पत्रकारिता नदी के दो घाट/ठाठ / जयप्रकाश चौकसे

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पत्रकारिता नदी के दो घाट/ठाठ
प्रकाशन तिथि : 20 जून 2020


प्रोफेसर सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी की किताब ‘बदलती हवाएं’ में रोचक घटनाओं का विवरण दिया गया है। राहुल बारपुते,राजेंद्र माथुर की परंपरा के पत्रकार प्रभाष जोशी स्मृति पुरस्कार की घोषणा तत्कालीन मुख्यमंत्री ने की थी। कुछ समय बाद पत्रकार पुरस्कार मल्लखम खिलाड़ी को दिया गया। आज हम मुख्यमंत्री जी की दूरदृष्टि के कायल हैं कि उन्होंने अनुमान लगा लिया था कि पत्रकार पर तरह-तरह के आक्रमण होंगे व मल्लखम अभ्यास उन्हें काम आएगा। इस बात का उन्हें अनुमान नहीं था कि पत्रकार के यथार्थ विवरण को पढ़ा जाएगा, चटखारे लेकर आनंद उठाया जाएगा। परंतु उसका कोई प्रभाव आवाम पर नहीं पड़ेगा। बकौल दुष्यंत ‘वह मुतमइन है कि पत्थर पिघल नहीं सकता, मैं बेकरार हूं आवाज में असर के लिए’।

सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी मध्यप्रदेश क्रिकेट से जुड़े रहे हैं व क्रिकेट की होल्कर परंपरा के मुरीद भी हैं। यह भी उजागर हुआ था कि कुछ खिलाड़ी पैसा लेकर भी मैच के परिणाम बदलने का प्रयास करते हैं। मैच फिक्सिंग स्कैंडल में कई नाम उजागर हुए पर यथेष्ट प्रमाण मिलने के बाद भी वे दंड से बच गए। कुछ लोगों के प्रभावशाली लोगों से सीमेंट से मजबूत रिश्ते रहे। दक्षिण अफ्रीका के हैन्सी क्रोनिये पर भी मुकदमा कायम हुआ था। हैन्सी ने चर्च जाकर अपना अपराध स्वीकार किया था, परंतु इसका कोई प्रभाव अदालत में चल रहे मुकदमें पर नहीं पड़ता। वह दौर बीत चुका जब दंड देने का कानूनी अधिकार भी चर्च के पास होता था। इस प्रक्रिया को रेखांकित करने वाला नाटक ‘मर्डर इन द कैथड्रल’ टी एस इलिएट ने लिखा था। पीटर ओ टूल और रिचर्ड बर्टन अभिनीत फिल्म बैकेट बनी थी। जिसका चरबा थी ऋषिकेश मुखर्जी की ‘नमक हराम’। यह राजेश खन्ना-अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म है।

लेखक ने उन दिनों का स्मरण किया है जब मोहल्लों में अखाड़े सक्रिय थे। पहलवान अभ्यास करते और युवा वर्ग भी दांव-पेंच सीखता था। इस क्षेत्र में गामा पहलवान, छोटे गामा इत्यादि प्रसिद्ध लोग हुए हैं। वर्तमान में युवा जिम में जाते हैं, कसरत करते हैं और प्रोटीन पदार्थ खाते-पीते हैं। दरअसल मसल्स बनाना मसल्स तोड़ने का काम है, क्योंकि शरीर की भौतिकी शाला में टूटी हुई मांस पेशियां दुगने आकार में वापसी करती हैं। लेखक ने उन शिक्षकों को भी याद किया है, जिन्होंने छात्रों की पीढ़ियों की विचार शैली को प्रभावित किया जैसे प्रोफेसर ईसादास, प्रो. चटर्जी, के.के केमकर इत्यादि। साथ ही उसने ऐसे शिक्षकों का जिक्र भी किया है, जो सिर्फ पदोन्नति के लिए जीते-मरते थे। इंदौर में खराब पिच के कारण दो बार अंतरराष्ट्रीय मैच रद्द किए जा चुके हैं। ये शर्मनाक घटनाएं होल्कर क्रिकेट परंपरा के चांद पर दो दागों की तरह हैं। पिच पर टप्पा खाने वाली गेंद के साथ उड़ी धूल बल्लेबाज की आंख में चली जाती थी। हमारे क्रिकेट अधिकारी आवाम की आंख में धूल ही डालते रहे हैं। लक्ष्मी प्रसाद पंत की किताब ‘न्यूजमैन @ वर्क’ अखबार के दफ्तर की कार्यप्रणाली पर प्रकाश डालती है। न्यूज रूम एक फिल्म स्टूडियो की तरह काम करता है, जहां खबरें संपादित होती हैं और आम पाठक से भावनात्मक तादात्मय बनाने का प्रयास किया जाता है, पत्रकारिता सृजन क्षेत्र में बदल जाती है। सच और झूठ के परे आम आदमी के हित को ध्यान में रखा जाता है। संपादक निर्णय करता है कि दवा को जहर बनने के पूर्व रोका जाए और कब यथार्थ का जहर दवा बन सकता है। खोजी पत्रकार के द्वंद्व को जैनेट मॉलकॉम रेखांकित करती है कि हर वह पत्रकार जो मूर्ख व आत्मकेंद्रित नहीं हो, यह जानता है कि उसकी जांच-पड़ताल व्यक्ति की निजता को भंग कर रही है। यह कार्य ‘प्रीफ्रन्टल लोबोटोमी’ की तरह अवैद्य है। जैनेट मॉलकॉम का हवाला मीनल बघेल ने अपनी किताब में दिया है। दोनों किताबें पत्रकारों ने लिखी हैं-एक बताती है कि रसोईघर में भोजन कैसे पकता है, दूसरी परोसने का विवरण देती है। पाठक स्वाद पारखी है।