पत्र 3 / बनारसीदास चतुर्वेदी के नाम पत्र / हजारीप्रसाद द्विवेदी
14.2.35
पूज्य चतुर्वेदी जी,
प्रणाम!
कृपा-पत्र मिला। इसके पहले साल के शुरु ही में आपने जो आशीर्वाद भेजा था, वह भी मिला। उससे मैं बहुत उत्साहित हुआ हूँ। वह पत्र मेरे प्रमाण-पत्रों में संगृहीत कर लिया गया है। २५/- रुपये बड़े मौके से मिले। वह द्रव्य जिस समय मिला, उस समय उसने ५ सौ रुपये पाने से भी अधिक आनन्द का कारण हुआ। मैं आपकी इस कृपा के लिए बहुत कृतज्ञ हूँ।
यह सुन कर बड़ा दु:ख हुआ कि आपके बहनोई का स्वर्गवास हो गया। इस दु:ख का कोई आश्वासन नहीं। विशेषकर जिस अवस्था में उनका स्वर्गवास हुआ है, वह और भी दुखजनक है। भगवान् ही आपको यह दु:ख बर्दाश्त करने की शक्ति देंगे। और क्या कहूँ?
आपका
हजारी प्रसाद
14.2.35
पुनश्च:
चाय चक्रम् देखा था। सुन्दर हुआ है। हरेक शब्द से व्यंजनाशक्ति प्रकट होती है। दुलारे दोहावली पर तो, आपने शायद सुना होगा कि पुरस्कार मिल गया। शायद यह बात पहले से आपकी भी जानी हुई थी। मैं विजेता को बधाई देने जा रहा हूँ। उन्होंने कृपापूर्वक पुस्तक भेजी थी। लेख भेज रहा हूँ। अच्छा जान पड़े तो छाप दीजियेगा।