पत्नी वही जो पति मन भावे / अमित कुमार मल्ल

Gadya Kosh से
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रागनी दीदी,वाकई रानी थी खूबसूरती की, प्रसन्नता की और खिलखिलाने की।हम लोग रागिनी दीदी के जबरजस्त प्रशंसक थे - उनके पहनावे के, उनके स्टाइल के, उनके बात चीत के तरीके के, उनके रहन सहन के ढंग के,उनके औरा के। जिस कमरे में हम लोग रह कर, पाइथागोरस का सिद्धांत, न्यूटन के नियम पढ़ रहे थे, उसी कमरे के सामने के बिल्डिंग के मालिक की इकलौती बेटी थी, रागिनी दीदी। उनका मकान तीन तल्ला था, जिसमे पहले तल्ले पर वह, अपने दो भाइयों व माँ पिता के साथ रहती थी। बाक़ी के तल्ले पर किराएदार रहते थे। हम लोगों के कमरे व उनके मकान के बीच 9 फीट की खडंजा वाला रास्ता था, जिस पर सभी प्रकार के वाहन चलते थे।

हम तीन लोग एक गाँव के थे। गाँव के प्राइमरी पाठशाला से पांच तक और जूनियर हाइ स्कूल से आठ पढ़ने के बाद हाई स्कूल करने के लिए, गाँव से 90 किलोमीटर दूर के इस शहर आये थे। रागिनी दीदी के घर के सामने के एक कमरे को किराए पर लेकर हम रहते थे और शहर के हिन्दी मीडियम वाले सबसे प्रतिष्ठित स्कूल में पड़ते थे। रात का खाना, हम तीनों लोग मिलकर बनाते। सामान्यतः रोटी सब्जी। सुबह, बारी बारी से एक लड़का परांठा बनाता, जिसे ख़ाकर हम स्कूल जाते। गाँव से आटा, चावल, दाल, आलू, प्याज आता था, बाक़ी सब्जी,मसाला आदि हम लोग यहाँ खरीद लेते।

पढ़ते पढ़ते जब बहुत बोर हो जाते या थक जाते तो, बाहर चबूतरे पर खड़े हों जाते। अक्सर शाम को, रागिनी दीदी,अपने माता- पिता -भाइयो के साथ अपनी बालकनी में खड़ी रहती। उसका एक छोटा भाई था, जो हम लोग के क्लास में था,लेकिन दूसरे स्कूल में पढ़ता था।उसी के माध्यम से रागिनी दीदी के परिवार से बोलचाल शुरू हुआ।पता चला रागिनी दीदी तो बी 0 ए 0 प्रथम वर्ष, में है।

रागिनी दीदी का परिवार सुखी व समृद्ध दिखता था। उनक कपड़ा, रहन सहन अच्छा था। त्योहारों पर हम लोग को रागिनी दीदी के यहाँ लजीज त्यौहार वाले पकवान मिलता था - दीपावली, होली, दशहरा आदि के दिन। उस दिन,रागिनी दीदी,उनके भाई, माता पिता - बहुत आत्मीयता से मिलते, हाल चाल पूछते, परेशानी पूछते और खाना खिलाते। जैसे ही उनके पिताजी, इधर उधर होते, किसी न किसी बात पर रागिनी दीदी की खिलखलाती हँसी सुनने व देखने को मिलती।

वहाँ से लौटने के बाद, केवल पकवान याद रहता और रागिनी दीदी की खिलखिलाहट वाली हँसी। पकवान की याद तो, कुछ की दिन में रोटी - सब्जी - पराठे के टेस्ट से भूल जाती, लेकिन रागिनी दीदी की हँसी तो भूलती नही। हर चार छ दिन में, रागिनी दीदी दिख ही जाती या खिलखिलाहट वाली हंसी सुनाई पड़ ही जाती।

हम तीन लोग, एक कमरे में रहते थे। कमरे के ताले की 2 ही चाभियाँ थी। अमूनन हम तीनों लोग एक साथ ही जाते, स्कूल या सब्जी लाने या छोटा मोटा समान लाने। अगर तीनो अलग जाते, तो पहला वाला एक चाभी ले जाता, तीसरा जब जाता तो चाभी रागिनी के घर दे जाता, ताकि दूसरा या तीसरा जब लौटे तो उसे चाभी मिलने में परेशानी न हो। चाबी लेने जाने पर यदि रागिनी दीदी की माँ मिलती तो वह ज़रूर कुछ खिलाती और ख़ूब पढ़ने का आशीर्वाद देती। यदि रागिनी दीदी मिलती तो वह पढ़ाई के बारे में पूरा पूछती और कुछ खिलाती ज़रूर।

