पत्नी / जैनेन्द्र कुमार
Gadya Kosh से
शहर के एक और तिरस्क्रत मकान। दूसरा तल्ला.वहां चौके में एक स्त्री अंगीठी सामने लिए बैठी है . अंगीठी की आग राख हुई जा रही है वह जाने क्या सोच रही है .उसकी अवस्था बीस -बाइश के लगभग होगी ,देह से कुछ दुबली है और संभ्रांत-कुल की मालूम होती है , एकाएक अंगीठी में राख होती हुई आग की ओर स्त्री का ध्यान गया,घुटनों पर हाथ देकर वह उठी ,उठकर कुछ कोयले लायी कोयले अंगीठी में डालकर फिर किनारे ऐसे बैठ गयी मनो याद करना चाहती है कि आब क्या करूँ ? हर में और कोई नही है ओर समय बारह से ऊपर हो गया है दो प्राणी इस घर में रहते है पति और पत्नी ,पति सवेरे से गये हैं कि लौटे नही और पत्नी चौके में बैठी है वह सुनंदा सोचती है --नही,सोचती