पत्ता-पत्ता, कथा-कथा हाल हमारा सुनाए / जयप्रकाश चौकसे

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पत्ता-पत्ता, कथा-कथा हाल हमारा सुनाए
प्रकाशन तिथि : 27 अप्रैल 2021


महान प्रेमचंद की कथा ‘कफन’ में एक गरीब परिवार की बहू के अंतिम संस्कार के लिए गांव के लोग चंदा इकट्ठा करते हैं। पिता और पुत्र अंतिम संस्कार के लिए आवश्यक सामान खरीदने जाते हैं। उन्होंने कई दिनों से पेट भर भोजन नहीं किया है। वे लोग दाह-संस्कार के लिए चंदे द्वारा एकत्रित धन से आलू-पूरी खरीद कर खाते हैं। यह संस्कारहीनता वाला काम करते समय स्वर्गवासी बहू की प्रशंसा करते हैं। उन्हें विश्वास है कि बहू का अंतिम संस्कार पड़ोसी कर ही देंगे। बहू को स्वर्ग मिलेगा, क्योंकि उसने मर कर भी उनकी सेवा की है।

अब ताजा खबर यह है कि महामारी से हुई मौतों के बीच अंतिम संस्कार कराने वाले दल खड़े हो रहे हैं। ये अंतिम संस्कार का ठेका ले रहे हैं। दावा है कि मृतक के धर्म में बताई रीति से संस्कार कर दिया जाएगा। इस तरह महामारी कुछ नए व्यवसायों को जन्म दे रही है। अत: ये खबरें कि विगत समय में कारखाने बंद हो गए, व्यवसाय ठप्प हो गए…केवल व्यवस्था को बदनाम करने को गढ़े जा रहे हैं। इसी दृष्टि से देखें तो वैक्सीन की चोरी और दवाओं की कालाबाजारी भी अफवाह ही लगेगी…। व्यवस्था ने सभी चीजों को उनके ठिकाने पर लगा दिया है। व्यवस्था, हिंसा और भ्रष्टाचार को उजागर करते रहने के लिए कुछ लोगों का शगल मात्र है। महामारी के समय व्यवस्था ने इतना अच्छा प्रशासन किया है कि विदेशी नेताओं ने पूर्व से तय की गई यात्राओं को निरस्त कर दिया है।हम लोग एक-दूसरे से इतना प्रेम करने लगे हैं कि एक साथ कई शवों का अग्नि संस्कार हो रहा है। प्रियंका चोपड़ा अभिनीत फिल्म ‘स्काई इज पिंक’ में दो पात्रों को एक ही कब्र में दफनाते हैं। यह मान्यता रही है कि जहां एक व्यक्ति दफन किया जाता है, वहां 30 वर्ष पश्चात ही दूसरे व्यक्ति को दफन किया जाता है। महामारी ने तो सारी मान्यताएं ध्वस्त कर दी हैं। महामारी के समय अस्पताल एक तीर्थ जैसा हो गया है।

रूस में लिखी गई ‘कैंसर वार्ड कहानी’ मेंअस्पताल का जनरल वार्ड घटनाओं का केंद्र है। उस वार्ड में केवल एक खिड़की है। अत: खिड़की के पास वाले बिस्तर पर लेटा मरीज अपने साथी मरीजों को बताता है कि खिड़की से वह देख रहा है, एक बगीचा है। एक बड़ा नीम का वृक्ष है, जिस पर रंग-बिरंगे पक्षीआकर डाल-डाल फुदकते हैं। वृक्ष की डालियां सखियों की तरह बतियातीं और चहकती हैं।

जब उस मरीज की मृत्यु होती है, तब अन्य मरीज को वह खिड़की वाली जगह मिलती है। वह भी बाहर के मनोरम दृश्य का विवरण सुनाता है। लाइलाज बीमारी से ग्रस्त मरीजों केलिए खिड़की वाली जगह मिलना उनका श्रेष्ठ समय सिद्ध होता है। जब अस्पताल के उस जनरल वार्ड में पहले बैच के आखिरी मरीज को खिड़की वाली जगह मिलती है, तो वह देखता है कि खिड़की के सामने ऊंची दीवार है। सभी मरीजों ने सारे विवरण कल्पना से गढ़े थे।

‘ओ हेनरी’ की कथा ‘लास्ट लीफ’ में एक बीमारकिशोरी के बेड के सामने एक वृक्ष है। पतझड़ में पत्ते गिर रहे हैं। हर दिन किशोरी की हालत बिगड़ रही है। उसे लगता है कि जिस दिन वृक्ष से आखरी पत्ता गिरेगा वह मर जाएगी। एक दिन वृक्ष पर आखिरी पत्ता रह जाता है। लड़की को लगता है कि उसकाआखिरी समय आ गया है। लड़की के मोहल्ले में एक बूढ़ा पेंटर रहता है, जिसकी एक भीपेंटिंग कभी सराही नहीं गई। उस रात पेंटर, प्लास्टिक का पत्ता पक्के रंग से बनाताहै। वृक्ष पर उसे मजबूत रस्सी से बांधता है। उस रात वर्षा होती है, तेज हवाएं चलतीहैं। सुबह खिड़की खोली जाती है। लड़की वृक्ष पर पत्ते को कायम पाकर जीने के उत्साहसे भर जाती है। उसी रात भीगने के कारण बूढ़े पेंटर को निमोनिया हो जाता है। उसकीपत्ते की पेंटिंग ने प्राण बचाए। वह उसकी मास्टरपीस पेंटिंग रही। ऐसी पेंटिंग हजार मोनालिसा से बेहतर मानी जानी चाहिए।