छमाही परीक्षा में फस्ट क्लास नंबर आने पर हम तीनों ने, हनुमान जी को पाव भर लड्डू चढ़ा कर प्रसाद लेकर रागिनी दीदी के घर पुहंचे। प्रसाद दिया। रागिनी जी की माँ ने आशीर्वाद दिया और रागिनी जी ने बधाई देते हुए कहा,

मुझे तो मालूम था, तुम लोग फस्ट क्लास पास होंगे।

पढ़ाई के साथ साथ थोड़ा बहुत खेला भी करो। अभी तुम लोगों की खेलने की उम्र है।

जी।

तीनो एकसाथ बोले।

तुम लोग घुमा टहला भी करो। दोस्तो के साथ भी जाया करो। यह कोई बात हुई ,कमरे से स्कूल,स्कूल से कमरा।

कहते हुए रागिनी दीदी हँसी -खिलखिलाहट वाली हँसी।

कभी कभार टी वी देखने का मन हो तो यहाँ आ जाया करो।

रागिनी दीदी बोली।

फिर माँ की तरफ़ देखते हुए बोली

माँ, इतने अच्छे नंबर लाये, इनको मिठाई खिलाइये।

और हम लोग पुनः मंत्र मुग्ध होकर, मिठाई खा कर अपने कमरे में आ गये।

रागिनी दीदी ने कहा था - खेला करो, दोस्तो से मिला जुला करो। इसलिये हमने पड़ोस के मैदान में जाकर खेलना शुरू किया। मोहल्ले के लड़कों ने बहूत मान मनोव्वल के बाद खिलाना शुरू किया।दो - तीन दिन बाद, खेलने के बाद, बात होने लगी। बात चीत से हमे लगा, मोहल्ले के लड़के,हम लोगों से चिढ़ते है क्योंकि उन्हें लगता है कि हम लोग रागिनी दीदी के परिवार में आते जाते हैं, उनसे बात चीत करते हैं।एक दिन रागिनी दीदी के परिवार के बारे में, बात शुरू हुई,

हम लोगों ने एक साथ बोला,

वे लोग बहुत अच्छे लोग हैं।

उस दिन बात ख़त्म हो गयी।

अगले हफ्ते फिर, रागिनी दीदी के बारे में, बात शुरू हुई,

रागिनी दीदी अच्छी नहीं है।

वह बहुत फैशन करती है।

वह बहुत स्टाइल मारती है।

वह कई लड़को से मिलती है।

वह कई लड़को के साथ घूमती है।

उनका एक लड़के से चक्कर चल रहा।

वह फलाने लड़के के साथ फलाने सिनेमाहाल में दिखाई पड़ी थी।

यह बातें, लड़को ने अलग अलग कहा, लेकिन हम तीनों ने एक साथ बोला,

रागिनी दीदी बहुत अच्छी लड़की है। बात करती हैं, लेकिन सलीके से। उनके बात व्यवहार में, एक स्टाइल ज़रूर रहता है, लेकिन उनका आचरण हरदम मर्यादित रहता है।

तुम लोगों का ऑब्जरवेशन ग़लत है।

लड़के बोले।

तुम लोगों की सोच ग़लत है।

हम लोग बोले।

उस दिन तो बात ख़त्म हो गई लेकिन कुछ दिनों बाद उन लड़को ने हमे,गेम खिलाना बंद कर दिया। हम लोग की फाइनल परीक्षा की डेट घोषित हो गयी थी, अतः हम लोग, सब कुछ भूल, पढ़ाई में लग गए।

उस दिन, शायद मई का ही कोई दिन था। सुबह के 5 बज रहे होंगे और हम लोग फिजिक्स के के फार्मूलों से जूझ रहे थे। तभी आवाज़ आई,

मार डाला ! मार डाला जल्लादों ने !!

हम लोगों ने दरवाज़ा खोला,तो फिर यही आवाज़ आई

मार डाला !!

