पत्नी पीड़ित संस्था और एक खरीद फरोख्त? / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पत्नी पीड़ित संस्था और एक खरीद फरोख्त?
प्रकाशन तिथि : 29 जून 2018


दो खबरें इस तरह आई हैं कि किसी शहर में एक पति ने अपनी पत्नी को बेचा और बकायदा लिखा-पढ़ी की गई। दूसरी खबर है कि पत्नी पीड़ित पतियों ने एक जुलूस निकाला और अपने दुखों के परचे भी बांटे। अंग्रेजी उपन्यासकार थॉमस हार्डी ने उपन्यास लिखा 'मेयर ऑफ केस्टरब्रिज' जिस पर अंग्रेजी भाषा में फिल्म बनी और यशराज चोपड़ा ने भी इसी उपन्यास से प्रेरित फिल्म 'दाग' बनाई थी। उपन्यास में पत्नी बेचने वाला व्यक्ति कालांतर में शहर का मेयर बन जाता है और विवाह भी कर लेता है। उसके द्वारा बेची गई पत्नी वर्षों बाद उसके सामने आती है। 'दाग' में राजेश खन्ना, शर्मिला टैगोर और राखी ने अभिनय किया था। बरसों पहले एक वरिष्ठ पत्रकार ने जनजातियों की एक कन्या को प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत किया। भारी हंगामा हुआ और स्त्रियों के खरीद-फरोख्त पर घड़ियाली आंसू भी बहाए गए।

फिल्मकार जगमोहन मूंदड़ा ने इस विषय पर 'कमला' नामक फिल्म भी बनाई थी, जिसके एक दृश्य में जनजाति की कन्या पत्रकार की पत्नी से पूछती है कि उसे कितने में खरीदा गया। उसे लगा कि महिलाओं की खरीद-फरोख्त सामान्य बात है। कमला की भूमिका दीप्ति नवल ने की थी। कालांतर में दीप्ति नवल का विवाह फिल्मकार प्रकाश झा से हुआ परंतु कुछ वर्ष बाद तलाक भी हो गया। याद आता है कि इंदौर के कैंसर अस्पताल के डॉक्टर मधुसुदन द्विवेदी ने भी पत्नी पीड़ित लोगों को संगठित किया था। यह सब उन्होंने हास्य के लहजे में किया था। उनके ठहाकों से दीवारें हिल जाती थीं, रेसीडेंसी क्लब की जर्जर दीवारों का प्लास्टर गिर जाता था।

अंग्रेजी भाषा में बनी फिल्म 'इंडिसेन्ट प्रपोजल' में एक व्यक्ति कैसीनो में अपना संचित धन हार जाता है। जीतने वाला अभद्र प्रस्ताव रखता है कि अगर उसकी पत्नी एक सप्ताहान्त उसके साथ गुजारे तो वह जीती हुई रकम लौटा सकता है। नैराश्य में डूबा पति इस सौदे को स्वीकार करता है परंतु थोड़ी ही देर में वह इस सौदे को तोड़ने के लिए दौड़ता है पर तब तक हेलिकॉप्टर उड़ जाता है। जीतने वाला व्यक्ति यह जान जाता है कि पति-पत्नी के बीच गहरा प्रेम है किंतु आर्थिक मंदी से जूझते हुए वह कैसीनो में आया था कि संभवत: कुछ राशि जीत ले। उसने उन दो दिनों में हारे हुए की पत्नी को स्पर्श भी नहीं किया परंतु पत्नी के लौटने के बाद पति ने उससे दूरी बना ली। पुरुषों की इस बीमार सोच को 'संगम' के एक संवाद में यूं अभिव्यक्त किया गया है कि पति कहता है कि वह अब अपनी पत्नी को स्पर्श करते समय जुगुप्सा से भर जाता है कि इस शरीर को किसी और ने पहले स्पर्श किया है। कितना जलील विचार है कि क्या पत्नी कोई बरतन है, जो अब झूठा हो चुका है।

दरअसल, इस तरह की संकीर्णता की गंगोत्री तो हम 'महाभारत' में देख चुके हैं जब धर्मराज युधिष्ठिर ने द्रौपदी को दांव पर लगाया, जो पांचों भाइयों की साझा पत्नी थी। उन्हें द्रौपदी को दांव पर लगाने से पूर्व द्रौपदी से आज्ञा लेनी चाहिए थी। गांधारी की आज्ञा से द्रौपदी लौटाई गई परंतु युधिष्ठिर पुन: उसे हार गए। बहरहाल, पत्नी पीड़ित पुरुषों का जुलूस भी हास्य भावना से लिया जा रहा है। फिल्म 'का और की' में भूमिकाओं का फेरबदल प्रस्तुत किया गया है। फिल्म में पति खाना पकाता है, घर के सारे काम करता है और पत्नी दफ्तर में काम करके घर खर्च अर्जित करती है। प्राय: प्रेम विवाह में यह अनुभव हुआ है कि विवाह के बाद पत्नी को प्रेयसी की तरह नहीं देखते हुए, यह मान लिया जाता है कि वह घर के सब कामों में अपने को झोंक देगी। पत्नी से प्रेयसी-सा व्यवहार शादी के बाद भी किया जाना चाहिए। विवाह के पूर्व प्रेम-पत्र लिखने में तल्लीन पुरुष विवाह के बाद अपनी पत्नी को प्रेम-पत्र क्यों नहीं लिखते? नित नए प्रयोग से रिश्ते प्राणवान बने रहते हैं।

महानगर में भीड़ भरे लोकल ट्रेन के डिब्बे में धक्के खाती हुई पत्नी को घर लौटकर भोजन बनाना होता है, बच्चों को पढ़ाना होता है। थकान से चूर, लोकल ट्रेन में धक्के खाने वाली स्त्री घर लौटती है। पति भी सारा दिन त्रास भोगकर ही आया है। दोनों की बदहाली यह है कि वे अपने पहने जूतों से भी पहले घिसकर फट चुके होते हैं।

इस मामले का साधारणीकरण करके कोई फॉर्मूला नहीं खोजा जा सकता परंतु धर्मवीर भारती की 'कनुप्रिया' और पवन करण के संग्रह 'स्त्री शतक' को बार-बार पढ़ना कुछ सहायता कर सकता है।