पत्नियों के संगठनों की दास्तानें / जयप्रकाश चौकसे
पत्नियों के संगठनों की दास्ता
प्रकाशित तिथि : 27 जुलाई 2012
शाहरुख खान की पत्नी गौरी, ऋतिक रोशन की पत्नी सुजैन, अर्जुन रामपाल की पत्नी मेहर जेसिया गहरी मित्र हैं और इनके दरबार में संजय कपूर की पत्नी महीप भी शामिल हैं। अन्य सितारों की पत्नियों के भी छोटे-छोटे दल हैं और सेवानिवृत्त तारिकाएं वहीदा रहमान, आशा पारेख, शम्मी तथा नंदा भी गहरी सखियां हैं। कुछ दिन पूर्व ही वहीदा रहमान, आशा पारेख और हेलन यूरोप की यात्रा पर भी गई थीं।
इनसे सीनियर श्रीमती कृष्णा राज कपूर, श्रीमती सलमा खान, श्रीमती राजेंद्र कुमार, श्रीमती प्रेम चोपड़ा की भी किटी दावतें चलती रहती हैं। फिल्म उद्योग में इन महिलाओं की गतिविधियां अब तक मीडिया की पैनी निगाह से बची हुई हैं और ये तमाम धनाढ्य महिलाएं सामान्य जीवन का सुख निर्बाध रूप से प्राप्त कर रही हैं।
दरअसल सुपर सितारों की पत्नियों का जीवन आसान नहीं है। उनके अत्यंत व्यस्त टकसालनुमा पतियों के पास उनके लिए वक्तकम होता है। दिनभर अपने काम के सिलसिले में या उसके बहाने अनेक खूबसूरत औरतों के सान्निध्य से लौटे सितारा पतियों के अवचेतन में उनकी नायिकाएं मौजूद होती हैं, सहसितारों के स्पर्श अभी उनकी त्वचा की परतों में कायम हैं और असावधान पति सहसितारे का परफ्यूम भी साथ लाया होता है और पत्नियां यह सब जानती हैं, परंतु पति द्वारा अर्जित संपत्ति, सुविधाएं और प्रसिद्धि के संसार की वे आदी हो जाती हैं और इन भौतिक सुखों के साथ रहते हुए अपने आदर्श और मूल्यों के असबाब को वे घर के गोदाम में अन्य बेकार चीजों के साथ पहले ही फेंक चुकी होती हैं।
गुरुदत्त की ‘साहब बीवी और गुलाम’ में लंपट पति अपनी बीवी को सलाह देता है कि कोठी की अन्य स्त्रियों की तरह वह गहने तुड़वाए व गहने बनवाने या सरौते से सुपारी काटने में आनंद ग्रहण करे। सामंतवादी संगमरमरी अट्टालिकाओं के गलियारे पत्नियों के ऊब के गोदाम बन जाते हैं, उनकी अतृप्त सिसकियों से तहखाने बन जाते हैं, उनकी अधूरी इच्छाएं चमगादड़ों के रूप में ऊंचे गुंबदों की छत पर उल्टी लटकी रहती हैं।
सितारा पत्नियां उसी सामंतवादी परंपराओं में ढली औरते हैं, परंतु उनकी अनकही दास्तानों पर फिल्में नहीं बन सकतीं। उनसे मिलता-जुलता है श्रेष्ठि वर्ग की महिलाओं का जीवन। रेसकोर्स में उनका प्रिय घोड़ा डर्बी जीत लेता है, परंतु वे प्रेम की बाजी हार चुकी होती हैं। आजकल धनाढ्य पति पत्नी के खेलने के लिए समाज के उपेक्षित वर्ग की सहायतार्थ बनी कुछ संस्थाएं खरीद लेते हैं। कुछ लोग आईपीएल तमाशे में चंद करोड़ों की टीम खरीद लेते हैं। हर युग के अपने खिलौने होते हैं।
गौरतलब यह है कि चंद उद्यमी महिलाएं अपने दम-खम पर सफल उद्योग खड़ा कर लेती हैं, तब भूमिकाओं का उलटफेर हो जाता है। पति की ऊब भांय-भांय करती है। दोनों ही सफल हों तो बच्चों के मन में सूनापन प्रवेश कर जाता है। जीवन में समरसता अनेक कारणों से भंग होती है और विषम परिस्थितियों के बावजूद कुछ लोग समरसता तथा परस्पर सामंजस्य स्थापित कर लेते हैं। हमने अभी तक सब कुछ नहीं खोया है। कुछ तो है बाकी और भविष्य में इस युग का इतिहास लिखने वाला संभवत: बाकी इतिहास को भी शामिल करेगा। इन सितारा पत्नियों का आपसी ‘बहनापा’ उनके पतियों के साथ कुछ अन्य लोगों के जीवन को भी परोक्ष रूप से प्रभावित करता है।
काल्पनिक ही सही, परंतु अपने असर में असली इस ‘सौतिया डाह’ के कारण कुछ नायिकाएं कई निर्माण संस्थाओं में बहिष्कृत कर दी जाती हैं। पत्नियों का अघोषित संगठन बहुत मजबूत है और फिल्म निर्माण के सृजन पक्ष तक को प्रभावित करता है। राजनीति के एक दौर में दून स्कूल में पढ़े लोगों की एकता केवल बचपन में साथ पढ़े होने के कारण हुई थी और वह देश में निर्णायक भी सिद्ध हुई है।
उद्योगपतियों की पत्नियां कम प्रमाण में ही सही, परंतु अनेक व्यावसायिक गठबंधनों को प्रभावित करती हैं। अब मामला सुपारी कतरने या गहनों को तोड़ने-बनवाने से ऊपर जा चुका है और उद्योगपति भी सामंतवादी सरगनाओं से अलग विचार-शैली के अलग लोग हैं। मध्यम वर्ग की स्त्रियों में भी परस्पर मित्रता के कारण छोटे-छोटे दल बनते हैं। एक ही परिवार की स्त्रियां दो खेमों में बंटी होती हैं और ये बंटवारा भी परिवारों को प्रभावित करता है। मध्यम वर्ग की समस्याएं और कुंठाएं अलग हैं, परंतु उसके संकीर्ण गलियारों में भी फुसफुसाहटों के सांप लहराते हैं।
आर्थिक रूप से निम्न वर्ग की महिलाओं के जीवन में इतनी गहरी जद्दोजहद है कि उनके पास किसी तरह की राजनीति के लिए समय नहीं है और उनकी अभिरुचियां भी अलग हैं, परंतु वे अपेक्षाकृत कम कुंठाग्रस्त हैं और रिश्तों के दांव-पेंच से भी आजाद हैं। अंग्रेजी के प्रथम कवि चौसर ने भी ‘ओल्ड वाइव्स टेल’ लिखी है। चौसर के चरित्र-चित्रण और संवाद में बहुत ‘विट’ है और वह अलग ही दुनिया है।