्कार किया।

गाँव में चर्चा होती रही कि इतने हंसमुख, स्वस्थ व उत्साही रामजीत को किसकी नज़र लग गयी।आदर्श जोड़ी थी, पूर्ण परिवार था।

रामजीत के मरने के बाद, बहुत हौसले से रमिया ने अपनी खेती, गाय व मुर्गी को, बिना गाँव वालों की मदद के संभाल लिया। सुमेर ज़रूर उसके साथ, सुबह से लेकर रात तक लगा रहता था, लेकिन वह तो घर का ही था। गाँव वाले कहने लगे,

अपने पति के मरने पर, रमिया तो ढंग से रोइ भी नही।

रमिया पर तो कोई असर पड़ा ही नही।

रमिया,वैसे ही चटक बनी है।

सुमेर पर भी, कोई असर नहीं पड़ा।

सुमेर तो दिन रात रमिया के साथ लगा रहता है।

सुमेर के कारण ही रामजीत का मन उचट गया

सुमेर ने ही रामजीत को मोदक का आदत डलवाया।

यह सब बातें रमिया भी सुनती, लेकिन इसे अनसुना करके, वह अपने में मगन रहती।चटक बनी रहती। सुमेर के साथ हंसी मज़ाक करती रहती और अपने काम में लगी रहती।

जब गाँव में, इस प्रकार की चर्चायें बढ़ गयी, तब एक दिन रमिया भभक पड़ीं,

जो चला गया, उससे मुझे कितना प्यार था, यह गाँव ने देखा है। उसके प्रति प्यार को बताना, ज़रूरी नहीं है। जो चला गया, वह बहुत अच्छा था, लेकिन बच्चे को, खेती को, गाय को, मुर्गियों को पालना ज़रूरी है। ज़िन्दगी तभी आगे बढ़ेगी। इसमे हँसना भी पड़ता है, काम भी करते रहना पड़ता है और चटक भी रहना पड़ता है।

अपने जिंदापन और उत्साह को बढ़ाने के लिये अब, सुमेर 10 -15 दिन में एक बार भांग खाने लगा।जिस दिन भांग खाता, उसके अगले दिन सुमेर बहुत ख़ुश रहता। रमिया भी बहुत ख़ुश रहती। 2 -3 माह बाद सुमेर दैनिक रूप से भाँग खाने लगा। नियमित भांग खाने से उसका असर कम होने लगा। तब, वह भी, रामजीत की भांति रोज़ मोदक खाने लगा। जब मोदक का असर कम होने लगा तब मोदक के बाद, वह नशीली दवाई खाने लगा।गांव वालों को बहुत आश्चर्य होता था कि किस कारण से सुमेर इतना नशा करने लगा। रामजीत वाले मामले में तो गाँव वालों को संदेह था कि सुमेर,मोदक का लत लगा रहा था, लेकिन सुमेर को कौन इसकी लत लगा रहा था ? रमिया ने सुमेर को भी वैद्य को दिखाया, उन्होंने दवा भी दी। कभी वह खाना खाता और अक्सर नहीं खाता। धीरे धीरे वह 24 घंटे नशीली दवाई खाये रहता और एक रात, अपने दरवाज़े के कुएँ में,डूब कर मरा मिला।

रमिया ने बड़ी बहादुरी से इसका भी क्रिया कर्म किये और अपनी तथा सुमेर की खेती, मुर्गी,जानवर आदि का काम मज़दूर रखकर सम्हाल लिया।गांव वाले, आज तक नहीं जान पाए कि दोनों, रामजीत व सुमेर को नशे की लत कैसे लगी ? और यह लत, इतनी बढ़ कैसे गयी कि दोनों मर गए ? रमिया के बहुत नजदीकी,कुछेक गाँव वालों के बीच यह चर्चा, ज़रूर सुनी गई,

जो जैसा करता है, उसके साथ वैसा ही होता है।

बाकी गाँव वाले, इस बात का मतलब नहीं समझ पाए।