पत्थरों की बरसात / श्याम सुन्दर अग्रवाल
गोलू लोमड़ जब सुबह सैर को जा रहा था तो उसने चिंकी खरगोश को परिवार सहित पीपल के वृक्ष के नीचे बैठे देखा। इतनी सर्दी में उन्हें पीपल के नीचे बैठे देख गोलू को बहुत हैरानी हुई।
गोलू ने पूछा, “चिंकी भैया, इतनी सर्दी में बच्चों के साथ यहाँ क्यों बैठे हो?”
गोलू की बात सुनते ही चिंकी की आँखों में आँसू आ गए। अपने आँसुओं को पोंछते हुए वह बोला, “गोलू भाई, हमारे बुरे दिन आ गए हैं। इतना सुंदर मकान होते हुए भी हमें रात बाहर खुले में ठिठुरते हुए बितानी पड़ती है।”
“ऐसी क्या बात है? तुम घर पर क्यों नहीं सो सकते?”
“एक भूत हमारे घर में रोज रात को पत्थरों की बरसात करता है। हमें विवश होकर घर से बाहर रहना पड़ता है।” चिंकी ने बताया।
“भूत! भूत भी कहीं होते हैं। तुम्हें वहम हो गया है।” गोलू ने हँसते हुए कहा।
“अंकल, भूत होता है तभी तो मेरी डबलरोटी और मक्खन खा जाता है।“ चिंकी के छोटे बेटे डिंकी ने दुखी मन से कहा।
“भाई, जिस तन लागे सो तन जाने। तुम्हें तो मजाक सूझता है। हम तो पाँच दिन से बहुत परेशान हैं। भूत घर में रखा भोजन भी खा जाता है। वह उछलकूद भी बहुत मचाता है।” चिंकी बोला।
“पाँच दिन हो गए और तुमने बताया तक नहीं। मुसीबत में दोस्त-मित्र ही काम आते हैं।” गोलू ने गंभीर होकर कहा।
“बताता क्या भाई, मैने तो पंडित सियारचंद से गृह-शांति पाठ भी करवाया, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। लंगूरचंद ओझा को भी बुलाया, लेकिन सब बेकार।” चिंकी ने बताया।
“चिंकी भैया, मेरा विश्वास करो, भूत-वूत कुछ नहीं होते। तुमने अगर पंडित और ओझा के पास न जाकर मुझे बताया होता, तो तुम्हारे घर पर पत्थरों की बरसात कब की बंद हो चुकी होती।” गोलू ने कहा।
“अंकल, क्या आप सचमुच पत्थरों की बरसात बंद कर सकते हो?” चिंकी के बड़े बेटे ने आश्चर्य से पूछा।
“क्यों नहीं बेटे, तुम्हारे घर पर पत्थर बरसाने वाले भूत को हम आज ही पकड़ लेंगे।” गोलू ने विश्वास के साथ कहा।
थोड़ी देर में ही गोलू लोमड़ अपने साहसी मित्रों– मंगलू कुत्ते तथा लंबू जिराफ के साथ, चिंकी के घर पहुँचा। चिंकी ने उन्हें वह कमरा दिखाया जहाँ रात होते ही पत्थर बरसने लगते थे। यह घर का भीतरी कमरा था जहाँ चिंकी का परिवार सोया करता था। बाहर वाले कमरे में खाने-पीने का सामान रखा था। गोलू और उसके मित्रों ने देखा कि भीतर वाले कमरे में एक बड़ा रोशनदान था।
“कोई छोटा जानवर इस रोशनदान से ही पत्थर फेंकता है। अंधविश्वासी चिंकी के परिवार को भगा कर यहीं से भीतर प्रवेश करता है। मुझे रोशनदान के पास पंजों के निशान साफ दिखाई दे रहे हैं।” लंबू जिराफ ने दीवार पर ध्यान से देखते हुए कहा।
