पत्र 28 / बनारसीदास चतुर्वेदी के नाम पत्र / हजारीप्रसाद द्विवेदी
शान्तिनिकेतन
5.4.39
माननीय चतुर्वेदी जी,
प्रणाम !
कृपा-पत्र आज ही मिला। आपने पारिश्रमिक का एक अंश भिजवाने का आदेश देकर मेरा बड़ा उपकार किया है। अभी मिला नहीं है। कल-परसों तक शायद मिल जाए।
एक अपराध हो गया है। जैनेन्द्र जी ने आपके नाम यहाँ एक पत्र भेजा था। मैंने पता पढ़े ही बिना खोल दिया। वह तो कहिए कि यह कोई प्रेम-पत्र नहीं था। अगर यह प्रेम-पत्र होता तो अपराध की सार्थकता हो जाती है। इस कम्बख़्त पत्र से अपराध तो हो गया पर नितान्त नीरस अपराध। इसे क्षमा करने में भी आपको कोई मज़ा न आएगा। यह सोचकर मैंने एक दिन तक इसे रोक रखा था शायद आप यहाँ आने वाले हों। पर आप आए भी नहीं। यहाँ तक आकर भी आप इधर न आ सके।
मैं शायद हिन्दी परिषद् के लिये दिल्ली जाऊँगा। क्या आप भी पहुँचेंगे? मैंने आपको सुनाने के लिये साहित्यिक विचार नोट किए थे। उन्हें दिल्ली में सुनाऊँगा और फिर आपको भेज दूँगा। और सब कुशल है। आशा है, आप सानन्द हैं।
आपका
हजारी प्रसाद द्विवेदी