आवाज की पहचान हुई कि यह रागिनी दीदी के माताजी जी की आवाज़ है। हमे लगा कि बदमाशों ने रागिनी दीदी के परिवार पर हमला कर दिया है, पहले तो हम लोग थोड़ा डरे, फिर रागिनी दीदी की हँसी ने हिम्मत दी और हम लोग उनके घर पर जाने के लिये सीढ़ियों पर चढ़ने लगे।हम लोग ऊपर चार पांच सीढ़ी ही चढ़े होंगे कि मार पीट व किसी लड़की की रोने की आवाज़ सुनाई पड़ी। लगा, बदमाश रानी दीदी को पीट रहे हैं। हम लोगों ने अपनी गति बढ़ाई ही थी कि देखा, हमारे पीछे पीछे मोहल्ले के कई पुरुष महिलाये आ रही है।

ऊपर बरामदे में पहुचते ही हम लोग हतप्रभ हो गए। रागिनी दीदी को उनके दोनों भाई मार रहे थे और उनके पिता ललकार रहे थे।उनकी माँ, रागिनी दीदी को बचा रही थी,लेकिन दोनों भाई पीटने से बाज नहीं आ रहे थे।रागिनी दीदी केवल रो रही थी।जब चोट ज्यादे लगता तो रुलाई ज्यादे बढ़ जाती। रानी दीदी के सुंदर गोरे मुख पर मार पीट के काले निशान दूर से दिखाई दे रहे थे।उनका चेहरा मुरझाया था। उनके कपड़े मैले दिख रहे थे। उनके बालो को पकड़ कर छोटा भाई खिंच रहा था, मैंने उसे पकड़कर, वहाँ से पीछे खिंचा। मोहल्ले वालों ने बड़े भाई को हटाया। अब रागिनी दीदी केवल सुबक रही थी

क्या हुआ?

क्यो दोनों भाई मार रहे हैं?,

सब लोग पूछ रहे थे।

आंटी, दीदी को भीतर ले जाइए।

मैं बोला।

बड़ा भाई फिर पीटने को आगे बढ़ा, लेकिन लोगों ने पकड़ लिया। आंटी, रागिनी दीदी को लेकर भीतर गई। रागिनी दीदी के पिता सिर नीचे कर बैठे रहे। दोनों भाई भी, चुप चाप नीचे देखते रहे।

लोग बार बार पूछते रहे लेकिन कोई नहीं बोला। थक हार कर जब लोग नीचे उतरने लगे तब पड़ोसी महिलाओं के बात चीत से यह बात निकली कि रागिनी दीदी किसी लड़के के साथ एक दिन पूर्व, किसी दूसरे शहर भाग गई थी। दोनों भाई वहाँ जाकर,रागिनी दीदी को पकड़ कर अभी अभी लाये थे, इसीलिये वे गुस्से में रागिनी दीदी को पीट रहे थे।

फिर रागिनी दीदी न तो बालकोनी में दिखाई देती थी, न बरामदे में। इस घटना के बाद रागिनी दीदी का परिवार ही बदल गया।चाभी लेने कभी घर जाने पर देखता कि रागिनी दीदी ख़ामोश रहने लगी। आंटी जी भी कम बोलने लगी।

दो माह बाद,पता चला कि रागिनी दीदी की हिमाचल में, कही शादी हो गयी। उनके पति अच्छे पद पर तैनात है, पति सुंदर है, स्मार्ट है, पैसे वाले हैं, आदि।

11वी क्लास के पीसीएम ग्रुप की कठोर पढ़ाई में धीरे धीरे रागिनी दीदी विस्मृत हो गई। अब तो अलजेब्रा, त्रिगनोमिट्री को जीतने में समय व दिमाग़ लग रहा था। यदा कदा,उनके दोनों भाइयों से मुलाकात होती थी।उनका व रागिनी दीदी के परिवार का व्यवहार अब नार्मल हो गया था।अब फिर, पुराने समय की भांति कभी कभार नाश्ता मिलने लगा। पास पड़ोस के लोग, रागिनी दीदी के परिवार के बारे में कानाफूसी तो करते किन्तु हम लोग से लोग कुछ नहीं कहते, क्योकि उन्हें लगता कि हम लोग रागिनी दीदी के परिवार से जुड़े हैं।

इस बार दीपावली पर छुट्टियाँ कुछ अधिक थी, अतः हम लोग, दीपावली के पहले अपने गाँव चले गए। दीपावली के तीसरे दिन अर्थात रविवार की सुबह 10 बजे रूम पर पहुचे ही थे कि रागिनी का छोटा भाई आया कि उनकी माताजी ने हम लोगों को लंच पर बुलाया है। हमने अपने भाग्य को सराहा कि दीपावली पर न रहने पर भी, दीपावली का पकवान छूटा नही। आज मिल रहा है।