“और वह वापस भी इसी राह से जाता है। बाहर का दरवाजा बंद होने के बाद बाहर निकलने का और कोई रास्ता नहीं है।” गोलू ने दोनों कमरों का निरीक्षण करते हुए कहा।
“यह भूत वही पत्थर उठा कर फेंकता है जो जंगल में सड़क बनाने के लिए लाए गए हैं।” मंगलू कुत्ते ने कमरे में पड़े पत्थरों को देख कर कहा।
उन्होंने उसी रात पत्थर बरसाने वाले भूत को पकड़ने का निर्णय किया। उन्होंने सोच-विचार कर एक योजना बनाई। योजना के अनुसार मंगलू कुत्ते को बाहर के दरवाजे पर निगरानी का काम सौंपा गया। लंबू जिराफ ने ‘भूत’ के रोशनदान से कमरे में भीतर कूदते ही रोशनदान को अच्छी तरह से बंद कर देना था। गोलू लोमड़ ने तुरंत बिजली का बटन दबा, अंधेरे कमरे को जगमगा देना था। और फिर उन्हें मिल कर ‘भूत’ को पकड़ना था।
चिंकी बहुत भयभीत हो रहा था। इसलिए उसे परिवार सहित गोलू के घर भेज दिया गया। अंधेरा होते ही तीनों मित्र अपने निश्चित स्थान पर पहुँच गए। मंगलू कुत्ता बाहर वाले दरवाजे को बंद कर खड़ा हो गया। गोलू लोमड़ कमरे के कोने में स्विचबोर्ड के पास दुबक गया ताकि पत्थरों की मार से बच सके। रोशनदान के पास लंबू जिराफ मोर्चा संभाले हुए था।
अँधेरा होते ही उन्हें कमरे की छत पर किसी के चलने की आवाज सुनाई दी। फिर एक-एक कर कमरे में पत्थर गिरने लगे। जब पत्थर बरसने बंद हो गए तो किसी के फर्श पर कूदने की आवाज सुनाई दी। लंबू ने तुरंत रोशनदान का ढकना गिरा कर उसे बंद कर दिया। गोलू ने स्विच दबा कर कमरे की बत्ती जला दी।
बत्ती जलने पर उन्होंने देखा, पत्थर बरसाने वाला भूत कोई और नहीं, जानू बंदर था। जानू गले में एक थैला लटकाए कमरे में खड़ा था। अपने को घिरा देख जानू घबरा गया। उसने वापस जाने की कोशिश की, लेकिन रोशनदान तो बंद हो चुका था। वह दरवाजा खोल बाहर को भागा तो मंगलू ने उसकी टाँग पकड़ ली। गोलू ने उसे रस्सी से बांध दिया। मंगलू दौड़ कर चिंकी और उसके परिवार को बुला लाया।
“चिंकी भाई, पत्थर बरसाने वाला भूत तुम्हारे सामने खड़ा है।” गोलू ने कहा।
“जानू तुम!” चिंकी बहुत हैरान था।
“हाँ, मुझे माफ कर दो। सर्दी से बचने के लिए ही मैने ऐसा किया।” जानू गिड़गिड़ाया।
“तुम बहुत आलसी हो, अपने लिए एक छोटा-सा घर भी नहीं बना सकते।” मंगलू बहुत क्रोधित था।
“तुम क्षमा के योग्य नहीं हो। तुम छोटे-छोटे बच्चों का भोजन तक चुरा कर खा गए।” लंबू जिराफ बोला।
“तुम्हें बहुत बार समझा चुके, लेकिन तुम नहीं समझे। तुम्हारे कारण ये नन्हे बच्चे रात-रात भर सर्दी में ठिठुरते रहे। अबकी बार तुम्हें क्षमा नहीं किया जायेगा।” गोलू ने निर्णय सुनाया।
जानू बंदर को पुलिस के हवाले कर दिया गया।