लगभग 1 बजे हम तीनों रागिनी दीदी के घर पहुँचे। डाइनिंग टेबल पर, हम लोग के बैठने के बाद, एक नया स्मार्ट व हैंडसम बंदा आया। परिचय होने पर पता चला कि यह रागिनी दीदी के पति है।टेबल पर उनके दोनों भाई, पति व हम तीनों बैठे। उनके पति ने हम लोग की पढ़ाई के बारे में पूछा,

किस क्लास में हो?

11वी में

कौन ग्रुप है

पीसीएम

इंजिनीअर बनना है।

तब तक रागिनी दीदी मुस्कराती हुई डाइनिंग टेबल तक पहुची।हम लोगों ने नमस्कार किया। अभिवादन का उत्तर देते हुए रागिनी दीदी ने, हम लोगों के हाल चाल पूछी,पढ़ाई के बारे में पूछा।

बहुत अच्छे लड़के है। सिन्सियर स्टूडेंट है।

रागिनी दीदी,अपने पति से बोली।

अपने काम से काम रखते है। सामने के मकान में एक कमरा किराए पर लेकर रहते हैं। बहुत कठिन स्थितियों में पढ़ रहे है, अपना खाना ख़ुद बनाते हैं। कमरे से स्कूल व स्कूल से कमरा - यही इनकी दुनिया है।

रागिनी दीदी ने और जानकारी दी।

अभी इन लोगों से (सालो से) बात चीत हो रही थी। अगली छुट्टी में तुम लोग भी शिमला आओ।

उनके पति बोले।

बिल्कुल, तुम लोग ज़रूर आओ।

रागिनी दीदी बोली।

तब तक रागिनी दीदी के छोटे भाई ने खाना सर्व करना शुरू किया। आंटी जी भी मदद कर रही थी। ख़ुशनुमा माहौल में भोजन शुरू हुआ। रागिनी दीदी रोटी लेने के लिये किचन में गई और इधर छोटे भाई ने रागिनी दीदी की तारीफ शुरू की।

दीदी बहुत मेहनत करती थी, बहुत अच्छी है, बहुत पढ़ती है।बहुत समझदार है।बहुत व्यवहार कुशल है।

जी, बिल्कुल।

मैं बोला।

पूरा घर सम्हाले थी।

बड़े भैया बोले।

अब आंटी के ऊपर सब बोझ आ गया।

मैं बोला।

आंटी जी मुस्कराते हुए हम लोग की बाते सुन रही थी।

तुम लोगों का कहना सही है, लेकिन तुम लोगों की रागिनी दीदी में एक कमी है, जो आप लोगों की है, मम्मी जी बुरा मत मानियेगा रागिनी दीदी के पति बोले।

बताइए।

आंटी बोली।

यह बाहर निकलने में बहुत संकोच करती है।लोगो से, भीड़ से बचती है। जिसके कारण बैंक, दुकानों पर का कोई काम यह नहीं कर पाती

उनके पति बोले।

तब तक रागिनी दीदी टेबल तक पहुची।बोली

क्या बात है?

आंटी बोली।

हम लोगों की कमी बताई जा रही है, यह कहकर आंटी जी ने पूरी बात बताई।

मैं भी सुनू, अपनी कमी।

रागिनी दीदी इठलाते हुए बोली।

इसको बाहर निकलने, जाने, घूमने, शॉपिंग करने की ट्रेनिंग आप लोगों ने नहीं दी, इसको भीड़ से, आदमियों से डर लगता है। जिससे इसमें बाहर जाने का आत्म विश्वास ही नहीं है।बहुत कठिनाई होती है। न तो यह बाहर का कोई काम करती है और न अकेले शॉपिंग करती है, न घूमती है। न लोगों से मिल पाती है।बहुत ही शर्मीली है। हर समय, इसके साथ कोई न कोई चाहिये।

उनके पति बोले।

यह सुनते ही हम सभी लोग,एक दूसरे को देखकर, नज़र खाने में गड़ाकर खाने लगे और तभी,रागिनी दीदी की पुरानी खिलखिलाहट वाली हँसी सुनाई पड़ी।